Sunday, September 27, 2009

पिथौरागढ़ में जुटे तीन पीढ़ियों के कथाकार

संगमन - 11

पिथौरागढ़

इस वर्ष संगमन - 11 का आयोजन अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह के आरंभ में, मौसम की खुशगवारी के साथ, उत्तरांचल के हिमालय के सान्निध्य में बसे खूबसूरत शान्त शहर पिथौरागढ़ में सम्पन्न हुआ। पिथौरागढ़ में देश के विभिन्न हिस्सों से तीन पीढ़ियों के कथाकार जुटे। माहौल की अनौपचारिकता और आत्मीयता के साथ तीनों सत्रों में समकालीन कहानी के शक्ति व प्रतिरोध के केन्द्र विषय पर महत्वपूर्ण मुद्दों पर विमर्श हुए, जिसके सार्थक निष्कर्ष सामने आए। संगमन - 11 के प्रतिभागी थे -- सर्वश्री गिरिराजकिशोर, काशीनाथ सिंह, से. रा. यात्री, कामतानाथ, अस्र्ण प्रकाश, बटरोही, ऋषिकेश सुलभ, महेश कटारे,विभांशु दिव्याल, जया जादवानी, शिवमूर्ति, संजीव,भगवान दास मोरवाल,दिवाकर भट्ट,गौरीनाथ, श्रीधरम, दिवा भट्ट, नरेन्द्र कुमार नथानी, महुआ मांजी,मनीषा कुलश्रेष्ठ
कार्यक्रम
दिनांक 1 अक्टूबर 2005
पहला सत्र - सुबह दस बजे से एक बजे तक
विषय : वर्तमान हिन्दी कहानी : शक्ति और प्रतिरोध के केन्द्र
सत्र संचालन: महेश कटारे

दूसरा सत्र
अपरान्ह 2.30 से सांय 6
बजे तक
विषय : वर्तमान हिन्दी कहानी : शक्ति और प्रतिरोध के केन्द्र
सत्र संचालन : ऋषिकेश सुलभ

2 अक्टूबर 2005
तीसरा सत्
विषय : वर्तमान हिन्दी कहानी : शक्ति और प्रतिरोध के केन्द्र
सत्र संचालन
: जया जादवानी

संगमन में बोले गए कुछ महत्वपूर्ण कथन - उपकथन

बाज़ारवाद हम पर कितना ही हावी हो जाये वह हमारी संवेदना के धागे को नहीं तोड़ सकता। हर दौर में संवेदना बदलती ज़रूर है पर खत्म नहीं होती। - गिरिराजकिशोर

हमारे पूर्वजों ने गुलामी के प्रतिरोध में आज़ादी की लड़ाई लड़ी व जीत हासिल की। हमारे पूर्वजों का इस लड़ाई के संदर्भ में एक स्वप्न था - समानता, भेदभाव रहित, सबके समानाधिकार का स्वप्न, जिसके आधार पर इस देश का संविधान बना। बाज़ारवाद इस देश की अस्सी प्रतिशत आबादी से यह स्वप्न छीन रहा है। हिन्दी कहानी को इस स्वप्न को अपहृत होने से बचाना है। - अस्र्ण प्रकाश

" कहानीकार लोगों को अन्याय के प्रतिरोध के लिये प्रेरित कर सकता है, प्रतिरोध की पृष्ठभूमि तैयार कर सकता है पर पताका लेकर नहीं चल सकता।" - विभांशु दिव्याल

" साहित्य जीवन को बेहतर ढंग से समझने और बनाने की कला है।" -बटरोही

" साहित्य के सम्मुख जितने खतरे उपस्थित होंगे उतनी उसमें प्रतिरोध की क्षमता बढ़ती जायेगी।" -मोहम्मद आरिफ

ग्रामीण जीवन की वर्तमान विसंगतियों पर बहुत कम कहानियां लिखी जा रही हैं जबकि ग्रामीण जीवन प्रेमचंद के युग से ज़्यादा दुरूह हो चुका है।" शिवमूर्ति

वर्तमान समय में साहित्य में स्थापित होना चुनौतीपूर्ण कार्य है।ज़्य़ादातर लेखक सुविधाजनक स्थितियां हासिल होने तक ही लेखनरत रहते हैं।"- कामतानाथ

" अक्षम लोग साहित्य में नारे उछालते हैं।"-कामतानाथ

उपेक्षा लेखक की शक्ति है। बड़ी संवेदना ही बड़ा लेखक पैदा करती है। संपादक बेइमान आदमी होता है।लेखक में आत्मनिर्णय की क्षमता होनी चाहिये। उसे संपादक के कहे अनुसार नहीं अपनी आत्मा के कहे अनुसार लिखना चाहिये।"- गिरिराजकिशोर

कहानी लेखन में सबसे बड़ी शक्ति लेखकीय दृष्टि है। आम आदमी जिन चीज़ों को नहीं देख पाता लेखक उन्हें देखने व दिखाने की क्षमता रखता है।- महेश कटारे

" दिल्ली में साहित्य का केन्द्र राजेन्द्र यादव व लखनऊ में अखिलेश हो गये हैं।''-भगवान दास मोरवाल

"युवा पीढ़ी के लेखकों के समक्ष एक नैतिक दबाव अवश्य है कि समकालीन कहानी को अपना योगदान देना है तो उथलेपन और सतहीपन से बच कर निरन्तर बदलते इस समाज - परिवेश व समय की नब्ज़ को पकड़ना होगा। बहुत हो गयी वादों - विमर्शों की दौड़...यह इस समय के सच से बहुत परे है। बचना होगा - दलित व स्त्री विमर्श को ट्रेण्ड मानने से।" मनीषा कुलश्रेष्ठ

" संपादकों की आदत लेखकों ने ही पूजा अर्चना करके बिगाड़ी है।" - गौरीनाथ

"अपनी पूरी क्षमता से अन्याय का पतिरोध करने के बावज़ूद जब कुछ नहीं बदलता तो लेखक में हताशा आ जाती है।"से. रा. यात्री

"साहित्य ही एक ऐसा योद्धा है जो बूमण्डलीकरण के प्रतिरोध में खड़ा है। रूस में जब हिटलर ने आक्रमण किया तो वहां के लेखकों केप प्रतिरोध के साहित्य ने लोगों में लड़ने की क्षमता जगायी थी।"- काशीनाथ सिंह

" कहानी लेखन केवल व्यक्ति को ही नहीं उसके दृष्टिकोण को भी बदलती है।" -जया जादवानी

" पश्चिमी साम्राज्यवाद और पूंजीवाद हमारे देश के तथाकथित राष्ट्रवाद व कठमुल्लावाद से सांठ गांठ कर यहां के आदमी को रेस के घोड़ों, दलालों और पण्य वस्तुं में बदले दे रहा है।"
- संजीव

आज की कहानी से कल्पनाशीलता गायब होती जा रही है और उस पर यथार्थ हावी होता जा रहा है।
- नरेन्द्र कुमार नथानी

मौजूदा कहानी का बीजतत्व पंचतंत्र की कहानियों में है।
- संतोष दीक्षित


परिशिष्ट

1.समस्त सत्रों की समाप्ति के बाद 2 अक्टूबर की दोपहर के तीन बजे पिथौरागढ क़े रमणीक स्थलों का भ्रमण बस द्वारा शुरु हुआ। पुरमल सिंह धर्मशक्तू संगमन समूह को कण्डल के पास ऐसी जगह पर ले गए जहां पर्वतश्रृंखलाएं दिखाई दे रही थीं उनका धवल सौंदर्य सभी को अभीभूत कर गया।

पूरे भ्रमण के दौरान पुरमल जी पहाडी औरतों के श्रमसाध्य जीवन व संघर्ष का जिक़्र अकसर करते रहे। बल्कि उनके संघर्षशील जीवन पर रात के भोजन के बाद स्थानीय लेखकों ने गीत भी सुनाए।

चीन और नेपाल की सीमा से जुडा पूरा पिथौरागढ ही प्राकृतिक सौंदर्य की अनूठी मिसाल था। बस से आते और जाते समय पहाडी झरनों, पत्थरों के बीच इठला कर बहती नदी और एक पांत में लगे चीड अौर देवदार।
आते और जाते समय दोनों बार महान कथाकार स्वशैलेश मटियानी के गांव के दर्शन हुए।

2.लौटते वक्त का सफर एक और वजह से विस्मरणीय रहेगा बस में जया जादवानी और प्रियंवद के बीच 'प्रेम' जैसे शाश्वत विषय पर हुई वह रोचक बहस। इस चर्चा में देवेन्द्र, शिवमूर्ति, संजीव, मनीषा की भी बराबर भागीदारी रही।

मजेदार बात यह थी कि एक लम्बे सफर में लगातार चली इस बहस के अंत में 'प्रेम' के स्वरूप पर सब एक ही निष्कर्ष पर पहुंचे।

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