Wednesday, November 2, 2016

लागा चुनरी में दाग़ : शिवमूर्ति निर्दाग लेखक की दागी कहानी

मणिका मोहिनी
सबकी चुनरियाँ दाग-दगीली नहीं होतीं. अब शिवमूर्ति को ही देख लीजिए। हालाँकि मैं इन्हें व्यक्तिगत रूप से नहीं जानती और यह स्तम्भ लिख रही हूँ व्यक्तिगत रूप से जाने गए लेखकों पर ही. मैं न इनसे कभी मिली हूँ, न कभी मिलूँगी, इसलिए ये तो इसमें कहीं फ़िट होते नहीं। लेकिन इनका लेखन मुझे पसंद है. जिस लेखक का लेखन पसंद हो, वह लेखक भी पसंद ही होता है.
शिवमूर्ति जी ने मानो मुझे बीच में टोक कर बताया है कि मैं उनसे मिल चुकी हूँ. मैं अतीत की बहुत सारी बातें भूल गई, परन्तु यह कैसे भूल गई, यह मुझे याद नहीं. शिवमूर्ति जी ने लिखा है, ‘आपका यह कहना सही नहीं है कि आप मुझे नहीं जानतीं या मुझसे कभी मिली नहीं हैं. जान भले ही न पाई हों लेकिन आज से 27-28 साल पहले आपने मुंबई के अपने अपार्टमेंट में मुझे डिनर भी कराया है. उस समय होस्ट के रूप में आपके साथ एक अन्य महिला भी थी. खिलाने वाला भले भूल जाए लेकिन खाने वाला कैसे भूल सकता है? आप दोनों की उस समय की छवि मेरे मन में अभी तक अंकित है. उस समय मैं तिरिया चरित्तर पर फिल्मांकन हेतु पटकथा तैयार कराने गया था. मैं सालों से आपका फेसबुक फ्रेंड भी हूँ. आप द्वारा अपरिचित बताए जाने से मेरा दिल टूटने-टूटने को हो गया है. लगता है, तिरिया चरित्तर के अधूरी कहानी होने का आपका उलाहना मेरे मन में कहीं अंकित हो गया था. इसका परिणाम है, मेरी लम्बी कहानी ‘कुच्ची का कानून’ जो उपन्यास के रूप में छपी है. बहुत सारे लोग इसे तिरिया चरित्तर से आगे की कहानी कह रहे हैं.’
शिवमूर्ति प्रबुद्ध लेखक हैं, जिन्होंने स्त्री के उत्पीड़न को, उसके प्रति होने वाले अन्याय को महसूस करके लिखा। उन्होंने नब्बे के दशक में औरत की ज़बरदस्त वकालत करते हुए एक बहुत ही खूबसूरत कहानी लिखी : तिरिया चरित्तर, जिस पर नसीरुद्दीन शाह एवं ओम पुरी अभिनीत फिल्म बनाई जा चुकी है. इसमें मुख्य पात्रा विमली के साथ व्यभिचार करने की मंशा लिए उसका श्वसुर जब अपने कुत्सित उद्देश्य में सफल नहीं होता तो वह समाज के सम्मुख उसे कलंकित घोषित कर देता है. विमली के सच्चरित्र होने पर भी दुश्चरित्र पुरुष-प्रधान समाज द्वारा उसे अंगारों से दाग दिया जाता है. लेखक ने इस कुशलता से विमली जैसे सामर्थ्यवान, सच्चरित्र, उसूलों के पक्के चरित्र को गढ़ा है कि वह पाठक को बहुत दूर तक अपने साथ बहा लिए चलने की क्षमता रखता है. लेकिन शिवमूर्ति भाय, आपने इस कहानी को अधूरा क्यों छोड़ दिया? विमली जैसे सबल पात्र की कहानी दाग दिए जाने पर समाप्त नहीं होती। सच पूछिए तो असली कहानी वहीँ से शुरू होती है. क्योंकि उसके अपने चरित्र की छुपी हुई सम्भावनाएँ दागे जाने के क्लाइमेक्स के बाद ही उभरेंगी। और तब जो हश्र होगा, उसका क्लाइमेक्स इस क्लाइमेक्स से भी बड़ा होगा। शिवमूर्ति भाय, आपको इससे आगे का कहानी लिखनी है.
65 वर्षीय कथाकार शिवमूर्ति ने पिछले वर्ष डा. शकुंतला मिश्रा पुनर्वास विश्व विद्यालय में एम ए हिंदी में प्रवेश के लिए फॉर्म भरा था. इसी यूनिवर्सिटी के एम ए के कोर्स में उंनकी कहानी ‘तिरिया चरित्तर’ पढ़ाई जाती है, तो अब शिवमूर्ति भाय एम ए में अपनी लिखी कहानी पढ़ेंगे और उस पर प्रश्नोत्तर तैयार करके परीक्षा भी देंगे? शिवमूर्ति जी का कहना है कि उन्होंने बी ए ज़रूर किया है लेकिन यूनिवर्सिटी वह पहली बार जाएँगे। उनके बच्चे बड़े हो चुके हैं, सेटल हो गए हैं, इसलिए उन्हें लगा कि आगे और पढ़ाई पढ़ लेनी चाहिए। बधाई हो, इसे कहते हैं, कर्मशील एवं सकारात्मक जीवन जीना. शिवमूर्ति भाय, आप सफल हों, अन्य बंधुगण आपसे प्रेरणा लें.
इनकी कुछ पुस्तकों के नाम हैं, त्रिशूल (उपन्यास), तर्पण (उपन्यास), आखिरी छलाँग (उपन्यास), केशर कस्तूरी (कहानी संग्रह). इन्हें कई पुरस्कार / सम्मान मिल चुके हैं, कथाक्रम सम्मान, हंस पुरस्कार, सृजन सम्मान, अवधभारती सम्मान, लमही सम्मान।
(मैंने ‘तिरिया चरित्तर’ कहानी की समीक्षा की थी जो ‘एक श्रेष्ठ लेकिन अधूरी कहानी’ शीर्षक से छपी थी और मेरी पुस्तक ‘प्रसंगवश’ में संकलित है. भाय शब्द का प्रयोग ‘ख़ास मित्र’ के अर्थ में शिवमूर्ति ने इस कहानी में किया है, जो मुझे बहुत अच्छा लगा.)

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