Sunday, September 27, 2009

आजादी का स्वप्न और 'मैला आंचल' का यथार्थ

संगमन - 13

28 - 30 अक्टूबर 2007
नैनीताल

पहाड़। हरे - भरे वृक्षों से लदे पहाड़। जैसे सदियसों सदियों से हरे रंग का चोला धारण कर तपस्यारत साधु वृन्द। जिसके सम्पर्क में आने के बाद ही मनुष्य ने जीने की कला सीखी, जीवन के सार तत्व को समझा और मुक्ति का बोधिसत्व पाया। इस वर्ष संगमन - 13 का आयोजन मौसम में बढती ठंडक के साथ, उत्तरांचल में बसे खूबसूरत शहर नैनीताल में सम्पन्न हुआ। स्थानीय संयोजक की जिम्मेदारी इस बार ली थी, महादेवी वर्मा सृजन पीठ, रामगढ ने। इस बार के प्रतिभागी थे -- सर्वश्री प्रभाकर श्रोत्रिय,असगर वजाहत,मैत्रेयी पुष्पा, वीरेन्द्र यादव, शंभू गुप्त, प्रेम कुमार, मणि, बटरोही, वीरेन डंगवाल, ॠषिकेश सुलभ, महेश कटारे, योगेन्द्र आहूजा, रणेन्द्र, प्रियदर्शन मालवीय, प्रेमरंजन अनिमेष, मनोज पाण्डेय, शशिभूषण, दिनेश कर्नाटक स्थानीय प्रतिभागियों में -- सर्वश्री उमा भट्ट, कपिलेश, नीरजा टण्डन, बल्ली सिंह चीमा, गंभीर सिंह पालनी, दीपक तिरुआ, शीला रजुवार, विनायक श्रीवास्तव, स्वाति मलकानी की सक्रिय भागीदारी रही

कार्यक्रम
प्रथम सत्र : 28 अक्टूबर 2007(नैनीताल क्लब)
अपरान्ह 200 से सायं 600 बजे तक
विषय - आजादी का स्वप्न और 'मैला आंचल' का यथार्थ

द्वितीय सत्र: 29अक्टूबर 2007 (महादेवी वर्मा सृजन पीठ,रामगढ)
प्रात: 1030 से 200 बजे तक
कहानी पाठ : शहतूत (मनोज कुमार पाण्डेय), शशिभूषण, प्रेमरंजन अनिमेष

तृतीय सत्र : 29 अक्टूबर 2007(महादेवी वर्मा सृजन पीठ,रामगढ)
अपरान्ह 200 से सायं 600 बजे तक
कहानी पर प्रतिक्रियाएं

चतुर्थ सत्र 31 अक्टूबर 2007(नैनीताल क्लब)
प्रात: 10 बजे
परिसंवाद: कहानी का समाज, समाज की कहानी

अख़बारों और पत्रिकाओं की रपट के कुछ अंश

द गौङसन्स टाइम्स, नई दिल्ली 16 दिसंबर 2007
आजादी का स्वप्न और 'मैला आंचल' का यथार्थ तथा
कहानी का समाज, समाज की कहानी

प्रेस से....
संगमन - 13

अख़बारों और पत्रिकाओं की रपट के कुछ अंश

आजादी का स्वप्न और 'मैला आंचल' का यथार्थ तथा कहानी का समाज, समाज की कहानी

'विश्व की सबसे अनूठी साहित्यिक आयोजन श्रृंखला 'संगमन' का 13वां आयोजन नैनीताल की सुरम्य वादियों में विगत दिनों(28 - 30 अक्टूबर) संपन्न हुआ।'
'मैला आंचल' का यथार्थ' विषय पर जहां प्रतिभागियों
ने आजाद भारत की तमाम समस्याओ पर मैला आंचल के रचनाकार फणीश्वर नाथ रेणु के सपने और रचनात्मक कल्पनाशीलता के आलोक में गंभीर मंथन किया, वहीं युवा रचनाकारों के कहानीपाठ और 'कहानी का समाज, समाज की कहानी' विषय पर परिसंवाद के द्वारा संगमन आयोजन को सीधे-सीधे पाठकों / श्रोताओं से जोडने का भी प्रयास किया।
(द गौङसन्स टाइम्स, नई दिल्ली 16 दिसंबर 2007)

संगमन में बोले गए कुछ महत्वपूर्ण कथन/उपकथन

'भारतीय समाज के शासक तबके जिसका निर्माण सवर्णों और जमींदारों द्वारा हुआ था- ने हमारी पीढ़ी को झूठी आज़ादी ही नहीं दिलवाई, झूठा इतिहास भी पढ़ाया। रेणु का 'मैला आंचल' हमें वास्तविक इतिहास से बेहतर ढंग से रु-ब-रू कराता है।' दूसरा पर्चा। प्रसिध्द आलोचक वीरेन्द्र यादव के विचार - 'रेणु ने 'मैला आंचल' के मेरी गंज गांव के बाल देव, बावनदास व कालीचरण जैसे बहुजन समाज के कालजयी पात्रों के माध्यम से पूरी स्वतन्त्रता को प्रश्नों के घेरे में ला. खड़ा किया है।'
प्रेम कुमार मणि

'मैला आंचल' का केन्द्रीय विचार गांधीवाद का टूट कर बिखरना ही माना जाना चाहिए।'- असगर वज़ाहत

'जितने ईश्वर, गुरू और बाबा है सब स्त्री का देह शोषण करते हैं। जितने अनिष्ट, अमंगल और अपशगुन है सब स्त्री के कारण है।'
मैत्रेयी पुष्पा

'गांधी की आजादी में अब एक और आज़ादी शामिल होनी चाहिए और वह है दलित और स्त्री की आज़ादी।' प्रभाकर
श्रोत्रिय

'लेखक का काम उद्वेलित करना है, किसी समाधान तक पहुंचाना नहीं।' -प्रभाकर श्रोत्रिय

'नये येवा लेखक शिल्प पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। 'नये लेखकों को सोचना चाहिए कि हम पिछले लेखकों से कितने कदम आगे बढ़े है।' प्रभाकर श्रोत्रिय

'ऐसे विमर्श अपने समय के यथार्थ से भिड़ने के लिए दृष्टि देते है।'-बटरोही

'बदलते आर्थिक आधार के कारण सामाजिक सम्बन्ध-जटिल से जटिल होते जा रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में इतिहास हमारी भाषा और ज़िन्दगियों पर टूट कर गिरा है। हमारी स्मृतियों और संवेदनाओं पर चौतरफा हमला हो रहा हैं। यह ऐसा वक्त है, जिसमें हमारा सब कुछ दांव पर लगा है।' -योगेन्द्र आहूजा

'जिस कहानी का ज्यादा जिक्र होता है वह हिन्दुस्तान की कहानी नहीं होती।' -महेश कटारे

'जो समाज बदला है, उसमें स्त्रियों के लिए जो बातें अहितकर थी उन्हें अस्वीकार किया गया है। पहले मारने वाला सहने वाले की भी कहानी लिखता था, अब सहने वाला अपनी कहानी खुद लिखने लगा है।' - मैत्रेयी पुष्पा

'पुराने ढंग का समाज टूट रहा है और नये ढंग का समाज बनना शुरू हुआ है। ब्राह्मणवाद पिछड़ी जातियों में भी शुरू होने लगा है।' - ऋषिकेश सुलभ

'अवसाद और हताशा मध्यमवर्ग की बीमारी है। हिन्दी कहानी का चरित्र मध्यमवर्ग के चरित्र से ग्रस्त हो गया है।' देवेन्द्र

'उम्मीद जगाने का काम पुरानी कहानियां कर चुकी है।' दिनेश कर्नाटक

'अवसाद हमारे साहित्य में आया है और आयेगा। यह अवसाद द्वितीय विश्वयुध्द के बाद योरोप में आया था। हमारे यहां भी ऐसी स्थितियां पैदा हो चुकी है।' प्रेमकुमार मणि 'साहित्य समाज का आईना है। यह चीजों को की छोटी तो कभी बड़ी करके दिखाता है।'- प्रेमरंजन अनिमेष-

'रूप कोई कथ्य निर्धारित नहीं करता। मध्यवर्गीय लेखक जड़हीन हो गया है इसीलिए वह शिल्प से कहानी शुरू करता
है'
वीरेन्द्र यादव

'स्त्री और दलित हाशिए पर थे, हमें उन्हें केन्द्र में लाना चाहिए।' - प्रेम कुमार मणि

परिशिष्ट

साहित्यिक समस्याओं के लिए चार सत्र भी मानो कम पड रहे थे इन्हीं के बीच भ्रमण का आनन्द भी चुराना था प्रथम और अंतिम सत्र तो नैनीताल के प्रसिध्द 'नैनीताल क्लब' में हुए थे जो अपने आप में खुशगवार जगह हैप्रथम सत्र के बाद गाडियों से नैनी झील के आस पास लेखक घूमते हुए गरम भुट्टों का और मालरोड पर पैदल सैर का आनन्द लेते रहे

दूसरा और तीसरा सत्र 29 तारीख को नैनीताल से लगभग 25 कि मी दूर रामगढ में रखा गया था सेब के बाग, सुन्दर पहाडी ज़ंगल और पहाड क़े बीच बस की यात्रा अपने आप में एक पिकनिक थी रामगढ़ के निकट जब हम पहुंचे तो पर्वताराही पुरुमल सिंह धर्मसक्तू ने हमें यह जानकारी दी कि बिमल राय की 'मधुमति' फिल्म की अधिकतर
शूटिंग रामगढ़ की इन्हीं सुरम्य वादियों में हुई थी। 'सुहाना सफ़र और ये मौसम हंसी' व 'दय्या रे दय्या चढ़ गयो पापी बिछुव...., यहीं पर शूट हुए थे।

जब रामगढ स्थित छायावाद की महान कवियत्री 'महादेवी वर्मा' के ग्रीष्मकालीन आवास 'मीरा कुटीर' पहुंचे तो वहां का सौंदर्य अवाक करने वाला था नंदादेवी के विभिन्न रूपों में ढले हिमशिखरों को देख कर लगा कि महादेवी वर्मा ने अपने सृजन के लिए मानो एक स्वर्ग ही चुन लिया था पहाडाें के बीच किसी देवस्थली सा स्थापित 'मीराकुटीर' वहां महादेवी वर्मा जी की डैस्क और कलम - दवात, लैम्प्स, पुस्तकें, उनकी पेन्टिंग्स, समकालीन लेखकों के छायाचित्रयह सब देखकर मन श्रध्दा और गर्व से भर गया कि हम 'मीरा कुटीर' में बैठ कर साहित्य चर्चा कर रहे हैं

संगमन की टीम के लिए 'युगमंच' संस्था ने बटरोही की कहानी 'घर कहां है' पर आधारित नाटक के मंचन का कार्यक्रम नैनीताल क्लब के शैले हाल में रखा था। कार्यक्रम सायं 7.00 बजे था। दिन में दो सत्र हुए थे। सब ने रामगढ़ का आने-जाने का पहाड़ी सफ़र भी तय किया था। मानसिक और शारीरिक थकान सब पर तारी थी। नाटक देखने वक्त पर पहुंचना संभव नहीं हो पाया। नाटक शुरू हो चुका था। आधे अधूरे नाटक के साथ मन रमा नहीं था।

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