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About Shivmurti
Fiction writer Shivmurti, who has most powerfully depicted the sufferings. Predicament and exportation of the rural folk , peasants, laborers, the women and the oppressed of northern India, was born on march 11, 1950 in a peasants family in village Kurang (Sultanpur Distt.) situated at an equal distance from Ayodhya and Prayag .
He graduated from Sultanpur. Attending school in his childhood was his most unpleasant experience which frequently led him to remain away from his home. Most of his early life was spent with his maternal grandmother and in aimless deviations. Due to his father’s hard physical punishment he amended himself. But, then his father himself went away from the home and became mendicant. In a very premature age of 13-14, he had to shoulder the responsibility of his family which was already passing through financial crises and life insecurity. He started earning his livelihood, got tailoring training from a tailor, prepared Bidis, sold Calendars, managed gatherings (MAZMA) to sell fake medicins for increasing sex power, he narrowly saved himself from joining the gang of a dacoit, his friend, Naresh.
For sometime he joined teaching profession and railway service. Soon after he was selected as sales tax officer by U.P. public service commission in 1975. This gave some stability to his livelihood. He retired in 2010 as Additional Commissioner.
He became acquainted with literature during his childhood when he used to hear his father reciting Ram Charitmanas, Kavitawali, Vinay Patrika. Kabeer’s couplets. But the dialogues and the sensational stories of stage-plays and nautankies which he had seen in his childhood, created his inclination towards fiction writing.
‘Vatayana’ a journal published his first short story ‘Panfool’ in 1968. the first prize awarded to him in ‘Aparh samvad’ Competition arranged by ‘Dinman’ a famous new weekly in 1976 revived his inclination towards creative writing. A collection of his short stories under the title ‘Kesar Kasturi’ was published by Radhakrishna Prakashan, Delhi in 1991. Later on Rajkamal Prakashan, Delhi published his two novels ‘Trishool’ in 1995 and ‘Tarpan’ in 2004. his third novel ‘Aakhiri Chhalang’ published in 2008 was acclaimed much.
Bangla, Punjabi, Urdu, Oriya, Kannad etc. versions of his short stories have also been published. Trishool was translated in Urdu & Punjabi while ‘Aakhiri Chhalang’ in Kannad and ‘Trapan’ in German.
Films were produced on his short stories ‘Bharatnatyam’, ‘Kasaibada’ and ‘Tiriyacharrittar’. Production of another film on ‘Tarpan’ is in process. More than thousand stage performances of ‘Kasaibada’, ‘Tiriyachattar’, ‘Bharatnatyam’ and ‘Tarpan’ were staged.
The story ‘Tiriyachattar’ was awarded first prize by literary magazine ‘Hans’ in 1988. He was honored with Anand Sagar, Smriti, ‘Kathakram’ award in 2002.
He was also honored with ‘Avadhbharti Samman’ in 2010. ‘Srijan Samman’ in 2011 and ‘Lamahi Samman’ in 2012.
Literary Magazine ‘Manch’ & ‘Lamahi’ have published their Jan-March 2010 issue and Oct-dec. 2012 issue respectively, as a special issue dedicated to the literary work of Shivmurti.
A part of Literary Magazine Naya Jnanodaya Jan. 2008 and Samawartan Sep. 2013 was dedicated to the literary work and exclusive interview of Shivmurti.
शिवमूर्ति के बारे में
उत्तर भारत के ग्रामीण जनजीवन, किसानों, मजदूरों, स्त्रियों तथा दलितों की दयनीय स्थिति, शोषण एवं दमन को प्रभावित ढंग से चित्रित करने वाले कथाकार शिवमूर्ति का जन्म अयोध्या और प्रयाग से बराबर की दूरी बनाकर बसे गांव कुरंग, जिला सुल्तानपुर (उ.प्र.) में 11 मार्च 1950 को एक सीमांत किसान परिवार में हुआ। वहीं से बी.ए. तक की शिक्षा। बचपन में सबसे अप्रियकार्य स्कूल जाना लगता था जिसके चलते बार-बार घर से भागते रहे। ज्यादातर नानी के घर और यदाकदा लक्ष्यहीन भटकन के रूप में। पिता के कठोर शारीरिक दंड के चलते रास्ते पर आए तो पिता ही साधु का चोला ग्रहण करके पलायन कर गए। इसके चलते 13-14 वर्ष की उम्र में ही घर के मुखिया बनने तथा आर्थिक संकट व जान की असुरक्षा से दो-चार होना पड़ा। आजीविका जुटाने के लिए जियावन दर्जी से सिलाई सीखी, बीड़ी बनाई, कैलेंडर बेचा, बकरियां पालीं, ट्यूशन पढ़ाया, मजमा लगाया और नरेश डाकू के गिरोह में शामिल होते-होते बचे। पिता को घर वापस लाने के प्रयास में गुरूबाबा की कुटी पर आते-जाते खंजड़ी बजाना साीखा जो आज भी उनका सबसे प्रिय वाद्ययंत्र है। कुछ समय तक अध्यापन और रेलवे की नौकरी करने के बाद उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग से चयनित होकर 1977 में बिक्री-कर अधिकारी के रूप में स्थायी जीविकोपार्जन से लगे तथा मार्च 2010 में एडिशनल कमिश्नर के पद से अवकाश प्राप्त। साहित्य से परिचय स्कूल जाने से भी पहले पिता के मुख से सुने गए रामचरित मानस के अंश, कवितावली, विनयपत्रिका तथा कबीर के पदों के रूप में हुआ। बचपन में देखे गए नाटक व नौटंकी के संवाद और उसकी कथा के रोमांच ने कहानी विधा की ओर आकृष्ट किया। पहली कहानी बीकानेर से प्रकाशित 'वातायान’ में 'पानफूल’ नाम से 1968 में प्रकाशित। 1976 में दिनमान द्वारा आयोजित, अपढ़ संवाद प्रतिगिता में प्रथम पुरस्कार पाने से पुनः लेखन की ओर झुकाव। जनवरी 80 में धर्मयुग में 'कसाईबाड़ा’ प्रकाशित। 'केशर-कस्तूरी’ नाम से 1991 में राधाकृष्ण प्रकाशन दिल्ली से कहानी-संग्रह तथा 1995 व 2004 में राजकमल प्रकाशन से क्रमशः 'त्रिशूल’ व 'तर्पण’ उपन्यास प्रकाशित। 2008 में प्रकाशित तीसरा उपन्यास 'आखिरी छलांग' विशेष रूप से चर्चित। कहानियां बांगला, पंजाबी, उर्दू, उड़िया, कन्नड़ आदि में, अनूदित। उपन्यास 'त्रिशूल’ उर्दू तथा पंजाबी में 'तर्पण’ जर्मन में तथा 'आखिरी छलांग’ कन्नड़ में अनूदित। 'भरतनाट्यम’, 'कसाईबाड़ा’ व 'तिरियाचरित्तर’ पर फिल्में बनी। 'तर्पण’ पर फिल्म निर्माण प्रस्वातित। 'कसाईबाड़ा’, 'भरतनाट्यम’, 'तिरियाचरित्तर’ और 'तर्पण’ के हजारों मंचन। 'तिरियाचरित्तर’ कहानी को साहित्यिक पत्रिका 'हंस’ द्वारा 1988 मे प्रथम पुरस्कार नवाजा गया। वर्ष 2002 में आनंद सागर स्मृति 'कथाक्रम’ सम्मान से, वर्ष 2010 में अवध भारती सम्मान से, वर्ष 2011 में सृजन सम्मान से तथा वर्ष 2012 में लमही सम्मान से सम्मानित। .................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................साहित्यिक पत्रिका 'मंच’ ने अपना जनवरी-मार्च 2011 का अंक तथा लमही पत्रिका ने अपना अक्टूबर-दिसम्बर 2012 अंक शिवमूर्ति के रचना कर्म पर विशेषांक के रूप में प्रकाशित किया। साहित्यिक पत्रिका 'नया ज्ञानोदय’ ने अपने जनवरी 2008 के अंक का एक खण्ड तथा साहित्यिक प्रतिका समावर्तन ने अपने सितम्बर 2013 अंक का एक खण्ड शिवमूर्ति के रचनाकर्म पर केन्द्रित किया।
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