कुच्ची का कानून : वंचित अस्मिताओं की यथार्थ
अभिव्यक्ति
अनुराधा गुप्ता
‘‘लेखक
की सिंसियरिटी का प्रश्न वस्तुत: उसके अंतर्जगत की अभिव्यक्ति से सम्बन्धित
है। यदि वह अभिव्यक्ति कृत्रिम है तो नि:संदेह वहां सिंसियरिटी नहीं है। किन्तु कृत्रिमता केवल इन्सिंसियरिटी की ही उपज नहीं होती, वह अकविता की उपज होती है अर्थात्
अंतर्जगत की निर्जीवता और जड़ता का प्रमाण होती है।’’ (मुक्तिबोध : नए साहित्य का
सौंदर्यशास्त्र)
निश्चित
तौर पर कविता अर्थात् साहित्य ‘सिंसियरिटी’ अर्थात् सम्वेदना और अंतर्जगत की चेतना की उपज है। सम्वेदना
साहित्य की नींव है जिसके बगैर उसके अस्तित्व की कल्पना बेमानी। यही वह प्रमुख
तत्व है जो साहित्य को साहित्य बनाता है तभी उसे भाव या शक्ति का साहित्य कहते
हैं। (spontaneous
overflow of powerful feelings)। शिवमूर्ति का कथा साहित्य इसकी सशक्त बानगी है। वे मानवीय सम्वेदनाओं
के समर्थ वह सजग लेखक हैं, इंसानी जज्बातों को वे जिस कुशलता से उकेरते हैं ये उनकी चेतना और ‘सिंसयरिटी’ के कारण ही सम्भव होता है।