Thursday, August 11, 2022

आलोचना



कथा आलोचक शशिभूषण मिश्र की नजर में


    उदय प्रकाश और शिवमूर्ति ने हिन्दी कहानी को जिस प्रस्थान बिंदु पर लाकर खड़ा किया वह अभूतपूर्व है। उदय ने जहाँ पीली छतरी वाली लड़की (2001), दत्रात्रेय के दुःख (2002), मेंगोलिस (2006) अरेबा परेबा (2006) जैसी कहानियाँ सिरज कर हिन्दी कथा को नया मोड़ दिया (नयी सदी के ठीक पहले आई उनकी कहानियों के नाम यहाँ नहीं हैं) वहीं शिवमूर्ति ने केसर कस्तूरी, तिरिया चरित्तर, बनाना रिपब्लिक, अकालदंड, कसाईबाड़ा, सिरी उपमा जोग, भारतनाट्यम, ख्वाजा ओ मेरे पीर जैसी कहानियों से न केवल अपार लोकप्रियता अर्जित की बल्कि कहानी में किस्सागो की भूमिका को समृद्ध किया।

Wednesday, August 10, 2022

यत्र विश्‍वं भवत्येक नीडम् (Yatra Vishwam Bhavatyek Needam)

 

यत्र विश्‍वं भवत्येक नीडम्


शिवमूर्ति

    अज्ञात के प्रति आकर्षण दुर्निवार होता है।

    घर के ठीक पीछे से होकर पक्की सड़क गुजरती थी। उस पर स्टेयरिंग सँभाले ट्रक या बस के ड्राइबरों को गुजरते देखता तो लगता कि दुनिया में सबसे खुशकिस्मत लोग यही हैं। पता नहीं कहाँ-कहाँ तक घूमते हैं। बड़े होकर ड्राइवर ही बनेंगे और जहाँ तक मन करेगा, घूमते रहेंगे। यदि इन बड़ी गाड़ियों के पीछे कोई छोटी गाड़ी जाती दिखती तो समझते कि यह आगे जाने वाली बड़ी गाड़ी का बच्चा है। पीछे छूट गया है।

Sunday, August 7, 2022

सम्‍मान

 

सम्‍मान

 






मसाईमारा के जंगल (Masaimara Ke Jangal)

 

मसाईमारा के जंगल

शिवमूर्ति

    जंगल के प्रति मेरा आकर्षण बचपन से रहा है। शायद इसका कारण बचपन में सुनी गयी वे कहानियां और गीत हैं जिनमें जंगल बार-बार आता है। किसी राजकुमार को देश निकाला होता था तो वह जंगल की राह पकड़ता था। राम और पॉडव जंगल-जगल भटके थे। कोई राजा अपनी रानी से नाराज हो जाता था तो या तो वह महल के बाहर कउआ हकनी बन कर गुजारा करती थी या जंगल में चली जाती थी।

एक बन गइली, दूसरे बन गइली, तिसरे बन ना!

मिले गोरू चरवहवा तिसरे बन ना!!

    तीसरे वन में जाते-जाते चरवाहे मिल जाते थे। वे रानी के दुख से दुखी होते थे। भूखी प्यासी रानी को दूध पिलाते थे।

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