जैक लंडन के देश में
यात्रा वृतांत
शिवमूर्ति
भ्रमण का नशा और वह भी दुर्गम स्थलों का, मेरे साथ बचपन से रहा है। जब बच्चा था और गाँव की सीमा ही मेरे लिए दुनिया की सीमा थी तो अपने घर से पश्चिम सड़क पार करके जंगल में चला जाता था। वहाँ एक विशाल और गहरा तालाब था। नाम था वीरनतारा। वीरनतारा के तीन तरफ झाड़ियों, लताओं और विशाल वृक्षों का घटाटोप था। उनके बीच रास्ता खोज पाना मुश्किल। अंदर घुसकर झाड़ी और पानी के संधि स्थल पर बैठ जाइये और दुनिया जहान की आँखों से ओझल हो जाने का आनंद लीजिये।
और बड़ा हुआ तो जिस-तिस के साथ बाजार, मेला, रिश्तेदारी, भोज-भात, जहाँ जाने का मौका मिला, जाता रहा। जिस साल दर्जा पांच पास किया, उस साल पड़ोस के साधू सुग्रीम दास के साथ पैदल मांगते-खाते अस्सी किलोमीटर दूर संगम नहाने चला गया। और बड़ा हुआ, रेलवे से परिचित हुआ तो कितने ही वर्ष उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम ट्रेन से बिना टिकट भ्रमण करता रहा। बच्चे हुए, नौकरी मिली तो उनको घुमाया, हिमालय और नेपाल के पहाड़, पूर्वोत्तर राज्य, दक्षिण, पश्चिम।
अंडमान निकोबार के बिंदु की तरह दूर तक फैले टापू, जैसे तालाब में छिछली मारने पर उसके गंतव्य बनते हैं और लद्दाख के बारे में पढ़ी गयी जानकारी बहुत सम्मोहित करते थे। वह भी देख आये। तब विदेश जाने का नंबर आया।
विदेश के दो लेखक मुझे सबसे ज्यादा सम्मोहित करते हैं। शेक्सपियर और जैक लंडन। पिछले वर्ष शेक्सपियर की धरती पर पहुंचने का अवसर मिला था। इस वर्ष अमेरिका के पर्यटन की शुरुआत जैक लंडन की कर्मस्थली सान फ्रांसिस्को से करने की योजना बनी।
बाप रे, दुबई से सान फ्रांसिस्को की साढ़े पन्द्रह घंटे की हवाई यात्रा। खाओ पिओ, सो जाओ। फिर खाओ पिओ सो जाओ। मेरे जैसा आदमी जिसको जीवन में बहुत कम हवाई यात्रा का संयोग मिला हो, निश्चय ही सोने को समय व्यर्थ गंवाना मानेगा। इस समय में आस-पास के दृश्य देखा जाय। लेकिन दृश्य भी क्या। तीस-पैंतीस हजार फीट की ऊंचाई पर रूई के सफेद गोले जैसे बादलों के अलावा। वह थोड़ी देर बाद रात के अंधेरे में डूब गये। बस और ट्रेन में तो चलते समय शरीर थोड़ा -बहुत हिलता भी है लेकिन प्लेन में। लगता है जैसे कमरे में बैठे हों कुर्सी पर। इकोनामी क्लास की सीट। जेट लागिंग क्या चीज है यह पहली बार समझ में आया।
इसकी तुलना में दिल्ली से दुबई तक सबेरे-सबेरे की गयी पांच घंटे की यात्रा तो जैसे पलक झपकते हो गयी थी।
दो दिसंबर 12 का सारा दिन संजीव जी के घर पर मित्रों से मिलने-जुलने, फोना-फोनी में बीत गया। शाम को 9 बजे विवेक मिश्र जी के साथ सुशील सिद्धार्थ जी आ गये। फिर पंकज शर्मा जी पाखी का नया अंक लेकर आ गये। खाते-पीते ग्यारह बज गये।
पंकज शर्मा हम लोगों के साथ हवाई अड्डे तक आ गये, यह बड़ा अच्छा हुआ। चेक इन शुरू होने और हम लोगों के भीतर प्रवेश करने तक हम लोग हिंदी से लेकर दुनिया जहान तक के साहित्य पर बात करते रहे। पंकज अच्छे आदमी हैं। सुसंस्कृत, मिट्ठभाषी और व्यावहारिक। पढ़ाई-लिखाई में तो अव्वल हैं ही।
इमिरेट्स एयरलाइन की एयरहोस्टेस के सिर पर घड़ा रखने की गेंड़ुली जैसी लाल पगड़ी ने मरजीना की याद दिला दी। चोरों के सरदार को चाकू मारने के पहले नृत्य के दौरान पहनी गयी पगड़ी। पर सुंदरता में तो भाई जार्डन एयरवेज की होस्टेसेज का कोई मुकाबला नहीं। पिछले बरस देखी गयीं उनकी सूरतें आँखों में बसी हुई हैं।
कस्टम क्लियरेंस पर लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे जैसी ही भीड़। हम हिंदुस्तानी इधर से उधर लाइन तोड़ने और आगे निकल जाने के जुगाड़ में लगे रहे। इतनी पुरानी और प्रिय आदत इतनी जल्दी परायी धरती पर उतरते ही कैसे छोड़ दें? अपेक्षाकृत जल्दी ही उन लोगों ने सबको निपटा दिया।
एयरपोर्ट के लाउंज में बैठकर साथी यात्रियों के निपटने का इंतजार करने के बाद बाहर आकर बस में बैठे तो पता चला कि पत्नी तो अपना पर्स लाउंज में ही भूल आयी हंैं। बाप रे। काटो तो खून नहीं। पासपोर्ट वगैरह कई जरूरी कागजात उसी में थे। आधे घंटे के करीब हो गये थे। अब कहाँ मिलेगा। लेकिन मैं गया। पर्स बेचारा कुर्सी पर अकेला बैठा हमारा इंतजार कर रहा था। आस-पास की भीड़ ने उसकी तरफ आँख उठाकर देखना भी गंवारा नहीं किया था। इंडियन्स तो बहुत दिख रहे थे। क्या हो गया इन लोगों को इस धरती पर उतरते ही? अपनी मूल प्रवृति ही भूल गये? जान में जान आयी।
होटल बेस्ट-वेस्टर्न का रूम काफी बड़ा और सजा-बजा था। बेडशीट और रजाई-तकिया की सफेदी के क्या कहने। बस, काफी कोशिश करने के बाद भी हम पति-पत्नी को उस मशीन से काफी बनाना नहीं आया। उसकी कमी देर तक गरम पानी से नहाकर पूरी की गयी। फिर छोटे से फ्रिज में धरी खाने-पीने की चीजों को यथासंभव बारी-बारी से निपटाया गया।
जो सिम तीन हजार रुपये सिक्यूरिटी के जमा करके लखनऊ से लेकर चले थे, वह एक्टिवेट ही नहीं हो पाया। यहाँ के दोनों सर्विस कनेक्शन उसे स्वीकार ही नहीं कर रहे हैं। टूर मैनेजर के फोन से अपनी कुशल-क्षेम का एसएमएस घर पर दिया। टूर मैनेजर का नाम है शावक। 60 के हुए, अभी शावक ही हैं। दो दिन में ही महसूस हुआ कि फोन साथ न रहने का भी अपना आनंद है। मजबूरी में ही सही इस आनंद का आनंद लेते रहे। अच्छा शहर है। ज्यादातर मकान बस दोमंजिले। सड़कें चौड़ी और साफ। आबादी बहुत कम और हरियाली बहुत ज्यादा। रात में खाना खाने के बाद देर तक घूमते रहे। सान फ्रांसिस्को और भारत के समय में साढ़े ग्यारह घंटे का अंतर है। जब भारत में लोग आफिस जाने के लिए निकलने को हुए तो हम सो गये।
नाश्ता दिव्य था। इतनी चीजें, क्या खायें, क्या छोड़ें? नाश्ते के बाद निकले खाड़ी देखने। सान फ्रांसिस्को की खाड़ी मशहूर है। जैक लंडन ने 13 साल की उम्र में एक छोटी सी जहाज छीनकर डकैती (पाइरेसी) करना शुरू कर दिया था। वाह, जैक लंडन का घर भी देखना है। ओकलैंड यहीं कहीं होना चाहिए।
पानी रात भर बरसा था, तेज हवा चल रही थी। सर्दी बढ़ गयी थी। बाप रे। इतनी ठंड के बारे में तो चेताया नहीं गया था। आसमान में काले-भूरे बादल दौड़ रहे थे। कभी-कभी हल्की झीसी भी पड़ने लगती थी। सबसे पहले भागकर स्वेटर, पुल ओवर वगैरह खरीदा गया। टोपी खरीदी गयी।
रेस्टोरेंट में बड़े-बड़े केकड़े भुन रहे थे। सेल्समैन उनकी बाहें फैलाकर ग्राहकों को आकृष्ट कर रहे थे। एक-एक बाह सवा-सवा फीट की। वजन होगा 4-5 किलो तक। देखकर ही डर लग रहा था।
टिकट लेकर क्रूज में बैठे। यह क्रूज गोल्डेन गेट ब्रिज तक घुमाने ले जाता है। सिंगल स्पान सस्पेंशन पर बना यह ब्रिज सान फ्रांसिस्को की पहचान है। पास में ही एक अन्य ब्रिज है-बे ब्रिज। एक तीसरा बन रहा है। 2030 तक बनकर तैयार होगा और दो द्वीपों को मिलायेगा। रास्ते में एक छोटा सा आईलैंड ध्यान आकर्षित करता है। इसके ऊपर जेल बनी हुई है, जिसमें पहले स्पेन के कैदी रहा करते थे। इनमें मूल अमेरिकन, जिन्हें रेड इंडियन कहते हैं, ज्यादा थे। क्या जमकर शिकार किया गया यहाँ रेड इंडियन्स का। अब नाम मात्र को ही बचे हैं। इस जेल को अब म्यूजियम बना दिया गया है।
लंच के बाद हम शहर देखने निकले। हमारी गाइड थी तीस बत्तीस वर्ष की दुबली-पतली लंबी हंसमुख लड़की एनी-डा। उसने बताया कि इंडियन्स के लिए मैं अनीता हूं, अंग्रेजी-दाँ के लिए एनी-डा। स्पेनिश लोगों के लिए कुछ और बताया। बताया कि उसका भाई भी गाइड है। नाम है सैम, भारतीयों के लिए श्याम, बंसी बजाने वाला। उसने हिंदी, पंजाबी, कन्नड़, अंग्रेजी और स्पेनिश में कई गाने सुनाकर सबको मोह लिया। बताया कि मेरे पिता बंगलूर से थे और माँ कैलीफोर्निया की। उसका पति अल्जीरियन है। कई धुनें सुनाकर बताया कि किन-किन हिंदी फिल्मों में स्पेनिश और अन्य यूरोपीय भाषाओं की धुनें चुरायी गयी हैं। बंगलूर से आयी दो कन्नड़ बहनों को उसने कन्नड़ का एक गीत सुनाकर प्रसन्न कर दिया। एक पेड़ दिखाते हुए उसने बताया कि इसका नाम है रेड वुड ट्री। लंबाई होती है 112 मीटर तक और उम्र होती है दो हजार साल। मकानों को दिखाते हुए बताया कि यहाँ 20 फीट चौड़ाई और 40 फीट लंबाई में बने एक मकान की कीमत है तीन से चार मिलियन डालर। और ऐसा नहीं कि आप ने खरीद लिया तो लगे मंजिल पर मंजिल बनाने। एकदम नहीं। जो बना है बस वही रहेगा। परिवर्तन नहीं कर सकते। मिलिटरी एरिया में ले जाकर उसने इन्सपिरेशन प्वाइंट या लव प्वाइंट दिखाया। साइकिल चालकों की ओर ध्यान आकर्षित होने पर उसने बताया कि इस शहर में 50 हजार बाइकर्स अर्थात साइकिल चलाने वाले हैं। हर फ्राईडे को बाइकर्स की मीटिंग होती है। सेहत बचाकर रखना है तो साइकिल चलाना ही होगा। साइकिल का नाम आते ही चाइना का नाम आ गया। उसने बताया कि यहाँ की आबादी के 30 प्रतिशत चाइनीज हैं। 15 फीसदी स्पेनिश, 15 फीसदी इटैलियन, पांच फीसदी अन्य एशियाई। बताया कि पास के आईलैंड की मेयर जीन क्वाल चाइनीज लड़की है। यहाँ की प्रथम भाषा अंग्रेजी और द्वितीय भाषा चाइनीज है।
जैक लंडन के बारे में पूछने पर उसे आश्चर्य और खुशी दोनों हुई। बताया कि वह सामने जो बस्ती है, वही है ओकलैंड। वही है जैक लंडन का घर और स्मारक। उसने बताया कि मैं भी ओकलैंड में ही रहती हूं। कहा कि जबसे मैं गाइड का काम कर रही हूं, आप पहले एशियाई और पांचवें विश्व पर्यटक हैं, जिन्होंने जैक लंडन के बारे में पूछा है। ड्यूटी के बाद मैं आप को वहाँ ले जा सकती हूं।
जैक लंडन स्क्वेयर जाकर मन तृप्त हो गया। करीब एक दशक पहले इस स्क्वेयर पर चीमा मानुमेंट की स्थापना हुई है। काँसे की 18 फीट ऊंची आड़े उड़ते ईगल के धुले हुए पंख की पृष्ठभूमि में नारी मूर्ति। अद्भुत, अद्भुत। कितना संभालकर, संजोकर रखा है इस देश के लोगों ने अपने प्रिय लेखक की यादगार को। मन करता था इस मनोरम स्थल पर बैठे ही रहें।
यात्रा वृतांत
शिवमूर्ति
भ्रमण का नशा और वह भी दुर्गम स्थलों का, मेरे साथ बचपन से रहा है। जब बच्चा था और गाँव की सीमा ही मेरे लिए दुनिया की सीमा थी तो अपने घर से पश्चिम सड़क पार करके जंगल में चला जाता था। वहाँ एक विशाल और गहरा तालाब था। नाम था वीरनतारा। वीरनतारा के तीन तरफ झाड़ियों, लताओं और विशाल वृक्षों का घटाटोप था। उनके बीच रास्ता खोज पाना मुश्किल। अंदर घुसकर झाड़ी और पानी के संधि स्थल पर बैठ जाइये और दुनिया जहान की आँखों से ओझल हो जाने का आनंद लीजिये।
और बड़ा हुआ तो जिस-तिस के साथ बाजार, मेला, रिश्तेदारी, भोज-भात, जहाँ जाने का मौका मिला, जाता रहा। जिस साल दर्जा पांच पास किया, उस साल पड़ोस के साधू सुग्रीम दास के साथ पैदल मांगते-खाते अस्सी किलोमीटर दूर संगम नहाने चला गया। और बड़ा हुआ, रेलवे से परिचित हुआ तो कितने ही वर्ष उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम ट्रेन से बिना टिकट भ्रमण करता रहा। बच्चे हुए, नौकरी मिली तो उनको घुमाया, हिमालय और नेपाल के पहाड़, पूर्वोत्तर राज्य, दक्षिण, पश्चिम।
अंडमान निकोबार के बिंदु की तरह दूर तक फैले टापू, जैसे तालाब में छिछली मारने पर उसके गंतव्य बनते हैं और लद्दाख के बारे में पढ़ी गयी जानकारी बहुत सम्मोहित करते थे। वह भी देख आये। तब विदेश जाने का नंबर आया।
विदेश के दो लेखक मुझे सबसे ज्यादा सम्मोहित करते हैं। शेक्सपियर और जैक लंडन। पिछले वर्ष शेक्सपियर की धरती पर पहुंचने का अवसर मिला था। इस वर्ष अमेरिका के पर्यटन की शुरुआत जैक लंडन की कर्मस्थली सान फ्रांसिस्को से करने की योजना बनी।
बाप रे, दुबई से सान फ्रांसिस्को की साढ़े पन्द्रह घंटे की हवाई यात्रा। खाओ पिओ, सो जाओ। फिर खाओ पिओ सो जाओ। मेरे जैसा आदमी जिसको जीवन में बहुत कम हवाई यात्रा का संयोग मिला हो, निश्चय ही सोने को समय व्यर्थ गंवाना मानेगा। इस समय में आस-पास के दृश्य देखा जाय। लेकिन दृश्य भी क्या। तीस-पैंतीस हजार फीट की ऊंचाई पर रूई के सफेद गोले जैसे बादलों के अलावा। वह थोड़ी देर बाद रात के अंधेरे में डूब गये। बस और ट्रेन में तो चलते समय शरीर थोड़ा -बहुत हिलता भी है लेकिन प्लेन में। लगता है जैसे कमरे में बैठे हों कुर्सी पर। इकोनामी क्लास की सीट। जेट लागिंग क्या चीज है यह पहली बार समझ में आया।
इसकी तुलना में दिल्ली से दुबई तक सबेरे-सबेरे की गयी पांच घंटे की यात्रा तो जैसे पलक झपकते हो गयी थी।
दो दिसंबर 12 का सारा दिन संजीव जी के घर पर मित्रों से मिलने-जुलने, फोना-फोनी में बीत गया। शाम को 9 बजे विवेक मिश्र जी के साथ सुशील सिद्धार्थ जी आ गये। फिर पंकज शर्मा जी पाखी का नया अंक लेकर आ गये। खाते-पीते ग्यारह बज गये।
पंकज शर्मा हम लोगों के साथ हवाई अड्डे तक आ गये, यह बड़ा अच्छा हुआ। चेक इन शुरू होने और हम लोगों के भीतर प्रवेश करने तक हम लोग हिंदी से लेकर दुनिया जहान तक के साहित्य पर बात करते रहे। पंकज अच्छे आदमी हैं। सुसंस्कृत, मिट्ठभाषी और व्यावहारिक। पढ़ाई-लिखाई में तो अव्वल हैं ही।
इमिरेट्स एयरलाइन की एयरहोस्टेस के सिर पर घड़ा रखने की गेंड़ुली जैसी लाल पगड़ी ने मरजीना की याद दिला दी। चोरों के सरदार को चाकू मारने के पहले नृत्य के दौरान पहनी गयी पगड़ी। पर सुंदरता में तो भाई जार्डन एयरवेज की होस्टेसेज का कोई मुकाबला नहीं। पिछले बरस देखी गयीं उनकी सूरतें आँखों में बसी हुई हैं।
कस्टम क्लियरेंस पर लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे जैसी ही भीड़। हम हिंदुस्तानी इधर से उधर लाइन तोड़ने और आगे निकल जाने के जुगाड़ में लगे रहे। इतनी पुरानी और प्रिय आदत इतनी जल्दी परायी धरती पर उतरते ही कैसे छोड़ दें? अपेक्षाकृत जल्दी ही उन लोगों ने सबको निपटा दिया।
एयरपोर्ट के लाउंज में बैठकर साथी यात्रियों के निपटने का इंतजार करने के बाद बाहर आकर बस में बैठे तो पता चला कि पत्नी तो अपना पर्स लाउंज में ही भूल आयी हंैं। बाप रे। काटो तो खून नहीं। पासपोर्ट वगैरह कई जरूरी कागजात उसी में थे। आधे घंटे के करीब हो गये थे। अब कहाँ मिलेगा। लेकिन मैं गया। पर्स बेचारा कुर्सी पर अकेला बैठा हमारा इंतजार कर रहा था। आस-पास की भीड़ ने उसकी तरफ आँख उठाकर देखना भी गंवारा नहीं किया था। इंडियन्स तो बहुत दिख रहे थे। क्या हो गया इन लोगों को इस धरती पर उतरते ही? अपनी मूल प्रवृति ही भूल गये? जान में जान आयी।
होटल बेस्ट-वेस्टर्न का रूम काफी बड़ा और सजा-बजा था। बेडशीट और रजाई-तकिया की सफेदी के क्या कहने। बस, काफी कोशिश करने के बाद भी हम पति-पत्नी को उस मशीन से काफी बनाना नहीं आया। उसकी कमी देर तक गरम पानी से नहाकर पूरी की गयी। फिर छोटे से फ्रिज में धरी खाने-पीने की चीजों को यथासंभव बारी-बारी से निपटाया गया।
जो सिम तीन हजार रुपये सिक्यूरिटी के जमा करके लखनऊ से लेकर चले थे, वह एक्टिवेट ही नहीं हो पाया। यहाँ के दोनों सर्विस कनेक्शन उसे स्वीकार ही नहीं कर रहे हैं। टूर मैनेजर के फोन से अपनी कुशल-क्षेम का एसएमएस घर पर दिया। टूर मैनेजर का नाम है शावक। 60 के हुए, अभी शावक ही हैं। दो दिन में ही महसूस हुआ कि फोन साथ न रहने का भी अपना आनंद है। मजबूरी में ही सही इस आनंद का आनंद लेते रहे। अच्छा शहर है। ज्यादातर मकान बस दोमंजिले। सड़कें चौड़ी और साफ। आबादी बहुत कम और हरियाली बहुत ज्यादा। रात में खाना खाने के बाद देर तक घूमते रहे। सान फ्रांसिस्को और भारत के समय में साढ़े ग्यारह घंटे का अंतर है। जब भारत में लोग आफिस जाने के लिए निकलने को हुए तो हम सो गये।
नाश्ता दिव्य था। इतनी चीजें, क्या खायें, क्या छोड़ें? नाश्ते के बाद निकले खाड़ी देखने। सान फ्रांसिस्को की खाड़ी मशहूर है। जैक लंडन ने 13 साल की उम्र में एक छोटी सी जहाज छीनकर डकैती (पाइरेसी) करना शुरू कर दिया था। वाह, जैक लंडन का घर भी देखना है। ओकलैंड यहीं कहीं होना चाहिए।
पानी रात भर बरसा था, तेज हवा चल रही थी। सर्दी बढ़ गयी थी। बाप रे। इतनी ठंड के बारे में तो चेताया नहीं गया था। आसमान में काले-भूरे बादल दौड़ रहे थे। कभी-कभी हल्की झीसी भी पड़ने लगती थी। सबसे पहले भागकर स्वेटर, पुल ओवर वगैरह खरीदा गया। टोपी खरीदी गयी।
रेस्टोरेंट में बड़े-बड़े केकड़े भुन रहे थे। सेल्समैन उनकी बाहें फैलाकर ग्राहकों को आकृष्ट कर रहे थे। एक-एक बाह सवा-सवा फीट की। वजन होगा 4-5 किलो तक। देखकर ही डर लग रहा था।
टिकट लेकर क्रूज में बैठे। यह क्रूज गोल्डेन गेट ब्रिज तक घुमाने ले जाता है। सिंगल स्पान सस्पेंशन पर बना यह ब्रिज सान फ्रांसिस्को की पहचान है। पास में ही एक अन्य ब्रिज है-बे ब्रिज। एक तीसरा बन रहा है। 2030 तक बनकर तैयार होगा और दो द्वीपों को मिलायेगा। रास्ते में एक छोटा सा आईलैंड ध्यान आकर्षित करता है। इसके ऊपर जेल बनी हुई है, जिसमें पहले स्पेन के कैदी रहा करते थे। इनमें मूल अमेरिकन, जिन्हें रेड इंडियन कहते हैं, ज्यादा थे। क्या जमकर शिकार किया गया यहाँ रेड इंडियन्स का। अब नाम मात्र को ही बचे हैं। इस जेल को अब म्यूजियम बना दिया गया है।
लंच के बाद हम शहर देखने निकले। हमारी गाइड थी तीस बत्तीस वर्ष की दुबली-पतली लंबी हंसमुख लड़की एनी-डा। उसने बताया कि इंडियन्स के लिए मैं अनीता हूं, अंग्रेजी-दाँ के लिए एनी-डा। स्पेनिश लोगों के लिए कुछ और बताया। बताया कि उसका भाई भी गाइड है। नाम है सैम, भारतीयों के लिए श्याम, बंसी बजाने वाला। उसने हिंदी, पंजाबी, कन्नड़, अंग्रेजी और स्पेनिश में कई गाने सुनाकर सबको मोह लिया। बताया कि मेरे पिता बंगलूर से थे और माँ कैलीफोर्निया की। उसका पति अल्जीरियन है। कई धुनें सुनाकर बताया कि किन-किन हिंदी फिल्मों में स्पेनिश और अन्य यूरोपीय भाषाओं की धुनें चुरायी गयी हैं। बंगलूर से आयी दो कन्नड़ बहनों को उसने कन्नड़ का एक गीत सुनाकर प्रसन्न कर दिया। एक पेड़ दिखाते हुए उसने बताया कि इसका नाम है रेड वुड ट्री। लंबाई होती है 112 मीटर तक और उम्र होती है दो हजार साल। मकानों को दिखाते हुए बताया कि यहाँ 20 फीट चौड़ाई और 40 फीट लंबाई में बने एक मकान की कीमत है तीन से चार मिलियन डालर। और ऐसा नहीं कि आप ने खरीद लिया तो लगे मंजिल पर मंजिल बनाने। एकदम नहीं। जो बना है बस वही रहेगा। परिवर्तन नहीं कर सकते। मिलिटरी एरिया में ले जाकर उसने इन्सपिरेशन प्वाइंट या लव प्वाइंट दिखाया। साइकिल चालकों की ओर ध्यान आकर्षित होने पर उसने बताया कि इस शहर में 50 हजार बाइकर्स अर्थात साइकिल चलाने वाले हैं। हर फ्राईडे को बाइकर्स की मीटिंग होती है। सेहत बचाकर रखना है तो साइकिल चलाना ही होगा। साइकिल का नाम आते ही चाइना का नाम आ गया। उसने बताया कि यहाँ की आबादी के 30 प्रतिशत चाइनीज हैं। 15 फीसदी स्पेनिश, 15 फीसदी इटैलियन, पांच फीसदी अन्य एशियाई। बताया कि पास के आईलैंड की मेयर जीन क्वाल चाइनीज लड़की है। यहाँ की प्रथम भाषा अंग्रेजी और द्वितीय भाषा चाइनीज है।
जैक लंडन के बारे में पूछने पर उसे आश्चर्य और खुशी दोनों हुई। बताया कि वह सामने जो बस्ती है, वही है ओकलैंड। वही है जैक लंडन का घर और स्मारक। उसने बताया कि मैं भी ओकलैंड में ही रहती हूं। कहा कि जबसे मैं गाइड का काम कर रही हूं, आप पहले एशियाई और पांचवें विश्व पर्यटक हैं, जिन्होंने जैक लंडन के बारे में पूछा है। ड्यूटी के बाद मैं आप को वहाँ ले जा सकती हूं।
जैक लंडन स्क्वेयर जाकर मन तृप्त हो गया। करीब एक दशक पहले इस स्क्वेयर पर चीमा मानुमेंट की स्थापना हुई है। काँसे की 18 फीट ऊंची आड़े उड़ते ईगल के धुले हुए पंख की पृष्ठभूमि में नारी मूर्ति। अद्भुत, अद्भुत। कितना संभालकर, संजोकर रखा है इस देश के लोगों ने अपने प्रिय लेखक की यादगार को। मन करता था इस मनोरम स्थल पर बैठे ही रहें।
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