संगमन - 5
3 से 5 सितम्बर 1999
धनबाद
धनबाद -
वरिष्ठों में राजेन्द्र यादव, गिरिराज किशोर, दूधनाथ सिंह, प्रभाकर श्रोत्रिय उपस्थित थे।
बाद की पीढी क़े कथाकारों में संजीव, जयनंदन, मैत्रेयी पुष्पा, नीलिमा सिंह, अरविन्द चतुर्वेदी,
मधु कांकरिया, सृंजय,गौतम सान्याल,वीरेन्द्र यादव, देवेन्द्र,चन्द्र किशोर जायसवाल, अरविंद जैन
ॠषिकेश सुलभ,शैलेन्द्र सागर,हेमन्त कुमार,लवलीन,प्रतिभा कटियार, वासुदेव,जेब अख्तर,राजेन्द्र लहरिया,सुनील सिंह,प्रहलाद चन्द्र दास,महावीर राजी,संतोष दीक्षित,भारत भारद्वाज,रामधारी सिंह दिवाकर,अवधेश प्रीत
कार्यक्रम
3 सितम्बर शुक्रवार 1999, नेहरू कॉम्पलेक्स ( कोयला नगर)
अपरान्ह 230 बजे स्वागत
प्रथम सत्र अपरान्ह 3 30 से 6 बजे तक
विषय - विगत दो दशकों का कथा - साहित्य: प्रवृत्तियां व पडाव
शनिवार, 4 सितम्बर 1999
परिक्रमा : कोयलांचल ( प्रात: 8 बजे)
द्वितीय सत्र - अपरान्ह 3 से 6 बजे तक
विषय - लेखक के प्रकाशन सम्बन्धी कानूनी अधिकार
रविवार,5 सितम्बर 1999
तृतीय सत्र - प्रात: 10 से अपरान्ह 1 बजे तक
विषय - नए कथा आलोचक : उपलब्धियां, सीमाएं व संभावनाएं
समापन सत्र - अपरान्ह 2 से 4 बजे तक
विषय -नई पीढी क़ा लेखकीय विकर्षण : एक आकलन
संगमन - पांच: धनबाद में हुई हिन्दी कहानी की परवरिश
कथादेश, नवम्बर, 1999
महत्वपूर्ण कथन - उपकथन
पिछले दो दशकों में हिन्दी साहित्य में जितने झरोखे खुले हैं सब कथाकारों ने खोले हैं। आलोचकों ने एक भी नहीं खोला। - गौतम सान्याल
नए कहानीकार जिनका पल्लवन, अंकुरण अभी हो रहा है उन्हें इस आलोचना, चर्चा व बहस आदि से बचाते हुए उनकी ऊर्जा को सहेजना आज बहुत जरूरी है। - संजीव
मैं ने करीब डेढ सौ, पौने दो सौ अंकों से निकल रही पत्रिका में अगर अपनी कहानी छाप ली तो इतना बवाल क्यों है? क्या संपादक होने के बाद मैं लेखक नहीं रहा?- राजेन्द्र यादव
आलोचना अभिनन्दन पत्र नहीं होती।- प्रभाकर श्रोत्रिय
परिशिष्ट
1 संगमन - 5 का आयोजन जिस विशाल सभागार में किया गया था। उस सभागार को कथाकारों की उपस्थिति से पहले ही कथामय बना दिया था रामबाबू के कथा - पोस्टरों ने। पोस्टरों पर कुछ महत्वपूर्ण कथाकारों की खास कहानियों के अंशों को कलात्मकता के साथ उध्दृत किया गया था। उसमें अंकित थे कुछ इलेस्ट्रेशन। प्रसिध्द कथाकारों
की कहानियों पर बने पोस्टर सभागार को जीवन्तता दे रहे थे।
2 दूसरे दिन हुई कोयलांचल परिक्रमा - संगमन की बस में भर कए देश भर के छोटे बडे क़थाकारों का जत्था निकल पडा कोयले की उन खानों को करीब से देखने जिनके बारे में सिर्फ सुना या पढा था। रोमांचक अनुभव था। रास्ते इतने बेढब थे कि हैरानी हो रही थी कि आगे कैसे बढ रहे हैं।
बस के रुकते ही कोयले की खदानों का नजारा सामने था। गोल गोल घूमती चक्करदार गहराइयों में मशीनों से ट्रालियों में भर कर कोयला इधर - उधर ले जाया जा रहा था। कोयले की खदानों के भीतर हर कोई जाने को उत्सुक था।मगर बिजली चले जाने की वजह से कोई न जा सका।
वापसी में सबने वर्षों से जमीन की सतहों के नीचे दबे कोयले में लगी आग पर बसे झरिया गांव के दुस्साहसी लोगों को देखा। वहां की जमीन धंसती रहती है और जमीन में पडी बडी दरारों में से धुंआ निकलता रहता है। लाख सरकार चेताये मगर ये लोग वहां से जाते नहीं हैं।
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