Wednesday, November 2, 2016

लड़ाकुओं के लिक्खाड़ हैं शिवमूर्ति: बिस्मिल्लाह


एनबीटी, लखनऊ। लेखक को अपने रचना संसार में सपने देखते हुए अतियथार्तवादी होना चाहिए। भले ही सपने साकार हो या न हों। वह सपने की अनुभूति में ले जाते हुए पाठकों को अतियथार्तवाद के दर्शन करवाता है। वह लेखक लगातार रचनाशील रहेगा जो अतियथार्तवादी रहेगा। यह विचार लेखक अब्दुल बिस्मिल्लाह ने हिंदी संस्थान के यशपाल सभागार में रविवार को इनसाइड इंडिया की साहित्य वार्षिकी के लोकार्पण के अवसर पर कहीं। कार्यक्रम में वह लेखक शिवमूर्ति के रचना संसार विषय पर बोल रहे थे। अतियर्थातवादी लेखन के सिलसिले में बिस्मिल्लाह ने दिनकर, फैज की कविताओं के साथ शिवमूर्ति की कहानियों की भी चर्चा की। उन्होंने कहा शिवमूर्ति की कहानी में महिलाएं कैकेयी की तरह खड़ी मिलती हैं, जो विपरीत परिस्थितियों के सामने बेचारी नहीं बल्कि लड़ाकू हैं और शिवमूर्ति इन लड़ाकुओं के लिक्खाड़ हैं।कहानीकार मदन मोहन ने कहा शिवमूर्ति की कहानियां प्रेमचंद की परंपरा में मौजूदा दौर में खरा लेखन हैं। उनके लेखन में इंसान की करुणा, गरीबी, शोषण और वंचितों का दर्द है। लेखक शैलेंद्र सागर ने कहा शिवमूर्ति निसंदेह ग्रामीण चितेरे हैं और उनका लेखन आज के दौर की जरूरत है। लेकिन आज गांव के परिवेश बदल रहे हैं, मोबाइल, कंप्यूटर के विकास के दौर में उन्हें अपने लेखन में तकनीकी विकास को भी शामिल करना होगा। लेखक संजीव ने कहा रचनाप्रक्रिया के दौरान लेखक कोई पुनरावलोकन नहीं करते हैं। अगर पुनरावलोकन करते तो कई कहानियां और उपन्यास बन जाते। कार्यक्रम में कहानीकार अखिलेश ने भी विचार रखे। आयोजन में बड़ी संख्या में लेखक साहित्यप्रेमी मौजूद रहे।

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