Sunday, June 24, 2018

कुच्‍ची का कानून : वंचित अस्मिताओं की यथार्थ अभिव्‍यक्ति (समीक्षा)



कुच्‍ची का कानून : वंचित अस्मिताओं की यथार्थ अभिव्‍यक्ति

अनुराधा गुप्‍ता

      ‘‘लेखक की सिंसियरिटी का प्रश्‍न वस्‍तुत: उसके अंतर्जगत की अभिव्‍यक्ति से सम्‍बन्धित है। यदि वह अभिव्‍यक्ति कृत्रिम है तो नि:संदेह वहां सिंसियरिटी नहीं है। किन्‍तु कृत्रिमता केवल इन्सिंसियरिटी की ही उपज नहीं होती, वह अकविता की उपज होती है अर्थात् अंतर्जगत की निर्जीवता और जड़ता का प्रमाण होती है।’’ (मुक्तिबोध : नए साहित्‍य का सौंदर्यशास्‍त्र)
    
    निश्चित तौर पर कविता अर्थात् साहित्‍य सिंसियरिटी अर्थात् सम्‍वेदना और अंतर्जगत की चेतना की उपज है। सम्‍वेदना साहित्‍य की नींव है जिसके बगैर उसके अस्तित्‍व की कल्‍पना बेमानी। यही वह प्रमुख तत्‍व है जो साहित्‍य को साहित्‍य बनाता है तभी उसे भाव या शक्ति का साहित्‍य कहते हैं। (spontaneous overflow of powerful feelings)। शिवमूर्ति का कथा साहित्‍य इसकी सशक्‍त बानगी है। वे मानवीय सम्‍वेदनाओं के समर्थ वह सजग लेखक हैं, इंसानी जज्‍बातों को वे जिस कुशलता से उकेरते हैं ये उनकी चेतना और सिंसयरिटी के कारण ही सम्‍भव होता है।

Saturday, May 5, 2018

(शिवमूर्ति की कहानियां) Published in samved 106 (समीक्षा)


ग्रामजीवन का विद्रूप एवं कथारस का आस्‍वाद


राम विनय शर्मा

त्रिलोचन जी ने कहा है कि ‘‘भाषा को लेखक के सम्‍पर्क में जाना होगा।...बोलचाल की भाषा से ही साहित्‍य का विस्‍तार होता है।’’ शिवमूर्ति ने अपनी कहानियों में ऐसी ही भाषा का उपयोग किया है। यह भाषा उस परिवेश का अटूट हिस्‍सा है, जहां से कहानी के पात्रों को उठाया गया है। उनकी कहानियों के पात्र, परिवेश, भाषा और समाज परस्‍पर घुले-मिले हैं। ये पात्र, भाषा और परिवेश शिवमूर्ति के अनुभव से नि:सृत एवं सम्‍बद्ध हैं। उन्‍होंने जीवन को कलात्‍मत ढंग से अपनी कहानियों में उतारकर रख दिया है। यही कहानी कला का उत्‍कर्ष भी माना जाता है। उनके लेखन में मनुष्‍य के प्रति आत्‍मीयता की एक अविरल धारा बहती है। शिवमूर्ति ने कुल आठ कहानियां लिखी हैं। इन्‍हीं के बल पर उन्‍हें कहानीकार के रूप में विशिष्‍ट पहचान मिली है। परिमाण में कम, लेकिन प्रभाव में अप्रत्‍याशित विस्‍तार लिए शिवमूर्ति की ये कहानियां ग्रामीण समाज के विभिन्‍न पक्षों का निरूपण करती हैं। लोक और जन उनकी कहानियों के प्राणतत्व हैं। उनकी वर्णन-शैली रोचक है। स्‍त्री और दलित जीवन की दशा और दिशा उनकी कहानियों का प्रमुख उपजीव्‍य है। स्‍त्री की यातना को उन्‍होंने संवेदनशीलता के जिस धरातल पर वर्णि‍त किया है, उससे उनकी कहानियां अधिक ग्राह्य, मार्मिक और प्रभावशाली बन गयी हैं।

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