Friday, December 28, 2012

देवि माँ सहचरि प्राण

लमही पत्रिका के शिवमूर्ति विशेषांक के लिए इसके अतिथि सम्पादक सुशील सिद्ार्थ ने मेरी मित्र शिवकुमारी जी का साक्षात्कार लिया था जो ब्लॉग के पाठकों के लिए प्रस्तुत है-उचय-उचय

देवि मां सहचरि प्राण !

सचमुच, उस समय कबीर की ये पंक्तियां मन में जाग गईं:

’तू कहता कागद की लेखी

मैं कहता आंखिन की देखी।’

और मु-हजये ही क्यों, स्वयं शिवमूर्ति को भी कबीर याद आए थे। जब उन्होंने गौतम सान्याल से कहा था, ’आपको उसकी प्रतिभा का अंदाजा नहीं गौतम, वह भले ही निरक्षर है मगर जीवन के आखर उसने कबीर की तरह खूब प-सजय़े हैं।’ उसने यानी शिवकुमारी ने।

शिवकुमारी का नाम शिवमूर्ति के वृतान्त में एक सहज अनिवार्यता प्राप्त कर चुका है। दोनों के नाम का आरम्भ शिव से। इससे भी एक सुविधा मिली संस्मरणकारों मित्रों को। एक विख्यात जोड़ा उठाया ’तीसरी कसम’ से। शिवमूर्ति फणीश्वरनाथ रेणु के अनन्य भक्त! तो उनके पात्रों को आत्मसात कर लिया होगा। लिहाजा रूपक उभरा ’हीरामन-ंउचयहीराबाई’। शिवमूर्ति हीरामन और शिवकुमारी हीराबाई। और इस हीरामन हीराबाई की कथा मित्र लेखकों ने इतनी बार सुनाई कि मन में एक धारणा बन गई। धारणा के आधार को पुख्ता करते कुछ वाक्य........कुछ निष्कर्ष:

1.    ’जीने की शिवमूर्तियाना अंदाज’ में कथाकार संजीव प्रसंग आने पर अवधी का बिरहा उद्धृत करते हैं। मतलब निरहू गड़रिया इसलिए बिरहा गा रहे हैं क्योंकि ’जेकर मेहरि दुई चार।’ उद्धरण के बाद संजीव का विश्लेषण, ’शिवमूर्ति बिरहा गाते रहे, कूटने पीसने का फ्रंट संभाला सरिता जी ने। मगर वह तो कुल जमा एक ही मेहरि हुई, बाकी........? क्या पतुरिया शिवकुमारी?’

2.    ’कसाईबाड़े में बुद्ध’ में कथाकार-ंउचयपत्रकार राजेन्द्र राव भी असमंजस में हैं कि ’गंवई पतुरिया’ शिवकुमारी के साथ ’क्या था इस अनाम रिश्ते का आधार जो कई दशक बीतने के बावजूद अभी भी कायम है।’

3.    शिवमूर्ति से की गई बातचीत में गौतम सान्याल लिखते हैं कि शिवकुमारी के कमरे में क-सजय़ाई के नमूनों की तरह दो तस्वीरें टंगी रहती थीं। एक में सरस्वती की आकृति थी तो दूसरे में जॉन कीट्स की काव्य पंक्ति दर्ज थी, जिसका अर्थ है-ंउचय सबसे प्यारा होता है, जब वह आंसुओं से ओतप्रोत होता है। इस पर गौतम की मार्मिक टिप्पणी है, ’....... ये पहले तकिए की खोल पर का-सजय़े गए थे, बाद में शिवकुमारी ने इसे तकिए से उतारकर फ्रेम में म-सजय़ दिया था?

4.    अपने पुनः पुनः प्रकाशित चर्चित संस्मरण में दिनेश कुशवाह लिखते हैं, ’शिवमूर्ति मु-हजये उनसे मिलाने ले गए थे। मैंने देखा कि वह गरीब दुखियारिन शिवमूर्ति की फ्रेंड, फिलॉसफर, गाइड तीनों हैं।’

इन सबके साथ ’मैं और मेरा समय’ में शिवमूर्ति ने स्वयं अपनी दोस्त शिवकुमारी के विषय में बेहद संवेदनशीलता के साथ लिखा है। उन्होंने कई रिश्तों को नाम देते हुए यहां एक असमर्थता भी प्रकट की, ’पर शिवकुमारी के साथ पनपे रिश्ते को मैं आज तक कोई नाम नहीं दे पाया। दोस्ती शब्द एकदम अपर्याप्त है पर काम इसी से चलाना होगा। कब हुई शिवकुमारी से जानपहचान? कब हम नजदीक आए? कुछ अता पता नहीं! लगता है पैदा होने के दिन से ही परिचित थे।’

तो इतना सब प-सजय़ने और कितना सब सुनने के बाद यह जिज्ञासा सहज थी कि आखिर इस शिवपुराण में शिवकुमारी का मिथक है क्या? जिज्ञासा पनपती रही और मिथक गा-सजय़ा होता रहा।

तभी शिवमूर्ति को ’लमही सम्मान’ देने की घोषणा हुई। भाई विजय राय ने घोषणा में इतना और जोड़ा कि इस अवसर पर लमही का शिवमूर्ति विशेषाांक प्रकाशित होगा। फिर उन्होंने मु-हजये सूचित किया कि आप इस विशेषांक के अतिथि सम्पादक होंगे। इससे पहले मैं लमही का ’कहानी एकाग्र’ अंक सम्पादित कर चुका था। जब यह सूचना कुछ चतुर सुजान लोगों तक पहुंची तो उनमें से एक अति चतुर ने विजय राय से फोन कर पूछा कि क्या सुशील सिद्धार्थ लमही के ’स्थाई अतिथि सम्पादक’ हो गये हैं। विजय राय ने उत्तर दिया कि नहीं, अभी वे परिवीक्षण पर हैं। बहरहाल, सम्पादक की जिम्मेदारी आते ही जो बातें तय कीं, उनमें से एक यह भी कि अब शिवकुमारी से मुलाकात करनी ही करनी है।

पता लगाया तो मालूम हुआ कि शिवकुमारी अपने परिवार के बीच मुम्बई में हैं। कोई बात नहीं! मुम्बई जाएंगे। विजय राय भी तैयार। तभी शिवमूर्ति ने एक दिन फोन किया कि पार्टनर! मुम्बई जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। शिवकुमारी कुरंग आई हुई हैं। वाह! संयोग हमारी अगुवाई कर रहा है। यह तो बाद में कुरंग में खुद शिवकुमारी जी ने बताया कि वे हमसे बातचीत करने के लिए ही यहां आई हैं। कुछ घरेलू मसले भी थे। जो इस बहाने साथ जुड़ गए थे।

हमने कभी शिवमूर्ति का गांव नहीं देखा था, जिसके बारे में उनके मित्र बताते हैं ’अवसि देखियइ देखन जोगू।’ कुछ ही दिन पहले लता शर्मा और राजेंद्र राव कुरंग गए थे। दोनों के संस्मरण उत्सुकता ब-सजय़ाने वाले थे। बहरहाल, शिवमूर्ति, सरिता जी, विजय राव और मैं 18 मई 2012 को कुरंग पहुंच गए।

और 18 मई की शाम शिवकुमारी जी से मुलाकात हुई। 19 मई को उनसे लम्बी बातचीत हुई। शिवमूर्ति ने सही कहा था कि उन्होंने जीवन के आखर खूब प-सजय़े हैं। दो दिन की मुलाकात और बातचीत ने उनके प्रति मेरे मन पर जो प्रभाव डाला वह अद्भुत है। पहले की सारी धारणाएं ध्वस्त हो गईं। रूपकों उपमाओं के किले

शिवकुमारी जी से जो बातचीत हुई, वही इस आलेख का आधार है। उनको देखते सुनते बोलते बतियाते जो अनुभव मिला उसने बताया कि ’हीरामन हीराबाई’ की तुलना कितनी ओछी और अर्थहीन है। हीराबाई क्या इसलिए कि शिवकुमारी बेड़िन जाति में जनमी थीं! क्या इसलिए कि वे शुरुआत में नाचने गाने का काम करती थीं! क्या इसलिए कि इस पेशे के अन्य निहितार्थ भी थे। स्त्री-ंउचयपुरुष सम्बन्धों से केवल श्रृंगार रस निचोड़ने वाले ही ’हीरामन हीराबाई’ का रूपक खड़ा कर सकते थे। इन्होंने शिवमूर्ति के ये वाक्य प-सजय़ कर भी नहीं प-सजय़े, ’पतुरिया, वेश्या, बेड़िन! ये शब्द पूरे देश में अपमान और तिरस्कार के प्रतीक हैं। इन्हें देखने की मेरी दृष्टि में जो परिष्कार हुआ है वह शिवकुमारी के सान्निध्य के अभाव में शायद कभी न होता।’

आखिर क्या है इस सान्निध्य का अर्थ? जिसे सम-हजयने में अक्सर लोग चूकते रहे। जिसे शिवकुमारी जी से मिले बिना........उनसे बात किए बिना  सम-हजया ही नहीं जा सकता। उनसे मिल कर.......उनका साक्षात्कार लेकर जो सम-हजय पाया वह पाठकों के लिए प्रस्तुत है।

’अम्मा! देखो मास्टर साहब आए हैं।’ जब हम शिवकुमारी जी के घर पहुंचे तो उनकी बेटियां और बेटियों के परिवार के कुछ सदस्य खुले खुले आंगन मंे मौजूद! परिवेश में एक हड़बड़ी, क्रोध और असुरक्षा का एहसास। पता चला मकान कि जमीन को लेकर पड़ोसियों से एक दो दिन पहले ही -हजयगड़ा हो चुका है। एक बेटी के हाथ पर प्लास्टर बंधा था। चारों ओर तनाव की छाया। ..... हम एक बड़े से कमरे में पहुंचे, जिसमें प्लास्टर वगैरह होना बाकी था। तभी एक ओर से शिवकुमारी जी ने प्रवेश किया। शरीर पर सामान्य सी साड़ी.....आंखों पर चश्मा। शिवमूर्ति को देखते ही उनका मन और चेहरा खिला उठा। शिवमूर्ति ने हमारा परिचय कराया। ये हैं विजय राय.......ये हैं सुशील सिद्धार्थ। उनको हमारे आने का प्रयोजन मालूम था। बताने लगीं कि आते ही जगह जमीन का -हजयगड़ा शुरू हो गया। मारपीट हुई। थाना चौकी की नौबत आ गई। फिर वे कुछ लोगों का नाम लेकर विवरण देने लगीं। परिवार के बाकी सदस्य छूट रहे प्रसंगों को जोड़ रहे थे। मैं शिवकुमारी जी को देख रहा था। क्या बातें हो रही हैं, इसे एक पार्श्व कोलाहल की तरह अनुभव कर रहा था। अगले दिन मिलने की बात तय कर हम वहां से चले।.....अगले दिन शिवमूर्ति के घर पर शिवकुमारी जी से बातचीत हुई। ऐसी बातचीत जिसने जीवन में छिपे जीवन को देखने की मेरी दृष्टि बदल दी।

शिवकुमारी शिवमूर्ति को मास्टर साहब कहती हैं। सच इसके विपतरीत है। कायदन शिवकुमारी शिवमूर्ति की मास्टर साहब हैं। जीवन की शुरुआती पाठशाला में संघर्षों से जू-हजयने का जो पाठ शिवमूर्ति प-सजय़ रहे थे, उसका मार्गदर्शन किसने किया होगा! अगर एकाधिक नाम रहे होंगे तब भी एक नाम शिवकुमारी का रहा होगा। कहती हैं वे, ’इनसे तो हमार दोस्ती का नाता है। दोस्ती भी बहुत पुरानी।’ शिवमूर्ति जन्म के दिन से मानते हैं, ऐसा ही सही।

तब सामाजिक परिस्थितियां इतनी भिन्न थीं कि यह दोस्ती हुई कैसे होगी! शिवकुमारी शिवमूर्ति से उम्र में दो-ंउचयचार साल बड़ी हैं। उन्होंने ही पहले पहचाना होगा इस रिश्ते का चेहरा। उनकी ओर से आकार लेती दोस्ती में संरक्षण का भाव भी शामिल रहा होगा। एक उदाहरण तो शिवमूर्ति ही देते हैं कि जब उन्हें रास्ते में एक बार कुछ लड़के परेशान कर रहेे थे तब शिवकुमारी ने हाथ में पत्थर उठा लिया था। पुराना  समय था, लड़के सवर्ण घरों के थे। क्या शिवकुमारी को भय नहीं लगा होगा कि उन पर कोई संकट आ सकता है! शिवमूर्ति तब हाशिए का जीवन जी रहे थे। कोई सम-हजयदार युवती ऐसे के लिए दबंगों से रार क्यों मोल लेती! न आर्थिक लाभ न सामाजिक! तब यह क्या बात थी जो शिवकुमारी के मन में संवेदना या समानुभूति जगा रही थी।

’हम भी मुसीबतों से घिरे थे और यह भी। यह सम-हजयो कि दुख ने दुख को पहचान लिया था’ -ंउचय-ंउचयबताती हैं शिवकुमारी। यह माना जा सकता है कि शिवकुमारी के पास आर्थिक दुख उतना न रहा होगा जितना शिवमूर्ति के पास। नाच-ंउचयगाकर वे कुछ न कुछ उपार्जन तो कर लेती होंगी। लेकिन एक दुख ऐसा था जिसे वे आज तक नहीं भुला सकी हैं। यह दुख तो गोस्वामी तुलसीदास भी नहीं भुला पाये जीवन भर। ’तिजरा के टोटक’ की तरह माता पिता त्यागे जाना, सालता रहा बाबा को।......बात निकलती है तो शिवकुमारी खिड़की से बाहर.....दूर किसी अतीत में देखने लगती हैं, ’अपनी अम्मा का तो चेहरा भी नहीं देखा। पता नहीं कैसी थीं कौन थीं। ......और बाप का भी क्या पता। हम तो धरती पर मानो अइसे ही आ गये।’ और शिवमूर्ति? वह भी पिता के होते हुए भी जैसे पितृहीन ही थे। यह समानता शिवकुमारी को शिवमूर्ति के निकट लाई होगी। निदा फाजली लिखते हैं, ’दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार।’ शिवकुमारी अनुभव कर रही होंगी कि एक बेबाप जैसा लड़का क्या क्या सह रहा है! वे हीराबाई होतीं तो क्या इस तरह सोच पातीं।

शिवकुमारी ने शिवमूर्ति की गाहे ब गाहे आर्थिक मदद की। हालांकि बताते हुए वे गहरे संकोच में पड़ जाती हैं, ’सोचो तो, इतनी तंगी थी कि दस रुपये में दो तीन लड़कियों को ट्यूशन प-सजय़ाते थे हमारे यहां। कभी कभी दस पांच रुपये से कुछ और मदद भी कर देते थे।’ कुछ तो शिवकुमारी ने देखा ही होगा शिवमूर्ति में। हो सकता है यही देखा हो कि यह लड़का कुछ बनना चाहता है। अपनी अभाव भरी जिन्दगी को -हजयटक देना चाहता है। शिवमूर्ति की महत्वाकांक्षा और आत्मसम्मान की भावना ने उनके मन के किसी कोने को जगमगा दिया हो!

यह एक उदात्त भाव है। स्वयं दुख के गहरे अंधेरे में रहते हुए किसी को उसके दुख से उबारने का संकल्प! यही मित्रभाव है। और आगे ब-सजय़ कर सोचें तो यही है मातृत्व का लक्षण। जिसके चलते भारत में मातृशक्ति की अवधारणा विकसित हुई है। अपवादों की छोड़ दें तो हर स्त्री में मातृत्व की अन्तः सलिला प्रवाहित होती ही है। एक पुराने श्लोक में स्त्री की अनिवार्य विशेषता उसमें निहित संरक्षण की प्रवृत्ति बताई गई है। शिवकुमारी की यही प्रवृत्ति मित्रता के रूप में सामने आई।

इस बात की साक्षी शिवमूर्ति भी देंगे कि शिवकुमारी ने कभी उनसे कुछ मांगा चाहा नहीं। तब भी नहीं जब शिवमूर्ति संघर्षों के भंवर में थे। और तब भी नहीं जब शिवमूर्ति सुविधाओं के रंगमहल में आ गये। उसी दिन जब मैं शिवकुमारी जी से बात कर रहा था उनके परिवार का पड़ोसियों से -हजयगड़ा हो चुका था। अलबत्ता मैं सोच रहा था कि क्या वे शिवमूर्ति से थाना-ंउचयदरोगा से सिफारिश की बाबत कुछ कहेंगी। उन्होंने कुछ नहीं कहा। बस शिवमूर्ति के लॉन में बैठे कुरंग के भूतपूर्व प्रधान को -हजयगड़े को सूचना भर दी। प्रधानजी ने -हजयगड़े को दार्शनिक आयाम दे दिया, ’अरे को की का कब तक मारी। अइसे ही -हजयगड़ते जिन्दगी बीत जाई।’ इसे सुनकर शिवकुमारी थोड़ा सा मुस्कराई थीं।..........मगर यह नहीं कि सिफारिश के लिए शिवमूर्ति से एक शब्द का हो! शिवकुमारी में एक सनातन संतोष का भाव देखा मैंने। शिवमूर्ति से कुछ भौतिक पाने या मांगने का लक्षण तक नहीं। दाता हैं शिवकुमारी!

कहते हैं गौतम सान्याल से शिवमूर्ति, ’पंचतत्वों से बना मेरा घर।’ यानी पांच स्त्रियों ने सिर पर मिट्टी े लगता है कि शिवकुमारी भी पंचतत्व का एक विचित्र रूप है। धरती का धैर्य, जल की सजलता, अग्नि का तेज, गगन की उदात्ता और पवन की गतिशीलता। शिवकुमारी घर का अर्थ जानती थीं, इसलिए अपने मित्र के लिए सिर पर माटी

शिवकुमारी के जीवन में समानान्तर समय चलता रहा। कभी किसी दुबे जी ने सहारा दिया तो घर बनता दिखा......वे छोड़ गये तो संघर्ष फिर से प्रारम्भ! वे बनती रहीं.....

यह सब जान लो तो ’देह’ शब्द की स्मृति भी पाप लगती है। देह से जुड़े संबंध ऐसे होते ही नहीं। शिवकुमारी जी से बात कर लीजिए.......उनकी आंखें प-सजय़ लीजिए तो उनकी निरक्षरता पर गर्व होने लगता है।

शिवकुमारी सचमुच शिवमूर्ति के लिए ’देवि मां सहचरि प्राण’ हैं। बता रहे थे शिवमूर्ति कि इस बार लगभग तीन दशक बाद शिवकुमारी से भेंट हो रही है। शिवकुमाररी हुलास से भर कर कहने लगती हैं, ’ऐसे नहीं मिले तो क्या हुआ। हम तो रोज मिलते हैं। रोज ही बात करते हैं’ यही है प्राण तत्व! इसीलिए जब बिरहा में आए ’मेहरि शब्द का अर्थगर्भ प्रयोग संजीव करते हैं तो मेरा अवधी भाषा मन विमन हो जाता है। मेहरि या मेहरिया अवधी में पत्नी या पत्नीवत् को कहते हैं। कम से कम बिरहा में तो यही अर्थ है। इसलिए कथाकार संजीव जी, रह गईं दिशाएं इसी पार। काश आप उस पार भी कुछ देख सके होते।

यह प्राण तत्व शिवमूर्ति को भी आंदोलित करता है। शिवमूर्ति ने जाने कितनी बार कृतज्ञता व्यक्त की है। लेकिन बात करते समय मैंने जिक्र किया तो बड़ी दृ-सजय़ विनम्रता से शिवकुमारी ने कहा ’ऐसी कोई बड़ी बात नहीं। एक इन्सान जिसे अपना सम-हजये उसके लिए इतना तो करता ही है। हमने कुछ नहीं किया। वक्त जो कहता रहा करते रहे।’ कहा है शिवमूर्ति ने कि समय ही असली स्रष्टा है। इस स्रष्टा ने चाहे जो किया हो, शिवकुमारी को कभी ’गरीब दुखियारिन’ नहीं बनाया। पता नहीं क्यों दिनेश कुशवाह ने शिवकुमारी के लिए ऐसे शब्द लिखे। इन शब्दों से आकार लेता बिम्ब शिवकुमारी के साथ मेल नहीं खाता।

संस्मरणकारों से अधिक सम-हजयदार शिवमूर्ति की पत्नी सरिता जी हैं जिन्हें ’शिवपुरण’ में शिवकुमारी के मिथक का पवित्र महत्व पता है। दोनों ने एक साथ माटी

बातचीत आरोह अवरोह के साथ चल रही है। और भी जाने क्या क्या कहना चाहती हैं शिवकुमारी। अधूरे वाक्य.......छोटे छोटे अंतराल और मौन! अभिव्यक्ति कितनी आत्मीय और अर्थपूर्ण! जो लिख रहा हूं, इसी भाव-ंउचयभाषा का अनुवाद है। कुशल से कुशल अनुवादक हो, अनुवाद करते समय मूल का कुछ न कुछ छूट ही जाती है। यहां भी रह गया होगा। रह ही गया है।

बातचीत के बाद शिवकुमारी अपने घर जाने के लिए तैयार हैं। बात जमाने के व्यवहार की चल रही है। उन्होंने कहा कि ’मैंने तो अपने बच्चों से कहा दिया है कि बु-सजय़ापे में तुम लोग नहीं पूछोगे तो मैं मास्टर साहब के घर चली जाऊंगी। सरिता जी अपनेपन से शिवकुमारी का हाथ थाम लेती हैं।

मास्टर साहब यानी शिवमूर्ति कुछ कदम दूर खड़े यह सब देख सुन रहे हैं। मैं विश्वास के आलोक में नहाया एक ऐसा दृश्य देख रहा हूं जो मेरे लिए समय के रंगमंच पर हमेशा के लिए ठहर गया है।

Friday, December 21, 2012

लमही पत्रिका (अक्टूबर-दिसम्बर २०१२) में मेरी कहानियों पर प्रखर आलोचक राहुल सिंह का लेख प्रकाशित हुआ है-


laosnukvksa dk fdLlkxks
ltZukRed lkfgR; dk ,d dke euq‘; dh laosnuk dh j{kk vkSj mldk foLrkj djuk Hkh jgk gSA f”koewfrZ blh vFkZ esa ekuoh; laosnuk ds dFkkdkj gSaA f”koewfrZ dh dgkfu;ksa vkSj miU;klksa dk ewy Loj blh ekuoh; laosnuk ds laj{k.k&lao)Zu ls tqM+k gSA eqfDrcks/k ds laosnukRed Kku vkSj KkukRed laosnu okyh fopkj ijEijk dk fodkl f”koewfrZ ds dFkk lalkj esa ns[kus dks feyrk gS] vFkkZr] laosnu”khyrk ls vftZr cks/k vkSj ml cks/k ls pkfyr laosnukA ;ksa rks fdlh Hkh lkfgR;dkj dks vlaosnu”khy ugha dgk tk ldrk gS ij f”koewfrZ dh dgkfu;ksa ls muds dqN vfrfjDr laosnu”khy gksus dk irk pyrk gSA ;g vfrfjDr laosnu”khyrk gh mUgsa vius ledkyhu jpukdkjksa ls vyx djrh gSA mudh ;g laosnu”khyrk O;fDr txr rd ugha vfirq i”kq txr vkSj oLrq txr rd O;kIr gSA ifjos”k ds izfr ,d xk<+k jkxkRed lEcU/k mUgsa i<+rs gq, yxkrkj eglwl fd;k tk ldrk gSA
     f”koewfrZ dh dgkfu;ka gekjh vkfne vkdka{kkvksa dks fdLlkxksbZ ds tkrh; dysoj esa ijkslus dk dke djrh gSaA mudh dgkfu;ksa esa fdLlkxksbZ ds bu dqN vkfne laLdkjksa ds lkFk&lkFk dqN vkfne vkdka{kk;sa Hkh ns[kh tk ldrh gSaA lH;rk ds fodkl ds ckotwn vUreZu dh ijrksa ds uhps cph jg xbZ ml vkfne thou dh egd ds izfr vc Hkh ,d ef)e&lk jkx “kk;n ge lcksa esa dgha cpk gqvk gSA f”koewfrZ dh dgkfu;ka gekjs eeZ dh mlh ijr dks FkksM+k lhapus dk dke djrh gSA U;k; dh vkdka{kk eq>s ,d vkfne vkdka{kk yxrh gSA f”koewfrZ dh dgkfu;ksa dk dsUnzh; Loj U;k; dh vkdka{kk gSA ,d fdLe ds *vufMtOMZ lQfjax* dh O;kfIr mudh dgkfu;ksa esa ns[kh tk ldrh gSA f”koewfrZ ds ik= mu dkj.kksa ls nafMr gksrs gSa ftuds fy, os dgha ls ftEesnkj gh ugha gSaA os cqfu;knh ekuoh; vf/kdkjksa ls oafpr euq‘;ksa dks viuh dgkfu;ksa esa txg nsrs gSaA equ‘;ksa ds chp og mudh vekuoh;rk vkSj ikf”odrk dh dgkuh c;ka djrs gSaA lH;rk ds fodkl ds lkFk euq‘;ksa dh bu vkfne vkdka{kkvksa dks euq‘;ksa dh egRokdka{kkvksa us fdl dnj gkf”k;s ij Mky fn;k gS] f”koewfrZ mldh dgkuh c;ka djrs gSaA
     f”koewfrZ dh fdLlkxksbZ esa Hkkjrh; vk[;ku ijEijk dh Hkh dqN rklhj fn[kkbZ iM+rh gSA Åij eSa ftl U;k; dh vkdka{kk dh ppkZ mudh dgkfu;ksa ds lanHkZ esa dj jgk Fkk] mlds lkFk ;fn buds ik=ksa dh rdZ”khyrk dks Hkh tksM+ ns arks veR;Z lsu }kjk Hkkjrh;ksa ds lanHkZ esa js[kkafdr dh x;h *vkX;wZesaVsfVo bafM;u* dh Nfo dh Nki Hkh f”koewfrZ ds ;gka fn[krh gSA veR;Z lsu dh gh ,d vkSj fdrkc gS *fn vkbfM;k vkWQ tfLVl*A izdkjkUrj ls ;g nksuksa fopkj iqjtksj rjhds ls f”koewfrZ dh dgkfu;ksa esa ns[ks tk ldrs gSaA *dslj dLrwjh ds ¶ySi ij f”koewfrZ ds lanHkZ esa ;g fy[kk gS fd *izd`rokn esa os tksyk ds vkl&ikl fn[krs gSa rks ik=ksa ds thoUr fp=.k esa xksdhZ ds lehiA* ij eq>s os viuh ys[kuh ls vUrksu ps[ko vkSj vks- gsujh dh ;kn fnykrs gSaA tSls ps[ko viuh dgkfu;ksa esa NksVs&NksVs okD;ksa ds lVhd bLrseky }kjk ;FkkFkZ dks idM+us dk dke djrs Fks] f”koewfrZ Hkh viuh dgkfu;ksa ds okD; foU;kl esa oSls gh gSa] laf{kIr vkSj cs/kd ¼czhQ ,aM Mk;jsDV½ vkSj dgkfu;ksa ds VªhVesaV ds Lrj ij os eq>s vks- gsujh ds lehi tku iM+rs gSaA ftl rjg vks- gsujh dh dgkfu;ksa esa ,d fdLe dh *vizR;k”kk* gesa feyrh gS] f”koewfrZ dh dgkfu;ksa esa Hkh vius okys *fV~oLV* vkSj *VuZ* varr% oSlh gh vizR;k”kk dks jpus dk dke djrs gSaA vks- gsujh dh rjg f”koewfrZ Hkh viuh dgkfu;ksa ds var ds lkFk ckt nQk pkSadkrs gSaA ¼ps[ko vkSj gsujh ls dh xbZ bu rqyukvksa dks dsoy dgkuh ds f”kYi vkSj vkLokn ds /kjkry ij esjs eu esa iM+us okys izHkko ds lanHkZ esa ysaA½ fgUnh dFkk lkfgR; esa os Q.kh”ojukFk *js.kq* dh ijEijk esa fxus tkrs gSaA lrgh rkSj ij ;g lgh Hkh tku iM+rk gSA ysfdu ekeyk tc xkao dk gks rks jss.kq ds lkFk&lkFk izsepUnz dh ijEijk ls Hkh dksbZ mnkgj.k muds dFkk lkfgR; esa ns[ks&fxjk;s tk ldrs gSaA njvly ijEijk dh fuxkg ls ns[kuk fgUnh lkfgR; dh iqjkuh jok;r jgh gSA ;g dbZ lgwfy;rsa ,d lkFk eqgS;k djk nsrh gSaA ,d tks crkSj jpukdkj vki ,d fopkj/kkjk vkSj [kses esa [khap fy;s tkrs gSaA mlds ckn vkids O;fDrxr xq.k&nks‘kksa dh ppkZ u dj fo”ks‘krkvksa ds cus&cuk;s yckns ls ldrs gSaA *HkjrukV~;e* ds fy[ks tkus dk le; ,d nwljh rjg dh le>nkjh dk FkkA rc ;g Loj ugha mBrk Fkk fd tks nq[k&nnZ ?ksjs gS] mlds vkadM+s D;k gSa! dkj.k D;k gSa! iSnkokj vkSj ykxr dk tks vuesy vuqikr gS mlds ihNs dSls&dSls ‘kM+;a= gSa! ;kuh ijns ds ihNs py jgk [ksy D;k gS\ ---vkt bu lc ij utj tk jgh gSA nq[kh nfyr yksx laxBu cuk jgs gSaA ,drk cukdj lkeus vk jgs gSaA ¼u;k Kkuksn;] tuojh 2008] i`- 107½ ijns ds ihNs pyus okyk [ksy vuqHkwfr ls T;knk fopkj txr dk ekeyk gksrk gSA dgkuh ;k miU;kl esa tc bu [ksyksa dk inkZQk”k djuk gksrk gS rks og dFkkRedrk ds nk;js esa jg dj djuk gksrk gSA bl n`f‘V ls ns[ksa rks f”koewfrZ ds fy, dFkkRedrk cqfu;knh pht gSA f”koewfrZ viuh dgkfu;ksa esa fopkj dh rqyuk esa vuqHkwfr dks rjthg nsus okys jpukdkj gSa] ysfdu muds miU;klksa esa bl fopkj vkSj vuqHkwfr dk lE;d~ ifjikd ns[kus dks feyrk gSA f”koewfrZ dh jpukvksa ls nwljh f”kdk;rsa gks ldrh gSa elyu *f=”kwy* dks ysa] ;g f”koewfrZ ds vU; miU;klksa dh rqyuk esa detksj miU;kl gSA dkj.k] blesa mudk Qksdl xM+cM+k x;k gSA eaMy vkSj deaMy ds chp tks ifjikd gksuk Fkk] tks vkuqikfrd lEcU/k cuuk Fkk] og gks u ldkA f”koewfrZ dh tks [kkfl;r jgh gS fd fopkj Hkh vuqHkwfr ds jkLrs dFkk ds xfy;kjs esa nkf[ky gks] og ;gka ugha gksrk gSA og fopkj ds Lrj ij dbZ txgksa ij lapj.k djrh jg tkrh gSA ysfdu blds ckn ds *riZ.k* vkSj *vkf[kjh Nykax* dh ckr djsa rks mlesa ;g deh fljs ls xk;c gSA eSa *vkf[kjh Nykax* dh rqyuk esa *riZ.k* dks T;knk Åapk vkadrk gwaA *riZ.k* esa nfyrksa dh mHkjrh vkSj laxfBr gksrh jktuhfrd psruk dk psgjk mlds varfoZjks/kksa ds lkFk f”koewfrZ us mdsjk gSA f”koewfrZ dh nfyr psruk dk ,d fnypLi igyw ;g Hkh gS fd dgha ckck lkgc Hkhe jko vEcsMdj dk ftØ rd ugha vkrk gS] ysfdu egkRek xka/kh dk vDl dbZ txgksa ij fn[krk gSA ,slh dksbZ Hkh jpuk tks vius le; ds nLrkost gksus dk ntkZ gkfly djrh gSA mlesa dbZ vU; [kwfc;ksa ds lkFk ;g nks [kwfc;ka t:j gksrh gSaA ,d] *,sfrgkfld ;FkkFkZ dh tfVyrk dk lexzrk esa vadu* ¼dkWEiysDl VksVSfyVh vkWQ fgLVkWfjdy fj;fyVh½A dguk u gksxk fd *riZ.k* esa ;g nksuksa fo”ks‘krk,a ekStwn gSaA bl dkj.k ls nfyr psruk ds mHkkj ds lkFk mldh lhek vkSj laHkkoukvksa dk Hkh vuqeku yxk;k tk ldrk gSA mRrj izns”k esa nfyr psruk ds mHkkj dks le>us dh n`f‘V ls ;g cstksM+ miU;kl gS] ftl
     f”koewfrZ us viuh dgkfu;ksa dh jpuk izfØ;k ij ckr djrs gq, dgk gS fd **esjs eu esa dgkuh loZizFke lw= :i esa dkSa/krh gS---dksbZ ?kVuk] laokn vkSj n`”; dks ns[kdj--- [kkldj mldh ifj.kfr ;k ewyHkwr oDrO; ifjn`”; ds :Ik esa igys mHkjrk gS--- fQj “kq: gksrh gS mu ifjn`”;ksa dks rkjrE; nsus dh izfØ;k--- fQj cqukoV dh izfØ;k--- dFkk esa fo”oluh;rk vkSj LokHkkfodrk ykus dk dk;Z--- izk;% vafre Mªk¶V esa igys Mªk¶V dk ikapoka Hkkx gh “ks‘k jg tkrk gS--- mldk cgqr de va”k ryNV esa jg tkrk gSA--- exj ,d ckr Li‘V dj nsuk pkgwaxk--- pfj= gh esjh dgkuh dk vk|Ur gS] esjh dgkfu;ka eq[;r% pfj= iz/kku gSaA esjh dgkfu;ksa esa tks dqN Hkh fd;k x;k gS lc dqN mu pfj=ksa dks *crkus* ds fy,--- esjh dgkfu;ka mu pfj=ksa ds ckjs esa cfr;krh gSa--- blds vfrfjDr og dqN Hkh ugha dj ikrhaA** ¼eap] tuojh&ekpZ 2011] i`- 154½ f”koewfrZ ds mijksDr oDrO; esa rhu egRoiw.kZ ladsr&lw= gSa] ftuls mudh dgkfu;ksa ds iSVuZ dks igpkuk tk ldrk gSA igyk] dgkuh dk loZizFke lw= :i esa dkSa/kuk vkSj mldh ifj.kfr dk ifjn`”; igys mHkjuk] bl dkj.k ls f”koewfrZ dh dgkfu;ka fu‘ifRrewyd gksrh gSaA nwljk] cqukoV ds Øe esa mldh fo”oluh;rk vkSj LokHkkfodrk dh j{kk] bl dkj.k ls mudh dgkfu;ksa esa iBuh;rk cuh jgrh gSA rhljk] dgkfu;ksa dk pfj=ewyd gksuk] ;g mudh lathnxh dks c;ka djrh gSaA pfj=ksa dks rc rd *dfUoflaxyh* dgkuh esa ugha fiction should be able to move its reader at some fundamental level, to disturb and rearrange his outlook on life, perhaps even change him as  a person…’’ ½  f”koewfrZ dh dgkfu;ka ikBdksa dks ml cqfu;knh Lrj rd ys tkus dk dke djrh gS] tgka ls lkbjl feL=h ckdh dh mEehn djrs gSaA blds vykos Hkh f”koewfrZ ds ys[ku esa dbZ fof”k‘Vrkvksa dks y{; fd;k tk ldrk gSA igyk] f”koewfrZ dk ;FkkFkZ dks viuh dgkfu;ksa esa cjrus dk rjhdk vius ledkyhuksa ls vygnk gSA elyu f”koewfrZ ;FkkFkZ dks viuh dgkfu;ksa esa ykus ls igys mls FkksM+k gYdk djrs gSaA eyrc ;FkkFkZ dks vuqHkwfr vkSj dgkuh dk fgLlk cukdj lEizf‘kr djrs gSaA vkSj xj] bls T;knk csgrj rjhds ls le>uk gks rks f”koewfrZ ds cjDl latho dks j[k dj ik tk ldrk gSA nwljk] fgUnh dFkk lkfgR; esa Ik”kqvksa ds LoHkko vkSj euksfoKku dks lw{erk ls le>us okys os vius fdLe ds vuwBs dFkkdkj gSaA Hkys budh dgkfu;ksa esa ekuuh;ksa dh igpku muds vksgnksa ls gks ysfdu Ik”kqvksa ds uke gSaA gj dgkuh esa fdlh u fdlh :Ik esa i”kq&i{kh dh mifLFkfr dks y{; fd;k tk ldrk gSA euq‘; ds LoHkko vkSj vkpj.k dh rqyuk djus ds fy, crkSj uthj f”koewfrZ vDlj Ik”kqvksa ds LoHkko vkSj vkpj.k ls gh mudh rqyuk djuk ilUn djrs gSaA rhljk] f”koewfrZ eqgkojksa ds ugha yksdksfDr;ksa vkSj dgkorksa ds dFkkdkj gSaA dgkorksa vkSj yksdksfDr;ksa esa tks thou dk xk<+k vuqHko lH;rk dh ijrksa ls Nudj lkj :Ik esa tek jgrk gSA f”koewfrZ dgkorksa vkSj yksdksfDr;ksa esa tks thou dk xk<+k vuqHko lH;rk dh ijrksa ls Nudj lkj :Ik esa tek jgrk gSA f”koewfrZ dgkorksa vkSj yksdksfDr;ksa ds tfj;s thou ds ml QylQs dks lw= :i esa vfHkO;fDr djuk ilan djrs gSaA ;g dgkorsa vkSj yksdksfDr;ka Hkh mudh *BsB fgUnh ds BkB* esa pkj pkan yxkus dk gh dke djrh gSaA ;fn fgrksins”k vkSj iapra= dh dgkfu;ksa esa O;Dr Ik”kq txr esa fufgr ekuoh;rk ds ikB dks ge Hkwys ugha gSa] ;fn viHkza”k] vo/kh] czt ds jkLrs fgUnh dh yksdkuqHkwfr dh ijEijk dks ge /;ku esa j[ksa vkSj f”koewfrZ dh dgkfu;ksa esa gekjs tkrh; laLdkjksa dh  vuqxwat lqukbZ iM+rh gSA ;gh dkj.k gS fd fdLlkxksbZ dh tkrh; ijEijk ds dqN vo”ks‘k vc Hkh f”koewfrZ ds ;gka eq>s fn[kykbZ iM+rs gSaA mudh dgkfu;ksa esa *ekl vihy* dh tks {kerk gS] mlds dqN lw= blesa fufgr gSaA pkSFkk] *frfj;k pfj=* dh mudh tkudkjhA L=h ds eu] laosnu] LoHkko] pky&pfj=] vkpkj&fopkj dh le>A ;g mudk ,slk xq.k gS ftlds led{k nwljk jpukdkj ugha fn[krk gSA bldk vuqeku bl rF; ls yxk;k tk ldrk gS fd f”koewfrZ dh dgkfu;ksa dk bdykSrk laxzg *dslj dLrwjh* 1991 esa vk;k] ftlesa N% dgkfu;ka FkhaA buesa ls *HkjrukV~;e* dks NksM+dj ckdh ikap dgkfu;ka izR;{k vkSj ijks{k :i ls L=h ds gksus dks lEcksf/kr gSaA f”koewfrZ ds dFkk lkfgR; esa fL=;ksa dh cgqjaxh NVk;sa gSaA NBk] nfyr n`f‘VA mRrj izns”k esa vLlh ds n”kd ds ckn “kq: gq, nfyr mHkkj dks lexzrk esa mlds varfoZjks/kksa ds lkFk f”koewfrZ ds ;gka ns[kk tk ldrk gSA
     vo/k izkUr ls vk;s fgUnh ds dFkkdkjksa esa mudh ekVh dh egd ftl :Ik esa iSoLr jgrh vkbZ gS] f”koewfrZ ds dFkk lkfgR; esa mldh ckuxh ,d varj ds lkFk ns[kh tk ldrh gSA og varj gS fd f”koewfrZ xkao dk ukeksYys[k ugha djrs gSa cfYd dsoy bl kA vkj- ds- ukjk;.k dh rjg os Hkh ,d *ekyxqM+h* jp ldrs Fks ij D;k otgsa jgha fd muds dFkk lkfgR; esa dsoy xkao gh xwatrk jg x;k\ f”koewfrZ us vius bl xkao ds tfj;s Hkh viuh dgkfu;ksa ds lkFk ikBdksa ds rknkRehdj.k dh laHkkoukvksa dks dbZ xquk c<+kus dk dke fd;kA ;g xkao dkSu&lk gS] bldh fpUrk vkykspdksa dks gks ldrh gS ysfdu ,d ikBd dk eryc dgkuh ek= ls gksrk gSA dqN ltx ikBd tks *xkao* dks igpkuuk gh pkgrs gSa] muds fy, Hkk‘kk dh LFkkuh;rk vkSj vkapfydrk ds ekQZr Ik;kZIr ladsr lw= NksM+ fn;s x;s gSaA bl rjg tks ml izns”k ;k tuin ds Bgjsa] og rks viuh Hkk‘kk dh NkSad ls gh vius xkao dks igpku tkrs gSa vkSj nwljs muds pfj= vkSj ?kVukvksa ls [kqn dks tksM+rs gq, ml dgkuh dh HkkSxksfydrk dk foLrkj djrs gSaA
     f”koewfrZ ds dFkk  lkfgR; esa xkao ,d fopkj ;k vo/kkj.kk ds crkSj O;oâr ugha gqvk gS cfYd ,d ftUnk vglkl ds :i esa vk;k gSA f”koewfrZ us *xkao* ds ckgjh vkoj.k dks ugha Hkhrjh eeZ dks idM+k gSA bl dkj.k ls muds xkao ftUnk yxrs gSaA ,d ,sls nkSj esa tc “kgj yxkrkj gekjs xkaoksa dks pj jgs gSa] [kqn xkaoksa esa jkst vck/k xfr ls “kgjksa dk mxuk tkjh gSA ,sls le; esa f”koewfrZ viuh dgkfu;ksa eas xkaoksa dks ftUnxh c[“kus ds fy, dfVc) gSaA vkt Hkkjr ljdkj dh vkfFkZd uhfr;ksa ij xkSj djsa rks D;k ;g vyx ls crkus dh t:jr gS fd og “kgjksa ds i{k esa gS ;k xkaoksa ds i{k esaA *fljh miek tksx* dgkuh dks pfj= dh ,d vokUrj dFkk lkeus vkrh gSA xkao dh dks[k ls fudyk ukSdj”kkg iwathokn “kgj dh xksn esa tk cSBrk gSA xkao mlds fy, ijs”kkuh dk lcc gSA ;g vdkj.k ugha gS fd f”koewfrZ dgkuh ds var esa fy[krs gSa fd **lscsjs mBdj os ¼,-Mh-,e- lkgc½ ns[krs gSa fd pcwrjs ij *xkao* ugha gSA oS pSu dh lkal ysrs gSaA** ¼i`- 68½ ;g ltZukRed fojks/k gSA ;gh dkj.k gS fd f”koewfrZ ds dFkk lkfgR; esa *xkao* dh bruh nenkj vkSj lkFkZd mifLFkfr gksus ds ckotwn eSa mUgsa ns”kt ;FkkFkZ ;k xzkeh.k ;FkkFkZ ds dFkkdkj ds crkSj izLrkfor ugha dj jgk gw] cfYd os O;kid vFkksZa esa Hkkjrh; ;FkkFkZ ds dFkkdkj gSaA f”koewfrZ dks ns”kt ;k xzkeh.k ;FkkFkZ ds dFkkdkj ds :i esa ns[kuk mudh Hkwfedk dks de djds rks vkaduk gS gh [kqn vius viuh vnwjnf”kZrk vkSj rax utfj;s dks Hkh lkeus j[kuk gSA
     oLrqr% xkao ,d lajpuk gS] ftlds lkekftd&vkfFkZd&jktuhfrd&lkaLd`frd dbZ vk;ke gSaA bu vk;keksa ds leqPp; ls u flQZ mlesa thoUrrk vkrh gS] cfYd mldk Lo:Ik Hkh fufeZr gksrk gSA bl lajpuk dks mlh cgqvk;kferk vkSj thoUrrk ds lkFk lkfgfR;d lajpuk esa :ikUrfjr dj lduk ekewyh dke ugha gSA vc loky mBrk gS fd f”koewfrZ us bls lQyrkiwoZd vatke rd dSls igqapk;k\ bls vius igys iz;kl esa gh c[kwch vatke nsus dk dke Q.kh”ojukFk *js.kq* us fd;k FkkA ckn ds fnuksa esa bDds&nqDds jpukdkjksa us viuh dkcfy;r ds cy ij bl dke;kch dks t:j nqgjk;kA ysfdu bl fn”kk esa gky ds o‘kksZa esa lokZf/kd mYys[kuh; tRFkk nfyr dFkkdkjksa dk jgk gS] ,slk igyh ckj gqvk gS fd ys[kdksa ds fdlh lewg us bl fn”kk esa gky ds o‘kksZa esa lokZf/kd mYys[kuh; tRFkk nfyr dFkkdkjksa dk jgk gS] ,slk igyh ckj gqvk gS fd ys[kdksa ds fdlh lewg us bl fn”kk esa lQyrk vftZr dh gksA D;k xkao ds bl eeZ dks idM+us esa f”koewfrZ us fdlh lkfgfR;d ;qfDr dk lgkjk fy;k gS\ ;|fi f”koewfrZ us ijEijk ls dkQh dqN vk;Rr fd;k gS ysfdu lkFk gh mUgksaus bl ijEijk eas dqN tksM+us dk dke Hkh fd;k gSA f”koewfrZ us xkao ds [kkl fdLe dh fpfRr ¼lkbfd½ vkSj xkao dh *ckWMh ySaXost* ¼Hkko&Hkafxek½ dks idM+k gSA xkao ds lanHkZ esa lkbfd ;k ckWMh ySaXost tSlh ckr lquus esa FkksM+h vthc yx ldrh gSA ij ;g f”koewfrZ dh [kwclwjrh vkSj [kkfl;r gSA
     *f=”kwy* dks NksM+ ns arks f”koewfrZ ds lEiw.kZ dFkk lkfgR; esa vk;s pfj=ksa ds vkpkj&fopkj ij xkSj djsa rks og O;fDrxr fo”ks‘krkvksa dks /kkj.k djus ds ckotwn lexzrk esa xkao dh *lkbfd* dks gh le`) djus dk dke djrs gSaA f”koewfrZ ds gj ik= pkgs og fdlh Hkh tkfr] o;] gSfl;r ds gksa] mlds vkpj.k ds ewy esa xkao ds LFkkuh; lehdj.kksa dh izHkko”kkyh mifLFkfr ns[kh tk ldrh gSA *riZ.k* vkSj *vkf[kjh Nykax* miU;kl esa bls lgtrk ls ns[kk tk ldrk gSA *dlkbZckM+k* vkSj *frfj;k pfjRrj* dgkuh esa bls lrg ij vkSj *vdkynaM* rFkk *HkjrukV~;e* esa bls lrg ds uhps ns[kk tk ldrk gSA xkao dh bl ekufldrk dks lokZf/kd n{krk ls /kkj.k djus dk dke f”koewfrZ dh fL=;ksa us fd;k gS vkSj mlds ckn blesa fdlh dh fu.kkZ;d Hkwfedk Bgjrh gS rks og mudh dgkfu;ksa esa vk;s egRokdka{kh vkSj yksyqi fdLe ds pfj=ksa dh gSA *frfj;k pfjRrj* dgkuh ds fu.kkZ;d {k.k esa tc fceyh ds lp dk lagkj >wBksa ds fxjksg ds }kjk fd;k tkuk r; gS] ml {k.k esa cky fc/kok fcjtk vdsyh vk”kk dh fdj.k gSA mldk vkpj.k bl {k.k esa ns[kus yk;d gSA **cky fo/kok fcjtk cSBh lksp jgh Fkh vxj og dg ns fd eNyh dk fp[kuk rks mlh ls cuok;k Fkk foljke usA f”kokys ls ykSVrs le; ysrs gq, vk;k Fkk& rks \ vHkh lkjh iapk;r myV tk;sxh--- ysfdu rc mlls Hkh iwNk tk ldrk gSA fdrus lky ls og foljke dk fp[kuk cukrh jgh gS\ vkxs ls fp[kuk cukuk cUn gks tk;sxk lks vyxA** ¼i`- 140½ *frfj;k pfjRrj* dh ,d ckuxh ;g Hkh gSA xkao esa vQokg dks gok nsus ds dke Hkys iq#‘k djrs gksa] ij mlds izpkj&izlkj dk izHkkj efgykvksa ds ftEes gh gSA
     vkt tc ljdkjsa xkao ds xkao mtkM+ jgh gSa] ,sls xkao&fdlku fojks/kh le; esa f”koewfrZ us *dFkk esa xkao* dks fQj ls clkus dk dke fd;k gSA xkao dh clkoV ds ewy esa f”koewfrZ us ;ksa rks cqukoV ds ikjEifjd dkS”kyksa dk mi;ksx fd;k gSA tSls Hkk‘kk ds Lrj ij LFkkuh;rk vkSj vkapfydrk dh NkSad] yksdxhrksa dk rM+dk] dgkorksa vkSj yksdksfDr;ksa dh /ktk bR;kfn] ysfdu bu ikjEifjd dkS”kyksa dks njfdukj dj fn;k tk;s rc Hkh dqN rRo gSa tks [kkl f”koewfrZ ds ;gka miyC/k gSaA tSls xkao vkSj fdlku ds ikjLifjd lEcU/k dks vyx ls crkus dh vko”;drk ugha gS oSls gh fdlku] Ik”kq vkSj izd`fr dh ikjEifjdrk dks vyx ls js[kkafdr djus dh vko”;drk ugha gSA izd`fr vkSj Ik”kq txr dk tSlk bLrseky f”koewfrZ ds ;gka gS] og mUgsa vius ledkyhu jpukdkjksa esa fof”k‘V cukrk gSA f”koewfrZ ds ;gka Ik”kq ekuoh; ewY;ksa ds lwpdkad ds crkSj O;oâr gksrs vk;s gSaA mldk dsoy ,d mnkgj.k f”koewfrZ dh dgkuh *vdkynaM* ls ns jgk gwaA *isM+ksa ds iRrs lw[kdj >M+ pqds gSa ;k eosf”k;ksa ds isV esa pys x;s gSa vkSj xk,a HkSalsa fcd pqdh gSaA ftUgksaus ugha cspk mUgsa vc dksbZ eq¶r esa ys tkus dks rS;kj ugha gSA ysfdu cka/kdj j[ksa rks f[kyk,a D;k\ rks xys ls ixgk [kksy dj gkad ns jgs gSa yksx&tkvks *fQjh* dj fn;k vkt lsA lqra= gksA ejus ds fy, lqra=A usg&ukrk rksM+ksA pkjs&ikuh dh [kkst djrs gq, ejksA ysfdu nwj tkdjA nqxZa/k ls rks cpk nks xkao dksA bu fQjh gq, tkuojksa dks fdlh Hkh BwaB isM+ ds uhps iM+s iSj iVdrs] iwaN ,saBrs vkSj vka[k ds cM+s&cM+s dks;ksa ls vkalw cgkrs ns[kk tk ldrk gSA ejus dk bartkj djrs tkuojA tkuoj ugha] mudh BBjh ftuds fu‘izk.k gksus dk bartkj isM+ ds BwaB ij cSBs fx)ksa dks dHkh&dHkh rhu&rhu pkj&pkj fnu djuk iM+ tkrk gSA cSYkksa dks yksx var rd cpk, j[kuk pkgrs FksA dHkh ikuh cjlk rks tksrkbZ dSls gksxhA ysfdu pkjs vkSj ikuh ds vHkko vkSj chekjh ds pyrs vc os Hkh /khjs&/khjs lkQ gks jgs gSaA ljdkj dh rjQ ls feyus okyk izfr tkuoj pkjk ,d oDr ds fy, Hkh iwjk ugha iM+rkA vc cSy cps gSa rks dqN xkM+hokuksa ds ikl ;k xkao ds nks&pkj cM+s ?kjksa esaA *tcjk* yksxksa ds iklA tks ncncs okys gSaA ikuh dk VSadj vkus ij tks igys vius cSyksa dks fiykus ds fy, cM+s&cM+s bl vkSj *NksM+* Hkj ysrs gSa] rc xkao ds detksj yksxksa dh ckjh vkrh gS&vius fy, xxjk&xxjh Hkjus dhA fpfM+;ksa dh cksyh ds uke ij vc e/; nksigjh ds vkdk”k esa o`Rrkdkj mM+rh phy dh fVagdkjh gh lqukbZ iM+rh gSA ;k e`r tkuoj ds “ko ij >iVrs fx)ksa dh pha&pha! fdp&fdp! Ckkdh i{kh ;k rks Hkw[k&I;kl ls ej x, gSa ;k fdlh vtkus ns”k dks mM+ x, gSaA** ¼i`- 29½
     f”koewfrZ “kCnksa ds ikj[kh gSaA “kCnksa dks pquus dh vkSj mls viuh dFkk esa cjrus dh mudh reht dkfcy&,&rkjhQ gSA f”koewfrZ dh Hkk‘kk esa fufgr cs/kdrk] lEis‘k.kh;rk] lkaxhfrdrk] fp=kRedrk] lkadsfrdrk] /oU;kRedrk vkfn xq.kksa ds ewy esa mudh *”kCn “kfDr* dks lwa?kus&egllwus dh {kerk gSA ,d lkFk vfHk/kk] y{k.kk vkSj O;atuk dk ekjd bLrseky djus okys dFkkdkj gSaA Hkk‘kk ds Lrj ij mudh dqN “kjkjrsa cnek”kh dh vnksa dks Nwrh gSaA muds miU;kl *riZ.k* ls nks mnkgj.k ns jgk gwaA tc pUnj jtifr;k ds lkFk cykRdkj dk vlQy iz;kl djrk gS rks feL=h cgw dgrh gS **bldh ¼pUnj dh½ rjokj cgd xbZ gSA** ¼i`- 11½ FkksM+k vkxs tc jtifr;k dks Fkkus ls cqykok vkrk gS rc mlds ifjokj ds enZ r; djrs gSa fd **Hkksj okyh xkM+h idM+dj fi;kjs jtirh dks ysdj HkkbZ th ds ?kj pys tk,aA [krjs ls cpko ds fygkt ls LVs”ku rd ikap yksx lkFk pysaA bl ckr dh Hkud ?kj dh vkSjrksa rd dks u yxus ik,aA lkjk Hksn vkSjrksa ls gh *yhd* gksrk gSA** ¼i`- 47½ Hkk‘kk ds Lrj ij ,slh gjdrsa f”koewfrZ ds ;gka ns[kh tk ldrh gSA ,sls lexzrk esa mudh dgkuh dh lajpuk fdlh dq”ky dkjhxj dh dkjLrkuh yxrh gSA tSls ,d jktfeL=h ,d&,d bZaVsa tksM+dj ,d etcwr nhokj dk fuekZ.k djrk gS] oSls gh f”koewfrZ vuqHkwfrZ] laosnuk vkSj fopkjksa ds esy ls ,d etcwr dFkkRd lajpuk dk fuekZ.k djrs gSaA
pyrs&pyrs vc lexzrk ls brj ,d&,d dj f”koewfrZ dh dgkfu;ksa Ikj ,d mM+rh&lh fuxkg Mky ysuk vuqfpr u gksxkA ;ksa rks f”koewfrZ dh dgkuh ys[ku dh ;k=k 1968 esa vkjaHk gks pqdh Fkh ¼*eq>s thuk gS*] 1968] *iku Qwy*] 1969] *mfM+ tkvks ia{kh*] 1970½] ;g vyx ckr gS fd Lo;a f”koewfrZ ds igys dgkuh laxzg esa budk dksbZ mYys[k ugha gSA mudh igyh dgkuh laxzg *dslj dLrwjh* ds vuqlkj muds dk;nu Nius dk flyflyk 1980 esa *dlkbZckM+k* ds izdk”ku ls vkjaHk gksrk gSA cpiu ls gh gekjs eu&efLr‘d esa Hkkjr ds ckjs esa ,d Nfo fcBkbZ tkrh gS fd Hkkjr xkaoksa dk ns”k gSA bldh vLlh Qhlnh vkcknh xkaokssa esa fuokl djrh gS vkSj brus gh izfr”kr ds vkl&ikl [ksrh gksrh gS] vkfnA fQj loky mBrk gS fd ,d jpukdkj ftldh [kqn dh vkRek xkaoksa esa clrh gks] og D;ksa viuh “kq#vkr ,d vke Hkkjrh; dh Hkkjr ds lanHkZ esa cuh izpfyr le>nkjh ¼dUosa”ky fotMe½ dks pqukSrh nsus ls djrk gS\ f”koewfrZ crykrs gSa fd iqjkus lkearh vo”ks‘k ¼tkfrokn½ vkSj u;h O;oLFkk ¼iqfyl iz”kklu½ ds vkkilh xBtksM+ us xkaoksa esa *dlkbZckM+s* esa rCnhy dj fn;k gSA dgkuh ds nkSjku ;FkkFkZ dks cgqr NksVs&NksVs {k.kksa esa idM+us dh f”koewfrZ dh tks dyk gS] og vyx ls js[kkafdr djus ;ksX; gSA tSls *frfj;k pfjRrj* esa tc luhpjh dh csVh :iefr dh fcnkbZ gks jgh gS rks og viuh cdjh rd dks HkasaVuk ugha Hkwyrh gSA vkSjrksa ds vkilh Mkg dks dFkkud esa xfr iSnk djus ds miknku esa O;oâr djus dk dkS”ky vkSj xkao ds LFkkuh; vkSj tkrh; lehdj.kksa ds iy&iy curs&fcxM+rs xq.kk&xf.kr dks dgkuh ds iuksa ij ntZ djus dh ;ksX;rk dkfcy&,&xkSj gSA luhpjh dh csclh dk tks Qk;nk iz/kku] yhMj vkSj nkjksxk mBkrs gSa] og ,d Lrj ij eUuw HkaMkjh jfpr *egkHkkst* dh ;kn fnykrk gS] *dlkbZckM+k* ds iz/kku vkSj YkhMj nksuksa blds thrs&tkxrs mnkgj.k gSaA blh egRokdka{kk dh ,d vyx Nfo 1981 esa izdkf”kr *HkjrukV~;e* esa ns[kus dks feyrh gSA tgka ,d iRuh dh iq= ikus dh egRokdka{kk mlds ifr ds vkRelEeku] lkQxksbZ vkSj Hkyeulkgr dh cfy ys ysrk gSA var esa mldk ifr viuk ekufld larqyu xaok dj [kjcwts ds [ksr esa *HkjrukV~;e* djus yxrk gSA dgkuh vius var esa ,d ,slk rksM+ nsus okyk VªSftd Hkko cks/k jprh gS fd ml ij vyx ls dqN Hkh dguk de iM+sxkA
1984 esa vkbZ *fljh miek tksxk* dFkk ds Lrj ij *HkjrukV~;e* dk izfriwjd gSA vxj ogka ,d L=h dh egRokdka{kk mls ?k`.kk ds dsUnz esa ykrh gS rks ;gka ,d iq#‘k dhA ekuo LoHkko dks lacksf/kr ;g nksuksa dgkuh ;ksa rks LokHkkfod yxrh gSa ysfdu ;g LokHkkfodrk ftl vLokHkkfodrk ls iSnk gksrh gS] og Mjkrh gSA eu esa ,d nq%[k vkSj xgjh d#.kk QwVrh gSA
1991 esa vkbZ *dslj&dLrwjh* f”koewfrZ dh “ks‘k dgkfu;ksa ls vyx fetkt dh gSA firk dh vdeZ.;rk vkSj csVh dh mnkRrrk ds chp iljh ;g dgkuh vR;Ur dk#f.kd gSA vius lkekU;ius esa og cs/krh gSA iwjh dgkuh vfHk/kkRed gS] vius dgus ds wBh ejtkn esa fyiVh fir dh vdeZ.;rk&ykijokgh dks vius iz;Ruksa ls bap nj bap rh rc f”koewfrZ dgkuh ds ek/;e ls vkRe laosnuk ds ml d‘V dk dgkuh ds :Ik esa *riZ.k* djrs gSaA f”koewfrZ dh dgkfu;ksa esa fufgr ekfeZdrk] d#.kk] =kln Hkko&cks/k dh og rhozrk vkSj lkUnzrk mls yEcs le; rd /kkj.k djus ls mith gSA ,slk yxrk gS fd f”koewfrZ ds thou esa futh ;k nwljksa ds vuqHko ds :Ik esa vk;s ;s {k.k] mudh vkRek esa uD”k gksrs pys x;s Fks vkSj tc mudh vkRek bu vuqHkoksa vkSj nq%[kksa dks /kkj.k dj ldus esa v”kD; gksus yxh rHkh mUgksaus bldk lk>k djuk t:jh le>k vkSj bu futrkvksa dks lkekftdrk ds nk;js esa ys vk;sA
vxj *dlkbZckMk* dk vkjEHk bl okD; esa fufgr ruko vkSj lLisal ds bl feys&tqys okD; ls gksrk gS fd **xkao esa fctyh dh rjg [kcj QSyrh gS fd “kuhpjh /kjus ij cSB xbZ gS] ij/kkuth ds nqvkjsA yhMjth dgrs gSa& tc rd ij/kkuth mldh csVh okil ugha djrs] lfupjh vu”ku djsxh] vkej.k vu”kuA** ,slh gh ftKklk ds lkFk *vdkynaM* dk vkxkt gksrk gS fd **lqjth ds lkFk fldjsVjh ckcw us xtc dj fn;kA ysfdu mlus bl gknls ds ckjs esa fdlh ls eqag ugha [kksyk] D;k Qk;nk\ ¼i`- 27½ ;g nksuksa dgkfu;ka viuh vkjafHkd iafDr;ksa esa fufgr ruko vkSj ftKklk dh [kqyrh ijrksa ds lkFk vkxs c<+rh gSaA dgkuh ds dsUnz esa gS lqjth dh nsg vkSj ml ij vVdh fldjsVjh dh fuxkg ¼**lkyksa&lky v/kisV :[ks&lw[ks Hkkstu ds pyrs nsg dh vfrfjDr fpdukbZ dc dh xy pqdh gSA “ks‘k gS rks izd`fr ls feyk jax] ikuhnkj vka[ksa] cjcl [khap ysus okyk cksyrk psgjk vkSj pkSchl&iPphl dh mez okys “kjhj dh Lor% LQwrZ pedA bls bl nqfnZu esa dgka fNIkkdj ys tk, og vkSj blh ij fldjsVjh dh utj p<+ xbZ gSA** i`- 28½ dgkuh lqjth ds nsg ikus ds miØe esa fldjsVjh }kjk pyus okys nkao vkSj mlls cpus dh lqjth dh Hkafxekvksa ds chp dh gSA i`‘BHkwfe esa vdky dh Hk;kogrk gSA ;g vdky gh gS tks vle; dky cu dj mifLFkr gSA ysfdu bl vdky naM dh Hkkxh lqjth cu dj Hkh ugha curh cfYd ;g okLro esa fldjsVjh ds fy, vdkynaM lkfcr gksrk gSA
*dslj&dLrwjh* laxzg esa “kkfey mudh ,d vkSj dgkuh gS] *frfj;k pfjRrj*A *frfj;k pfjRrj* ds dsUnz esa fceyh gSA fceyh dh mifLFkfFkfr ls dgkuh esa vU; phtsa ifjHkkf”kr gksrh gSaA fceyh ls O;fDr vkSj oLrqvksa dk lEcU/k fu/kkZfjr gksrk gSA fceyh toku gS vkSj lSdM+ksa fuxkgsa mlds ;kSou ij yxh gSaA f”koewfrZ fceyh dh bl voLFkk ds lanHkZ esa fVIi.kh djrs gSa fd **ids vke ds isM+ dh j[kokyh tSlk dfBu dkeA fdruh fuxkgsa gSa] ids vke ds isM+ ij!** ¼i`- 115½ fceyh vius vuns[ks&vutkus Hkkoh ifr ds fy, viuh “kqfprk vkSj dkSek;Z dks bZeku dh rjg cpk;s j[krh gSA *frfj;k pfjRrj* esa fceyh dk ifr dHkh ugha vkrkA lSeq,y cSdsV ds ukVd *oksfVax Qksj xksnks* dh rjg fceyh Hkh ,d varghu izrh{kk dk f”kdkj gks tkrh gSA *frfj;k pfjRrj* ,d lkFk foMEcukRed vkSj =kln gSA f”koewfrZ dh bl dgkuh vkSj vU; dgkfu;ksa eas bruh ijrsa gSa fd gj ,d ij vyx ls ys[k fy[ks tkus dh vko”;drk gSA ;gka *frfj;k pfjRrj ds dbZ vU; igyqvksa dks njfdukj djrs gq, mldh ml dsUnzh; izo`fRr dks js[kkafdr fd;k tk jgk gS] tks f”koewfrZ ds dFkk lkfgR; dh [kkfl;r jgh gSA ,d rks egt v”kDr gksus ds dkj.k mu xqukgksa ds fy, nafMr gksuk tks mUgksaus fd;s gh ugha gSa vkSj nwljk U;k;k dh vkdka{kkA leLr lalkj esa fL=;ka euq‘; gksus ds ckotwn lcls T;knk ;krukvksa dh tn esa vkus okyh izk.kh gSaA fL=;ka ftu ;krukvksa dk f”kdkj iwjs lalkj esa gksrh gSa mu ;krukvksa dh izd`fr vkSj pfj= ,d oSf”od ,d:irk gSA varj gS rks] cl jk‘Vªh;rk vkSj /keksZa dkA lalkj Hkj eas cksyh tkus okyh Hkk‘kkvksa esa fgUnh ds vykok eq>s FkksM+h vaxszth vkrh gS] ftlds ekQZr lalkj Hkj eas cuus okyh mYys[kuh; fQYeksa dks lgtrk ls ns[krk&le>rk vk;k gwaA vaxszth] Ýsap] iksfy”k] phuh] tkikuh] bZjkuh] vQxkuh] Mp dksfj;kbZ] :lh] LiSfu”k vkSj fgUnh fQYeksa esa L=h gksus ds dkj.k xSj okftc ;krukvksa dh varghu Ük`a[kyk dks fQYek;k x;k gSA ;gka mlds foLrkj esa tkus dh xqatkb”k ugha gS] fQj Hkh bZjkuh i`‘BHkwfe ij lPph ?kVuk ij cuh *LVksfuax vkWQ lksjk;k ,e* ¼2008½ dk mYys[k egt blfy, djuk pkgwaxk fd bZjku dh i`‘BHkwfe vkSj bLyke dh Nkag dks gVk fn;k tk;s rks bl fQYe vkSj *frfj;k pfjRrj* ¼1987½ dh dgkfu;ksa esa grizHk djus okyh lekurk gSA
Ekq[rlj lh ckr bruh gS fd vius lqnh?kZ lpukdky esa vR;Ur laf{kIr jpukvksa dh lwph izLrqr djus okys f”koewfrZ ds dFkk lkfgR; us vkt ds nkSj esa ,d nqyZHk&lh yxus okyh [;kfr vkSj fo”oluh;rk nksuksa vftZr dh gSA ;gh dkj.k gS fd vYi ys[ku ds ckotwn f”koewfrZ fgUnh dFkk lkfgR; esa fo”oluh;rk ds fdlh *gkWyekdZ* dh rjg gSaA ftuds ikl ;FkkFkZ dks dFkk eas cjrus dk viuk rjhdk gSA ;fn bl nqyZHk&lh tku iM+us okyh yksdfiz;rk vkSj fo”oluh;rk dks le> ldus yk;d ,dk/k lw= Hkh bl ys[k esa miyC/k gks ldsa gSa rc rks esgur lkFkZd jgh vkSj xj ugha rks---vc og Hkh D;k dgus dh t:jr gS!
पता - 
ए. एस. महाविद्यालय,
देवधर, झारखण्ड-८१४११२
दूरभाष : ०९३०८९९०१८४

Wednesday, December 19, 2012

लेखक की पॉलिटिक्स है - प्रतिरोध


fnukad 8 vDVwcj 2012 dks eq>s yegh lEeku 2011 iznku fd;k x;kA
volj ij fd;k x;k esjk lEcks/ku
ys[kd dh ikWfyfVDl gS & izfrjks/k
eap ij vklhu bl lEeku lekjksg dh v/;{k ofjB dFkkdkj fp=k eqn~xy th] eq[; vfrfFk ofj‘B dfo ,oa vkykspd v­”kksd oktis;h th ;qok vkykspd oSHko flag o ofj‘B dfo vkykspd ,oa vkt ds bl lEeku lekjksg ds dk;ZØe dk  lapkyu dj jgs vkse fu”py th] yegh if=dk ds iz/kku lEiknd fot; jk; th o yksdkfiZr gq, bl yegh fo”ks‘kkad ds vfrfFk lEiknd ;qok vkykspd ,oa O;aX;dkj lq”khy fl)kFkZ th] lHkkxkj esa mifLFkr fo}rtu lkfgR;dkj x.k] fe=ksa] cguksa vkSj Hkkb;ksa!
lcls igys eSa /kU;okn nsrk gwa yegh lEeku ds fu.kkZ;d e.My dk ftlus esjs ys[ku dks yegh lEeku iznku djus ds yk;d le>kA ;g cgqr mi;qDr gS fd vkius bls iqjLdkj ds LFkku ij lEeku uke fn;k gSA ,slk fcYdqy ugha gS fd gj iqjLd`r gksus okyk O;fdr loZJs‘B gh gksrk gksA cfYd dbZ ckj Js‘B utjvankt gksrs gq, ik;s x;s gSaA tc vki fdlh dks Js‘B ekudj iqjLd`r dj jgs gksrs gSa rks Bhd mlh le; mruk gh ;k mlls Hkh T;knk Js‘B NwVk gqvk fn[kk;h nsrk gSA vU; dkj.kksa esa ls mldk ,d dkj.k ;g Hkh gS fd l`tukRed ys[ku ;k dyk dh vU; fo/kkvksa dk ewY;kadu vFkok xzsfMax dj lduk furkUr dfBu gSA tcfd lEeku vki fdlh dk Hkh dj ldrs gSa] ftldh Hkh miyfC/k vkidks ilUn vk tk;sA og loZJs‘B Hkh gks ldrk gS vkSj ugha Hkh gks ldrkA lEeku esa Js‘Bre dh vfuok;Zrk ugha gksrhA vki ,d gh /kjkry ij ekurs gq, ,d ls vf/kd yksxksa dks leku fo/kk eas lEekfur dj ldrs gSaA iqjLdkj ds lkFk vki ;g NwV ugha ys ldrsA blfy, eSa bl lEeku ls dsoy bruk vFkZ xzg.k dj jgk gwa fd fu.kkZ;d e.My us esjs ys[ku dks fpfUgr djus ;ksX; ekukA
     fQj eSa /kU;okn nsrk gwa bl dk;ZØe esa vk;s lHkh Jksrk fe=ksa dk ftUgksaus vius O;Lr le; ls bl vk;kstu esa “kkfey gksus dk le; fudkykA mlesa Hkh fo”ks‘k :i ls vius xkao rFkk ikl iM+ksl ds xkaoksa ls vk;s fe=ksa dk] tks bruh nwj ls cM+s losjs pydj ;gka rd igqapsA vius izkbejh ds lgikBh Jh jkelq[k flag dk ftudk vkys[k vki yegh ds bl fo”ks‘kkad esa i<+ ldrs gSaA vius ckyl[kk Jh Hkh‘e izrki flag iwoZ xzke iz/kku dk] ftudk vkys[k esjs Åij dsfUnzr eap ds vad esa vkius i<+k gksxkA vius ckyl[kk Jh tequk izlkn ;kno dk] ftuds lkFk 14 lky dh mez esa eSa jsy ls fcuk fVdV ;k=k djrs gq, iz[;kr ys[kd misUnzukFk v”d ls feyus muds ?kj bykgkckn x;k FkkA eSa Lokxr djrk gwa vius gkbZLdwy ds lgikBh Jh jke[ksykou th dk tks yEcs le; rd eq>s viuh lkbfdy ij] dHkh Ýse ij vkSj ;nkdnk iSj esa >qu>quh p<+ tkus dh fLFkfr esa gSafMy ij cSBkdj Ldwy ys tkrs] ykrs jgsA vius vxzt leku pkS/kjh tks[kw iky th dk tks vius {ks= esa tkrh; iapk;r ds /kqja/kj eqf[k;k gSaA tc pkgs iapk;r dh fn”kk eksM+ nsuk ftuds ck;sa gkFk dk [ksy gS] ftldks pkg ysa iapk;r esa ,sls ,sls rdksZa ls rku nsrs gSa fd budk miuke gh rkuw iM+ x;k gSA buds lkFk jgdj ;g FkksM+k&cgqr le> ldk fd iapk;r dh pky vkSj “krjat dh pky esa fdruh lekurk gksrh gSA ;gh yksx esjh iwath gSaA esjs mRiszjd gSaA esjh izsj.kk ds lzksr gSaA
eq>ls vDlj iwNk tkrk gS fd eSa ys[kd dSls cuk\ bldk mRrj rks eq>s Hkh ugha ekyweA esjs vklikl] xkao ;k iM+ksl esa Hkh dksbZ dfo ;k ys[kd ugha gqvk ftlls izsj.kk ysus dh fLFkfr curhA gekjs xkao esa ,d lk/kw Fks ckck cynso nklA mUgksaus Hkfo‘;ok.kh dh Fkh fd ;g yM+dk vkxs pydj ukeh pksj cusxkA ysfdu Ldwy esa lgikfB;ksa ds cLrs ls NksVh&eksVh phtsa pqjkus ds vykok eSa bl fn”kk esa T;knk izxfr ugha dj ldkA fy[kus ds ckjs esa fdlh us lkspk Hkh u gksxk vkSj fy[kus yxkA i<+us dk “kkSd cpiu ls t:j yx x;k FkkA mlls Hkh igys tc v{kj Kku ugha Fkk rHkh ls lquus dk “kkSdA fdLls] cq>kSOoy] xhr oxSjgA eSa dg ldrk gwa fd i<+rs&i<+rs fy[kus dh vksj >qdko gqvkA jkek;.k vkSj egkHkkjr dh dFkk,a] ukVd vkSj ukSVadh ds ek/;e ls lquh xbZ dFkk,aA lqYrkuk Mkdw] “kkgh ydM+gkjk] lR;oknh gfj”pUnz] /kwy dk Qwy] ;gwnh dh yM+dh tSlh ukSVafd;kaA iwjh jkr xk;s tkus okys vk[;kuijd xhrksa ds ek/;e ls izkIr dFkk,aA fl;kj dh] ykseM+h dh] [kjxks”k dh dFkk,aA cw<+h tknwxjfu;ksa dh dFkk,a] vkYgk Åny vkSj yksfjd dh dFkk,aA lSdM+ksa eq[kksa ls lquha gtkjksa dFkk,aA lc us /khjs&/khjs eu esa dFkk dk jlk;u rS;kj fd;k gksxkA ogh ,d mez ds ckn dkxt ij mrjus yxk gksxkA
     fy[kuk vPNk dke ekuk tkrk gSA igys rks ;g fof”k‘V ekuk tkrk FkkA vknj&lEeku ikus yk;d ekuk tkrk FkkA ys[kd dfo Lo;a dks lkekU; tu ls rfud vyx rfud vuks[kk ekurs Fks] ikBd Hkh ekurs FksA oDr ds lkFk bl /kkj.kk esa deh vk;hA vc Lo;a ys[kd Hkh ekuus yxs gSa fd os lkekU; izk.kh gSaA ysfdu ys[ku dk dke vHkh Hkh cqjk ugha ekuk tkrkA dqN yksx cSBs Bkys dk eku ysa og nwljh ckr gSA Lo;a ys[kd ds ifjokj okys Hkh ftUgsa izk;% ys[kd dh vdeZ.;rk ;k vjktdrk dk nq‘ifj.kke Hkksxuk iM+rk gS] ys[ku deZ dks [kjkc ugha ekursA
     tgka bfrgkl jkts jtokM+ksa dh yM+kbZ] ‘kM~;a= vkSj gkj&thr dk jkstukepk jgk gS] ogka lkfgR; vke tuthou] mlds lq[k&nq%[k] g‘kZ fo‘kkn vkSj la?k‘kZ dk jkstukepk gSA ftl dky ds lEcU/k esa bfrgkl ekSu gS mlds ckjs esa lkfgR; crkrk gSA bldk ,d mnkgj.k e`PNdfVde] ukVd gS ftlls gesa ml ns”k dky dh ifjfLFkfr vkSj lkekftd rkus&ckus dh tkudkjh feyrh gSA mldks i<+dj ge tku ysrs gSa fd ml le; ckS)ksa ij fdruk ladV FkkA jktk dk lkyk ew[kZ gksrs gq, Hkh fdruk “kfDr”kkyh gksrk FkkA xf.kdkvksa dh lekt esa D;k gSfl;r FkhA
     gekjs lekt esa ys[kd dh D;k gSfl;r gS\ D;k ys[ku ls Økafr gks ldrh gSA ØkfUrdkjh ifjorZu ds fy, cgqr lkjs dkjdksa dk lfØ; gksuk vko”;d gksrk gS ysfdu ;g fufoZokn gS fd ys[ku ikBd dh ekufldrk dk fuekZ.k djrk gSA vxj ys[ku vius lekt ds vketu dh vk”kk vkdka{kk vkSj liuksa ls tqM+k gS rks og vius ikBd ls rknkRE; cuk;sxkA mldh lksp dks izHkkfor djsxkA mldk dYpj djsxkA dYpj djus dh ckr eSaus igys Hkh ,d mnkgj.k nsdj Li‘V fd;k gSA eku yhft, fd vkidks vius [ksr esa igyh&igyh ckj nsgjknwu ds cklerh /kku dh iSnkokj ysuh gSA rks dsoy cht ds Hkjksls vki ,slk ugha dj ldrsA ;fn vki vius [ksr esa iSnk gq, /kku ds pkoy esa og [kq”kcw vkSj Lokn ikuk pkgrs gSa tks nsgjknwu ds [ksr esa iSnk /kku ds pkoy eas gksrk gS rks vkidks cht ds lkFk lkFk nsgjknwu ds ml [ksr dh feV~Vh ykuh iM+sxh ftlesa og /kku cks;k tkrk jgk gSA ml feV~Vh dks vius [ksr esa Mkydj ikuh iysok djds eghus nks eghus ds fy, NksM+uk iM+sxk rkfd ml feV~Vh ds lkFk vk;s cSDVhfj;k vkids [ksr esa QSydj mldk dYpj dj ldsaA ;gh fLFkfr ys[ku ds lkFk Hkh gksrh gSA vkidh jpuk vkids ikBd dk euksuqdwy dYpj djrh gSA vkidh fopkj/kkjk ls ikBd izHkkfor gksrk gSA rknkRE; LFkkfir djrk gSA bl izdkj ijks{k :i ls lkfgR; Økafr dh tehu rS;kj dj ldrk gSA
    ;g iz”u vDlj iwNk tkrk gS fd ys[kd D;ksa fy[krk gS\ tgka rd esjk ekeyk gS] eSa vke tu dh csgrjh dh dkeuk ls fy[krk gwaA eSa ys[ku dk mn~ns”; gj izdkj ds “kks‘k.k vU;k;] vlekurk vHkko vkSj mRihM+u ls eqfDr ekurk gwaA buds [kkRes dh tehu rS;kj djuk gh vius ys[ku dk eq[; ljksdkj ekurk gwaA
rqylhnkl th us dgk gS&
dhjfr Hkfur Hkwfr Hkfy lksbZ
lqjlfj le lc dj fgr gksbZ
    lkfgR; ,slk gks ftlls lcdk fgr gksA lcdks fiz; gks] ;g vko”;d ughaA nokbZ dHkh&dHkh dM+oh gksrh gS blfy, [kkus esa fiz; ugha yxrhA ysfdu mldk lsou fgrdkjh gS blfy, vfiz; gksus ij Hkh Lohdk;Z gksrh gSA gekjs ns”k ds vke vkneh dh gkyr ftl rjg fnuksafnu n;uh; gksrh tk jgh gSA vehj vkSj xjhc ds chp dh [kkbZ ftl rjg ?kVus ds ctk; c<+rh tk jgh gS] ,slh fLFkfr essa fgrdkjh vkSj i{k/kj ys[ku dh vis{kk fnuksafnu c<+rh tk jgh gSA vHkh ,d v[kckj esa i<+us dks feyk fd ns”k esa lcls T;knk osru fdlh O;kikfjd laxBu ds eqf[k;k dks tks lky Hkj ds fy, fn;k x;k og 57 djksM+ #i;s ls vf/kd FkkA tcfd ns”k dh rhu pkSFkkbZ vkcknh dh lkykuk vkenuh 57 gtkj Hkh ugha gSA ,d pkSFkkbZ dh rks 5700 Hkh ugha gSA fdruk varj gSA nl gtkj xqus vkSj ,d yk[k xqus dkA lcls T;knk ikus okys vkSj lcls de ikus okys ds chp esa yk[k xqus dk varjA fiNys fnuksa ns”k dh ljdkj us fnYyh esa ,d Hkkst fn;k Fkk ftleas fMuj dh ,d IysV dh dher Fkh 7700 #i;sA mls lknxh okyk Hkkst dgk x;k FkkA ogha ljdkj dgrh gS fd ;fn ,d vkneh dh vkenuh 28@& jkst gS rks og xjhc ugha ekuk tk ldrkA vxj 28@& dh vk/kh jde f”k{kk] nokbZ] diM+s] yRrs] fdjk;s&HkkM+s vkfn dk [kpZ vk/kk vFkkZr 14@& eku fy;k tk, vkSj ckdh 14@& nks oDr dh jksVh dk [kpZ 7@& eku fy;k tk; rks ,d oDr dk fgLlk 7@& vk;kA ftls ,d oDr ds [kkus ds fy, 7@& fey tk,a mls xjhc ugha ekurh ljdkjA D;k vuqikr gS ljdkj dh IysV vkSj xjhc dh IysV dh dher esaA gtkj xqus dkA vkSj ftUgsa ljdkj xjhc ekurh gS mlds Hkkstu esa varj dk D;k vuqikr gksxk\ lksp yhft,A rks ;g varj ftruh tYnh feV lds feVuk pkfg,A dY;k.kdkjh jkT; dh izkFkfed ftEesnkjh bl gtkj xqus yk[k xqus varj dks feVkus ds vykok vkSj D;k gksuh pkfg,A vxj xjhch js[kk r; djds bls nwj ugha dj ik jgs gSa rks vehjh js[kk r; dfj,] O;fDrxr lEifRr dh lhek r; dfj;sA
     lkekftd ifjorZu esa ys[kd dh Hkwfedk fdruh Hkh ux.; D;ksa u gks ysfdu og lRrk dh nklh ;k psjh rks gjfxt ugha gSA u gh og xkao ds flokus ij Hkwadus okyk dqRrk gS] tSlk fd MkW- ukeokj flag rFkk muds HkkbZ MkW- dk”khukFk flag us rn~Hko ds vk;kstu esa fiNys fnuksa dgk FkkA ;fn fdlh ys[kd }kjk lRrk dh psjh ;k dqRrs dh Hkwfedk Lohdkjh ;k fuHkkbZ Hkh x;h gks rks mls viokn gh ekuk tkuk pkfg,A esjs fopkj ls ys[kd dh Hkwfedk bl xSj cjkcjh dh [kkbZ dks ikVus dh gksuh pkfg,] pkgs og fpfM+;k }kjk leqnz ikVus ds fy, fd;s tkus okys iz;kl Hkj gh D;ksa u gksA
     ,d vU; iz”u tks vDlj iwNk tkrk gS] og gS fopkj/kkjk dk iz”uA l`tukRed ys[ku esa fopkj/kkjk dh fLFkfr dgka vkSj fdruh gksuh pkfg,\ vHkh fiNys fnuksa eSaus ,d vk;kstu esa viuh dgkuh dk ikB fd;k] ikB ds ckn ,d Jksrk feys] flUgk lkgcA mUgksaus foLrkj ls eq>s esjh dgkuh esa ekStwn lS)kafrdh ls voxr djk;kA fQj mu fl)kUrksa ds ckjs esa voxr djk;k tks dgkuh esa vuqifLFkr Fks ysfdu ftUgsa dgkuh esa gksuk vko”;d FkkA viuh ckr ds Øe esa mUgksaus vaxszth ds dbZ ,DlDywflo “kCnksa dh lgk;rk yhA fQj tkuuk pkgk fd esjs iYys dqN iM+k fd ughaA eSaus bZekunkjh ls badkj esa flj fgyk;k vkSj rfud dqafBr eglwl djus yxkA ml le; eq>s vius xkao ds iape dkdk dh ;kn vk;hA blh rjg cpiu esa eSa rc dqafBr eglwl djrk Fkk tc iape dkdk ds dVcbBh lokyksa ls ikyk iM+rk FkkA iape dkdk ds ftEes thou Hkj tkuojksa ds pjkus dk dke jgkA xehZ dh NqV~Vh esa eSa Hkh eghus Hkj tkuoj pjkus tkrk FkkA rc eSa ntkZ nks ;k rhu esa jgk gksÅaxkA iape dkdk “kk;n ,d ;k Ms<+ lky Ldwy x;s gksaxsA fQj ugha x;sA eku fy;k fd t:jr Hkj dk i<+ fy, gSaA os QVkQV dke fucVkus esa ;dhu djrs FksA blfy, tks cPps pkj&pkj] ikap&ikap lky rd i<+rs gh pys tk jgs Fks muds ckjs esa ekurs Fks fd llqjs [ksrhckjh ds dke ls cpus ds fy, ,d lky dh i<+kbZ esa dbZ&dbZ lky yxk jgs gSaA rc os ijh{kk ysrs FksA muds iz”u xtc ds gksrs FksA iwNrs&igkM+k vkrk gS\
&vkrk gSA
&dS rd\
&nl rd
&vPNk crkvks] dS uoka eqg pqEeh dk pqEekA rc u pqEeh pqEek le>us dh esjh mez Fkh u mldk egRo tkurs FksA lkr dk igkM+k vPNh rjg vkrk Fkk ysfdu fgUnh esa 63 dh nksuksa fxufr;ksa dh iksth”ku pqEeh&pqEek okyh gS bl vksj dHkh /;ku gh ugha x;k FkkA
vxj ,d nks fnu esa fdlh ls iwNdj bldk tokc ns nsrk rks os vkSj dM+k iz”u iwN ysrsA ,slk iz”u ftldk mRrj ipkl&ipiu o‘kZ chr tkus ds ckn Hkh vkt rd ugha tku ldkA os vo/kh cksyh esa iwNrs&vPNk crkvks] cSjh ¼csj½ dS xkaM+ dkSuh ew gksr gS\ blfy, ml fnu dgkuh ikB ds ckn iwNs x;s flUgk lkgc dk iz”u lqudj eq>s iape dkdk dh ;kn vk;h FkhA iape dkdk dh ;kn ml le; Hkh vkrh gS tc dksbZ ys[kd ckrphr ds Øe esa crkrk gS fd os rks ,d gh ckj dEI;wVj ij dgkuh fy[kdj Qkbuy dj nsrs gSaA dbZ ckj fy[kuk ;k lalks/ku djuk os oDr dh cjcknh ekurs gSaA ,sls yksxksa dks eSa thfu;l ekurk gwa vkSj oDr dh dher lEk>us ds ekeys esa mUgsa iape dkdk dh Js.kh dk ekurk gwaA ij ,sls thfu;l de gSaA irk ugha ;g [kq”kh dh ckr gS fd-----
   fopkj/kkjk jpuk dk izk.k gS ysfdu ;g izk.k “kjhj esa dgka jgrk gS\ D;k mldh Iysflax fdlh ,d LFkku ij lhfer gksrh gS\ og rks iwjs “kjhj easa O;kIr gSA ,sls gh fopkj/kkjk Hkh iwjh jpuk esa O;kIr jgrh gSA og vyx ls fn[kk;h ns rks ;g jpukdkj dh vlQyrk gSA mldh rklhj eglwl gksuh pkfg,] og fn[kuh ugha pkfg,A tSls “kjcr esa phuh dh feBkl eglwl gksrh gS og fn[krh ughaA tc rd phuh fn[krh jgsxh] ikuh esa ?kqydj ,dkdkj ugha gks tk,xh] rc rd og feBkl iSnk ugha dj ldrhA
,d vkSj ckrA dgkuh fucU/k ugha gSA fucU/k esa lc dqN ys[kd cksyrk gS ysfdu dFkk esa cksyus ds fy;s tc mlus eupkgs ik= [kM+s dj fn;s rks fQj ys[kd dks chp esa cksyus dh t:jr D;ksa iM+s\ bldk eryc mlus xwaxs ik= [kM+s fd, gSa] muds eqag esa tqcku ugha fn;kA os dBiqryh ek= gSa blfy, ys[kd dks muds ihNs [kM+s gksdj izkfEiaV djuh iM+ jgh gSA ;g dFkkdkj dh vlQyrk gSA
Tkgka fopkj/kkjk dh vuqifLFkfr ls vkidk dFku /kqa/k esa fyiVk jg tk;sxk] Li‘V fn[kk;h ugha nsxk] ogha og rst LikWV ykbV ds :Ik esa iM+sxk rks phtksa dks lgh ifjizs{; esa ns[kuk lEHko ugha jgsxkA blfy, phuh feykrs le; mldh ek=k dk /;ku j[kuk t:jh gS fd vfr mRlkg esa “kjcr dh txg pk”kuh u cu tk,A l`tukRed ys[ku esa vkVZ vkSj Øk¶V dk ef.kdkapu la;ksx gksuk pkfg,A
ys[kd dk dksbZ fyax ughaA ys[kd dh dksbZ tkfr ughaA ys[kd dk dksbZ /keZ ughaA ;gka rd fd ys[kd dk dksbZ ns”k ughaA og fo”o ukxfjd gSA gS ugha rks gksA
eqfDrcks/k iwNrs Fks& ikVZuj rqEgkjh ikWfyfVDl D;k gS\
esjk ekuuk gS fd ys[kd dh ,d gh ikWfyfVDl gS& izfrjks/k! gj xyr dk gj gky esa izfrjks/kA

शिवमूर्ति २/३२५ विकास खंड गोमती नगर लखनऊ -२२६०१०
Blog- shivmurti.blogspot.com

Tuesday, December 18, 2012

लमही पत्रिका ने अपने अक्टूबर-दिसम्बर, २०१२ का अंक मेरे ऊपर केन्द्रित किया है, जिसे आप लमही के ब्लॉग-htt://lamahipatrika.blogspot.com, पर तथा फेसबुक- htt://www.facebook.com/people/lamahi-patrika/100003787422744

लमही पत्रिका ने अपने अक्टूबर-दिसम्बर, २०१२ का अंक मेरे ऊपर केन्द्रित किया है, 


पूरी पत्रिका देखने के लिए नीचे कवर पर क्लिक करें. 



मंच पत्रिका ने अपने जनवरी-मार्च २०११ के अंक को मेरे ऊपर केन्द्रित किया है, इसे आप निम्न वेबसाइट पर विस्तृत देख सकते हैं. वेबसाइट-WWW.MANCHPRAKASHAN.COM

मंच पत्रिका का जनवरी - मार्च २०११ अंक मेरे उपर केन्द्रित था. ब्लॉग के पाठकों के लिए इस अंक के दोनों पीडीऍफ़. यहाँ प्रस्तुत हैं..

पार्ट १ -   http://issuu.com/shivmurti/docs/manch


पार्ट २ -   http://issuu.com/shivmurti/docs/manch_11















इनेस फोर्नेल यूनिवर्सिटी ऑफ़ गोटिनजेन (जर्मनी) में ENDOLOGY पढ़ाती हैं, भारतीय साहित्य में साम्प्रादायिकता पर किये गए लेखन पर उनके द्वारा विशेष अध्ययन किया गया है, उनके आलेख 'Die Ereignisse von Ayodhya im spiegel der gegenwartigen Hindi-Literatur' में मेरे उपन्यास त्रिशूल पर विस्तार से लिखा गया है जो ब्लॉग क पाठकों के लिए यंहा प्रस्तुत है -

Sunday, December 16, 2012

भोपाल की अग्रणी साहित्यिक संस्था 'स्पंदन' द्वारा स्वराज भवन में आयोजित कार्यक्रम में श्री शिवमूर्ति पर केन्द्रित लमही के विशेषांक का विमोचन किया गया, कार्यक्रम में डॉ विजय बहादुर सिंह , श्री राजेश जोशी, नरेन्द्र जैन, पंकज राग, उर्मिला शिरीष तथा प्रज्ञा रावत ने इस अंक का विमोचन किया.

प्रख्यात कथाकार काशीनाथ सिंह को आसनसोल में सृजन सम्मान-३ प्रदान करते हुए कथाकार शिवमूर्ति

प्रसिद्ध कथाकार ओमा शर्मा द्वारा लिया गया शिवमूर्ति का साक्षात्कार जो साहित्यिक पत्रिका लमही के अक्टूबर-दिसम्बर २०१२ में प्रकाशित हुआ है, ब्लॉग के पाठकों को पढने के  लिए नीचे वेबसाइट लिंक दिया जा रहा है.
http://issuu.com/lamahipatrika/docs/lamahi_oct_dec_2012
साहित्य के लिए दिया जाने वाला लमही पुरस्कार २०११ मुझे दिनांक ८ अक्टूबर २०१२ को लखनऊ में किया गया. इस समारोह की कुछ झलकियाँ-
बाएं से प्रसिद्ध आलोचक एवं कवि अशोक बाजपेई, बीच में शिवमूर्ति प्रसिद्ध कथाकार चित्रा मुद्गल  एवं लमही  पत्रिका के प्रधान संपादक श्री विजय राय.

लमही पत्रिका के शिवमूर्ति विशेषांक का लोकार्पण प्रसिद्ध कथाकार तथा समारोह की अध्यक्ष   मुद्गल द्वारा किया गया, साथ में बाएँ से शिवमूर्ति, अशोक बाजपाई और दाहिने से श्री विजय राय तथा श्री सुशील सिद्दार्थ

Saturday, December 15, 2012

प्रसिद्ध कथाकार ओमा शर्मा द्वारा लिया गया शिवमूर्ति का साक्षात्कार जो साहित्यिक पत्रिका लमही के अक्टूबर-दिसम्बर २०१२ में प्रकाशित हुआ है, ब्लॉग के पाठकों के लिए यंहा प्रस्तुत है.
http://issuu.com/lamahipatrika/docs/lamahi_oct_dec_2012
प्रसिद्ध कथाकार ओमा शर्मा द्वारा लिया गया शिवमूर्ति का साक्षात्कार जो साहित्यिक पत्रिका लमही के अक्टूबर-दिसम्बर २०१२ में प्रकाशित हुआ है, ब्लॉग के पाठकों के लिए यंहा प्रस्तुत है.
http://issuu.com/lamahipatrika/docs/lamahi_oct_dec_2012

कहानी ऐसे मिली