Tuesday, February 23, 2010

केशर कस्तूरीः अविस्मरणीय स्त्रियों का संसार

अक्सर देखने में आता है कि स्त्रियों से संबंधित समस्याओं पर लेखिकाएं ही ज्यादा हिस्सेदारी निभाती हैं और वे स्त्रियों से संबंधित लेखन करते-करते इसे अपना रचना-धर्म बना लेती हैं। और इसीलिए हमारे देश का एक बड़ा साहित्यिक वर्ग पूछता है- स्त्री मसलों पर अधिकतर स्त्रियां ही क्यों लिखती हैं? लेकिन इन कथनों और ऐसी अटकलों के विरुध्द सार्थक प्रयासस्वरूप विशिष्ट तेवर के रचनाकार शिवमूर्ति की कहानियों का पहला संकलन आया है- केशर कस्तूरी। इस संग्रह में सभी कहानियां स्त्री-जीवन से संबंधित हैं। इन कहानियों में कहीं परास्त स्त्री है तो कहीं संघर्षशील स्त्री। ये संघर्षशील स्त्री जिस तरह मौजूदा समाज में तमाम कठिन परिस्थितियों के बीच हर बार नहीं जीत सकती है, उसी प्रकार इन कहानियों में भी उनकी स्थिति है। इस संग्रह में शिवमूर्ति की कुल छह कहानियां हैं।
संग्रह की पहली कहानी कसाईबाड़ा शहर से शुरू हुए राजनीतिक अपराध और महत्वाकांक्षा का जो रूप वर्तमामन समय में है, उसे बहुत बेबाकी और कथात्मक ढंग से सामने लाती है। एक स्त्री पात्र शनिचरी को केंद्र में रखकर लिखी गई यह कहानी कमजोर लोगों की विवशताओं और किसी ऐसे आदमी की तलाश को दर्शाती है, जो उनके किसी काम आ सके, जिसे वे अपने प्रतिनिधित्व के लिए सत्ता में भेजते हैं, लेकिन आजकल ऐसे नेता और गांव के प्रधान अपनी हैसियत को बचाए रखने के लिए इन सीधे-सादे लोगों का शोषण करते हैं, प्रत्युत्तर में ये भोले लोग कुछ भी नहीं कर पाते और इसकी परिणति इनकी मृत्यु में होती है, लेकिन शिवमूर्ति की इस कहानी में दिखाया गया है कि अब ये लोग नामसझ नहीं रहे और ये लातार इस स्थिति से रूबरू होने की लड़ाई में हैं। यह कहानी अपनी प्रस्तुति और कथ्य के लिहाज से बहुत प्रभावशाली है।
संग्रह की दूसरी कहानी अकालदंड भी एक स्त्री को केंद्र में रखकर लिखी गई है। यह कहानी लंबे समय से चली आ रही स्त्री-देह की उपयोगिता और शोषण की वही बानगी है , जो कई बार अनेक लेखकों द्वारा लिखी जा चुकी है, लेकिन शिवमूर्ति यहां अलग इसलिए हो जाते हैं, क्योंकि वे कहानी की नायिका सुरजी द्वारा उस चरित्र का अंत दिखाते हैं, जिसके कारण वह स्वयं को असुरक्षित महसूस करती थी। स्त्री की जागरूकता के नए आयाम इस कहानी के माध्यम से ग्रामीण परिवेश में भी देखने को मिलते हैं। यह कहानी गांवों में पनप रही जागरूकता की जड़ों की प्रतीक बनकर सामने आती है।
लेकिन इसी संग्रह की एक दूसरी कहानी तिरिया चरित्तर में नायिका विमली अंततः अपनी शारीरिक सुरक्षा नहीं कर पाती। उसका श्वसुर उसके साथ बलात संबंध बना लेता है। इस घटना के बाद इस पर पंचायत बैठती है, पंचायत के बीच भी अपराधी पुरुष पंचायत का विश्वास अपने पक्ष में जीत लेता है। अंततः विमली द्वारा उस पर लगाया गया सही आरोप भी असत्य साबित हो जाता है। इस आरोप के असत्य साबित होने पर नायिका को पंचायत द्वारा शारीरिक दंड दिया जाता है। शिवमूर्ति की कहानी अकाल दंड में स्त्री जागरूक और चैतन्य स्थिति में दिखाई पड़ती है किंतु तिरिया चरित्तर में स्त्री फिर वही प्राचीन काल की तरह प्रताड़ित और नारकीय स्थिति में दिखाई देती है। यह विसंगति हमारे समाज में इसी रूप में मौजूद है। इसलिए इन कहानियों में दिखाई पड़ती है। आज बीसवीं सदी के करीब जाते हुए समय में ऐसे ग्रामीण दृश्य आश्चर्यजनक ढंग से उद्वेलित करते हैं। ट्रीटमेंट के लिहाज से यह कहानी बेहद सटीक और भावपूर्ण तो है ही, तिरिया चरित्तर के रूप में प्रचलित मुहावरे को तोड़कर उसका नया अर्थ पुरुष प्रपंच के रूप में गढ़ती है और इस रूप में एक अविस्मरणीय कहानी का दर्जा हासिल करती है।
भरत नाट्यम कहानी एक बेरोजगार व्यक्ति की पीड़ा का एकालाप है, लेकिन इस कहानी में नायिका की अति महत्वपूर्ण भूमिका है। इस कहानी में स्त्री के नकारात्मक व्यक्तित्व की पड़ताल और विवेचना है। बेरोजगार युवक का साथ अधिक समय तक उसकी पत्नी नहीं दे पाती और अंत में अपने पड़ोसी के साथ शहर भाग जाती है। ग्रामीण परिवेश में अस्त-व्यस्त यौन संबंधों की व्यथा का जिक्र भी लेखक ने इस कहानी में अतिभावुक प्रसंगों के माध्यम से किया है। इस कहानी का शिल्प अद्भुत है और जगह-जगह व्यंग्य का अच्छा प्रयोग किया गया है।
संग्रह की अगली कहानी सिरी उपमा जोग में मुख्यतः दो स्त्री पात्र केंद्र में हैं। हमारे गांवों में विकास के साथ-साथ कुंठाओं और वर्जनाओं का भी प्रवेश हुआ है। और इन्हीं कुठाओं के परिणाम हैं कि गांवों के पढ़े-लिखे लोगों को जब शहर में नौकरी मिल जाती है तो वे अपनी गंवई पत्नी को शहर लाते हुए हिचकते हैं और अक्सर स्वयं को अविवाहित ही बताते हैं। इसका परिणाम उनका दूसरा विवाह (किसी शहरी लड़की के साथ) होता है। ऐसी ही पृष्ठभूमि पर आधारित है कहानी सिरी उपमा जोग। यह कहानी अपनी भाषा के लिहाज से बहुत रोचक और मर्मस्पर्शी है। भावुकता की भाषा से लेखक ने परोक्ष रूप से परहेज किया है, लेकिन कहीं न कहीं वह किसी अन्य रूप में आ ही गई है।
संग्रह की शीर्षक कहानी केशर कस्तूरी लोक धरातल पर एक अलग तेवर के साथ लिखी गई है। कहानी की नायिका केशर कुंवारे दिनों में रंगीन सपने बुना करती है और एक रिश्तेदार के पास शहर जाकर अपने सपने के कैनवास को और विस्तार देती है। वह एक सुघड़, सुशील और बेहद समझदार लड़की है, लेकिन विवाहोपरांत उसे बेरोजगार पति के कारण जीवन भर संत्रास और घुटन का सामना करना पड़ता है।
उसकी इस अवस्था में उसका सामर्थ रिश्तेदार कहीं काम नहीं आता। जीवन की विडंबनाओं का संत्रास इस कहानी के माध्यम से उभरकर सामने आता है। एक अनपढ़ स्त्री की निरीहिता और बेचारगी को शोधात्मक ढंग से कथाकार ने जीवंत रूप में बदला है। यह कहानी भाषा और शिल्प दोनों में ही बेहतर है। कहानी में जगह-जगह लोकगीतों के प्रयोग ने कहानी को एक अद्भुत कलेवर दे दिया है और यही कलेवर इस कहानी को शिवमूर्ति की अन्य कहानियों से अलग करता है।
हिंदी कहानी में शिवमूर्ति तब आए, जब कहानी में परिवेश मजबूत हो रहा था और पात्र कमजोर। ऐसी स्थिति में न सिर्फ उन्होंने मजबूत पात्रों को खड़ा किया, बल्कि परिवेश से उनका तादात्म्य भी स्थापित किया। अपने समकालीन कथाकारों में वे अकेले हैं, जिनके यहां स्त्रियां इतने विविध रूपों में उपस्थित हैं। कह सकते हैं कि शिवमूर्ति ने अविस्मरणीय परिवेश तो रचा ही है, उनमें बसे उनके पात्र भी अद्भुत और अविस्मरणीय हैं।

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