Sunday, September 27, 2009

कहानी में कथ्य और शिल्प की प्रयोगशीलता का संकट

संगमन - 6

1 - 3 अक्टूबर 2000
वृंदावन

संगमन - 6 का तीन दिवसीय कार्यक्रम वृंदावन के श्री अमरनाथ विद्या आश्रम के सभागार में आयोजित हुआ। नए दशक की लेखकीय चुनौतियां तथा कहानी में कथ्य और शिल्प की प्रयोगशीलता का संकट विषय पर बेबाक चर्चा हुई। इस बार स्थानीय संयोजक 'कमलेश भट्ट कमल' थे।
इस कथा सम्मेलन के प्रतिभागियों में असगर वजाहत, गिरिराज किशोर, चन्द्रकान्ता,शोभनाथ शुक्ल, ओम शिवराज,डॉ वेद प्रकाश अंमिताभ,राम सनेही शर्मा, संदीपन नागर,अनिल गहलोत,ओमा शर्मा, देवेन्द्र, शैलेन्द्र सागर, भारत भारद्वाज, संतोष श्रीवास्तव,प्रमिलावर्मा,जया जादवानी, महेश कटारे, नीलाक्षी सिंह ,मूल चन्द गौतम, अशोक मिश्र,डॉ प्रकाश मनु,चित्रेश,दिनेश पाठक,मदन मोहन उपेन्द्र
कार्यक्रम
1 अक्टूबर 2000,
अपरान्ह 230 बजे स्वागत
प्रथम सत्र अपरान्ह 3 30 से 6 बजे तक
विषय - नए दशक की लेखकीय चुनौतियां

शनिवार, 2 अक्टूबर 2000
परिक्रमा : वृन्दावन( प्रात: 830 बजे)
द्वितीय सत्र - अपरान्ह 3 से 6 बजे तक
विषय -
समकालीन हिन्दी उपन्यास: दशा और दिशा

रविवार,5 सितम्बर 1999
परिक्रमा : मथुरा( प्रात: 830 बजे)
तृतीय सत्र -अपरान्ह 2 बजे से 430 बजे तक
विषय -
वर्तमान कहानी में कथ्य और शिल्प की प्रयोगशीलता का संकट

अख़बारों और पत्रिकाओं की रपट के कुछ अंश

दैनिक जागरण: मथुरा 3 अक्टूबर 2000, कहानी में अभिव्यक्ति की चुनौती अधिक महत्वपूर्ण
श्री अमरनाथ विद्या आश्रम में वर्तमान कहानी में कथ्य और शिल्प की प्रयोगशीलता का संकट विषय पर आयोजित संगमन की विचार गोष्ठी में मूर्धन्य साहित्यकारों ने अपने विचार रखे। साहित्यकारों ने एक मत से कहानी में अभिव्यक्ति की चुनौती अधिक महत्वपूर्ण माना।

जनसत्ता : 9 अक्टूबर 2000, जीवनशैली को बदलने की कोशिश कर रहा है मीडिया

मथुरा - वृंदावन में आयोजित संगमन की वार्षिक गोष्ठी में देश के कोने कोने से आए उपन्यासकारों व कहानीकारों ने साहित्य, जीवनशैली को बदलते इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर अपने विचार प्रस्तुत किए।

अमर उजाला : 15 अक्टूबर 2000, रचना विरोधी समय में भी कहानी के बचे रहने की उम्मीद
हिन्दी कहानी और उपन्यास आज कहां खडे हैं? कहानियों और उपन्यासों का पाठक गुम हो गया है या टी वी ने उसका अपहरण कर लिया है? आने वाले समय में साहित्य की क्या स्थिति होगी? जैसे सवालों पर वृन्दावन में 1 से 3 अक्टूबर तक गहन विमर्श हुआ। पुराने और नए कथाकारों के इस संगम में न केवल कहानी संबंधी कई सवालों के जवाब सामने आए बल्कि कुछ नए सवाल भी उभरे।

दैनिक भास्कर 3 अक्टूबर 2000 संगमन का कथाकार सम्मेलन : साहित्य में नए संदर्भों की खोज
वर्तमान कहानी और उपन्यास के परिदृश्य पर नए पुराने लेखकों के बीच त्रिदिवसीय सार्थक बहस मुबाहिसे का आयोजन पिछले दिनों संगमन द्वारा मथुरा - वृंदावन में किया गया।इसमें विभिन्न सत्रों के दौरान कहानी और उपन्यास के कथ्य, शिल्प व संरचना की दशा व दिशा पर तथा नए लेखन की समग्र चुनौतियों पर गंभीर चिंतन व सार्थक बहस हुई जिसकी गूंज मथुरा - वृन्दावन के सांस्कृतिक व प्रेममय माहौल में स्पष्ट सुनाई दी।

दैनिक जागरण: 3 अक्टूबर 2000, त्रिदिवसीय संगमन सम्मेलन में लेखकों का विभिन्न विषयों पर विचार मंथन

नए लेखकों को चर्चित लेखकों के साथ आपस में मिलने, बैठने तथा अपनी बात प्रभावी ढंग से कहने को मंच देने के उद्देश्य से गठित संगमन का छठा त्रिदिवसीय पडाव मथुरा के गीता आश्रम में आरंभ हुआ।

अमर उजाला: 3 अक्टूबर 2000, अंगरेजी व कंप्यूटर से चिंतित दिखे साहित्यकार

संगमन में बोले गए कुछ महत्वपूर्ण कथन/उपकथन

लेखक अपनी कृति का निर्णायक नहीं होता, न ही उसे कोई संपादक रचना लिखने के लिए निर्देशित कर सकता है। यदि ऐसा होता है तो यह साहित्य की दुर्दशा होगी। - गिरिराज किशोर

कहानीकार को सत्य के धरातल पर रहते हुए ही कहानी लिखनी चाहिए।वेदों में जिन तीन सत्यों का जिक़्र किया गया है, कहानीकार उन्हें उभारें। -डॉ. ओम शिवराज

किसी भी रचना की गुणवत्ता उसके शिल्प पर निर्भर करती है। कहानी के लिए नित्य नया शिल्प गढना कठिन है। -डॉ.
प्रमिला वर्मा

कहानी का संकट भाषा के संकट से जुडा है। - राम सनेही शर्मा

हमारे ऊपर की कई तरह की व्यवस्थाओं का दबाव है, भय है, जो सृजनशीलता को प्रभावित करते हैं। साथ ही, बाजारवाद, सांप्रदायिकता, आतंक, भ्रष्टाचार के कई संकट हैं जिन पर कहानियां लिखना वाकई चुनौती है।

हर कहानी अपने समय के समाज को अभिव्यक्त करती है। - मूलचन्द गौतम

आज का मानव दो ध्रुवों के बीच जी रहा है। एक और इलेक्ट्रोनक मीडिया ने पूरा विश्व समेट कर संकुचित कर दिया है दूसरी और बुध्दिजीवी वर्ग और आम आदमी भौंचक्का खडा देख रहा है। ऐसे में यह समय पूरी तरह से रचनाकार के आत्ममंथन का समय है। - चन्द्रकांता

राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक स्थितियां दर्शाने में लेखक यथार्थ से दूर होते जा रहे हैं जो कि साहित्यकारों के लिए चिंतन का विषय है। - ओमा शर्मा

साहित्यकारों को इंटरनेट से आक्रांत नहीं होना चाहिए। - अशोक मिश्र

साहित्य व कला को उसका उचित स्थान दिलाने के लिए हिन्दी प्रदेशों में सांस्कृतिक आंदोलन चलाए जाने की आवश्यकता है। - असगर वजाहत
परीक्षा गुरु से लेकर आजतक के उपन्यास समकालीनता की परिधि में आते हैं। -
भारत भारद्वाज

जो चुनौतियां आज हैं वे नए दशक में भी बनी रहेंगी। साहित्यकार की बडी चिन्ता यह होनी चाहिए कि साहित्य मनुष्य को श्रेष्ठ मनुष्य बनाए रखे। -डॉ वेदप्रकाश अंमिताभ

परिशिष्ट

वृन्दावन के सात्विक माहौल में लेखक ठहरे ही गीता आश्रम में थे पूरा माहौल में राधामय था लेखकों ने सत्रों में साहित्यिक विमर्श के साथ - साथ मथुरा, वृन्दावन तथा वहां के आस - पास का भ्रमण किया गोवर्धन, बरसाना, सूरकुटी, बांके बिहारी जी का मंदिर, इस्कॉन टेंपल, कृष्ण जन्मभूमि, रंगनाथ जी का मंदिर

मथुरा का राजकीय ऐतिहासिक संग्रहालय बौध्द काल में लौटा ले गया

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