24 - 26 नवंबर 2001
अहमदाबाद
प्रथम सत्र : शनिवार 24 नवम्बर 2001
अपरान्ह 200
विषय - बदलते संदर्भ: आज का साहित्य
द्वितीय सत्र: रविवार, 25 नवंबर 2001
प्रात: 9 00
विषय - रचनात्मकता की चुनौती और आत्मसंघर्ष
तृतीय सत्र : शनिवार 25 नवम्बर 2001
अपरान्ह 200
विषय - समकालीन गुजराती / हिन्दी कहानी
प्रतिभागी - जितेन्द्र भाटिया
योगेन्द्र आहूजा
वीरेन्द्र कुमार बरनवाल
हर्षद त्रिवेदी
कथादेश, जनवरी 2002
लेखक को इकहरेपन से बचना चाहिए
एक्सप्रेस न्यूज अहमदाबाद सेप्ट 24
ट्रीट इन स्टोर फॉर फेन्स ऑफ हिन्दी लिटरेचर
संगमन का मिलन अहमदाबाद - गांधीनगर में
हंस दिसम्बर 2002
महत्वपूर्ण कथन - उपकथन
अपने से विपरीत तरह की कहानियां लिखने वाले जैनेन्द्र को प्रेमचन्द हमेशा प्रोत्साहित करते रहे. लेखक कोई भी हो सकता है अमीर या गरीब. संवेदना का महत्व ही साहित्य में विशेष है. - गोविंद मिश्र
सूचनातंत्र सामान्य जन को जिस तरह अपनी गिरफ्त में ले रहा है वह असह्य है. दृश्यमीडिया के बढते खतरों के बीच लेखन के प्रति हमें अपनी निष्ठा और ईमानदारी बचाए रखनी है. - प्रेमपाल शर्मा
लेखक को गांव की गलियों व खेतों की मेंड तक जाना होगा, क्योंकि असली जिन्दगी वहीं है.- रघुवीर चौधरी ( गुजराती के शीर्ष कथाकार)
दलित रचनाकार आत्मसंघर्ष नहीं करता बल्कि देखा हुआ और भोगा हुआ यथार्थ वर्णन करता है.- दलपत चौहान (गुजराती के दलित कथाकार)
दुनिया विकल्पहीन नहीं है लेकिन यह सही है कि साहित्यकारों की दुनिया सिमटती जा रही है. - स्वयंप्रकाश
आज का लेखक इतना संवेदनहीन है कि 26 जनवरी 2001 के दिन गुजरात में भीषण भूकंप आया और लोग जीवन - मौत से लड रहे थे. उसी समय दिल्ली में कहानीकार निर्मल वर्मा के सम्मान की पार्टी में बहुत से ख्यातनाम लेखक शराब की चुस्कियां ले रहे थे. - अजित राय( सांस्कृतिक पत्रकार)
रचना में आत्मसंघर्ष का होना जरूरी है. रचना में लेखक को इकहरेपन से बचना चाहिए. टॉलस्टॉय और टैगोर इसीलिए महान रचनाकार हैं कि उनकी रचनाओं में इकहरापन नहीं है. - वीरेन्द्र बरनवाल
गुजराती दलित साहित्य गुजराती साहित्य की मुख्यधारा में सम्मिलित हो चुका है. - मोहन परमार
मानव संवेदना की कोई भी बत कहानी का विषय हो सकती है.भारतीय कहानी यूरोप से भी बडा फलक प्राप्त कर चुकी है - भोला भाई पटेल
आज भारतीय भाषाओं की कहानी बडी सक्षम हुई है. यह दुख की बात है कि हम अपने देश की अन्य भाषाओं की रचनाएं पढ नहीं पाते हैं. - जितेन्द्र भाटिया
लेखक सुख - सुविधाओं के बीच रह कर भी अपनी संवेदनशीलता और आत्मसंघर्ष के माध्यम से अच्छी रचना कर सकता है. - ओमा शर्मा
परिशिष्ट
पहले दिन के सत्र के बाद संगमन के सभी साथी अक्षर पुरूषोत्तम मंदिर देखने निकले.
अगले दिन के दो सत्रों के बाद रात को नौ बजे अश्हमदाबाद के शानदार 'रजवाडू' होटल में जमीन पर बैठ कर सब लेखकों ने परंपरागत भोजन किया और उसके बाद गरबा नृत्य देखा. छब्बीस का पूरा दिन भ्रमण को समर्पित रहा. सबसे पहले अहमदाबाद की अडालज की बावडी देखी, फिर गांधीनगर में साबरमती आश्रम तथा अन्त में चित्रकार हुसैन व दोषी की लीक से हटकर बनायी गयी गुफा और हरविट्ज ग़ैलेरी देखी.
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