The perspective of the plot of the novel
“aakhiri chhalang” (naya gayanodaya’ January 2008) is vast, centered on the
peasant life. This novel depicts the present situation of our villages. The
perspective is not only national, it is also international.
The
fictional word of Shivmurti
By
renowned literary critic Ravi Bhushan
Manch
-1 (Jan-March 2011)
Page 49
'आखिरी छलांग' (नया ज्ञानोदय जनवरी 2008) उपन्यास के कथानक का परिप्रेक्ष्य बड़ा है। किसान-जीवन पर केंद्रित यह उपन्यास गांवों की वर्तमान वास्तविक स्थिति व्यक्त करता है। इसका परिप्रेक्ष्य राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय भी है।
शिवमूर्ति का कथासंसार
द्वारा प्रसिद्ध आलोचक रविभूषण
मंच-1 ( जनवरी-मार्च 2011)
पृष्ठ 49
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From this viewpoint – Sanjeev and Shivmurti are
the sole fiction writers in Hindi whose short stories and novels abound with songs
and folksongs. Both are also writer friends and their this specification makes
them distinguished among the contemporary Hindi fiction writers.
The fictional word of Shivmurti
By
renowned literary critic Ravi Bhushan
Manch
-1 (Jan-March 2011)
Page 50
इस दृष्टि से संजीव और शिवमूर्ति हिंदी के अकेले कथाकर हैं, जिनकी कहानियों और उपन्यासों में गीत, लोकगीत भरे पड़े हैं। दोनों कथाकार मित्र भी हैं और उनकी यह विशेषता समकालीन हिंदी कथाकारों में उन्हें विशिष्ट बनाती है।
शिवमूर्ति का कथासंसार
द्वारा प्रसिद्ध आलोचक रविभूषण
मंच-1 ( जनवरी-मार्च 2011)
पृष्ठ 50
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There are few among contemporary fiction
writers in Hindi who understand animal psychology. Animals play a major role in
the household of peasants. Without them peasants life is in complete. They name
their cattle. The two oxen of the “Pahalwan” are named ‘Laliya’ and
‘chitkabra’. Calf, Cow and Buffalo are also in his household.
For pregnancy cows are brought to
the defiant bulls. cows, buffaloes, dogs and cats inhabit the colony mentioned
in the short story ‘Keser Kasturi’. In ‘Tiriyacharritter’ the she-goat Nimri
yells while waving her tale. There are jackals in ‘Kasaibara’ and Tigers and
Snakes in ‘Bharatnatyam’. Shivmurti has not only the memory of the oxen of his
household, he has also the memory that the ox Makra walked on right side in
plowing the field and Laliya on the left.
The
fictional word of Shivmurti
By
renowned literary critic Ravi Bhushan
Manch
-1 (Jan-March 2011)
Page 51-52
समकालीन हिन्दी कथाकारों में पशु-मनोविज्ञान समझने वाले कथाकार कम हैं। किसानों के घर-परिवार में पशुओं की बड़ी भूमिका होती है। उनके बिना किसानों का जीवन अधूरा है। वे जानवरों का नामकरण करते हैं। पहलवान के दो बैलों के नाम ललिया, चितकबरा है। वहां बछड़ा, गाय, भैंस, भी हैं। गर्भाधान के लिए गाएं 'काले मरकहवा सांड़' के पास ले जाई जाती हैं। पहलवान की पत्नी कुत्ते को 'कौरा' देती है। 'केशर-कस्तूरी' कहानी में कालोनी में गाय, भैंस, कुत्ते और बिल्ली हैं। 'तिरिया चरित्तर' में निमरी बकरी पूंछ हिलाकर चिल्लाती है। 'कसाईबाड़ा' में गीदड़ और 'भरतनाट्यम' में बाघ, सांप हैं। शिवमूर्ति को अपने घर के बैलों की याद-भर नहीं है, यह भी याद है कि मकरा बैल (हल में) दाएं चलता था और ललिया बैल बाएं चलता था।
शिवमूर्ति का कथासंसार
द्वारा प्रसिद्ध आलोचक रविभूषण
मंच-1 ( जनवरी-मार्च 2011)
पृष्ठ-51-52
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Everything is there in ‘Aakhiri chhalang’, the
practical maturity of the villagers, there respect for government service,
there time honored affection, envy. Here the village is present in its vivacity
and reality. Shivmurti looks both inword and outword. On account of which his
writing have become trustworthy he not only apprises us with the varieties of
paddies and mustards but also with the name of the sub casts of Brahmins.
The fictional word of Shivmurti
By
renowned literary critic Ravi Bhushan
Manch
-1 (Jan-March 2011)
Page -52
गांव के लोगों की व्यवहार-कुशलता, नौकरी के प्रति सम्मान, एक दूसरे के प्रति समयानुसार स्नेह-ईष्र्या-सब 'आखिरी छलांग' में है। यहां गांव अपनी जीवंतता और वास्ततिकता में मौजूद है। शिवमूर्ति बाहर और भीतर दोनों देखते हैं, जिससे उनकी रचनाएं विश्वसनीय बनती हैं। वे सरसों और धान की किस्मों से ही नहीं, जाति के भीतर की श्रेणियों से भी परिचित कराते हैं। सरसों की एक किस्म वरूणा और धान की एक किस्म संकर के साथ ब्राह्मणों की उपजाति पर भी उनका ध्यान है।
शिवमूर्ति का कथासंसार
द्वारा प्रसिद्ध आलोचक रविभूषण
मंच-1 ( जनवरी-मार्च 2011)
पृष्ठ-52
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There are the most authentic pictures of rural
life in Shivmurti’s writing. This creative word spread within a span of thirty
years in a thorough narrative of rural folk. His characters are struggle some,
but their struggles are quite personal. His writing echo with the burning
issues of our time. Shivmurti has narrated the story of his time and society, a
trustworthy narrator. He is a significant fiction writer.
The fictional word of Shivmurti
By
renowned literary critic Ravi Bhushan
Manch
-1 (Jan-March 2011)
Page -55
ग्रामीण जीवन का प्रमाणिक चित्र है शिवमूर्ति के यहां। तीस वर्ष का यह रचना-संसार ग्रामीण समाज की एक मुकम्मल दास्तान है। उनके पात्र संघर्षशील हैं। यह संघर्ष उनका अकेला संघर्ष है। हमारे समय के प्रमुख प्रश्न उनकी रचनाओं में हैं। शिवमूर्ति ने अपने समय और समाज की कथा कही है। विश्वसनीय कथा। मात्र छह कहानियां और तीन उपन्यास तीस वर्ष में लिखकर वे महत्वूर्ण कथाकार बने हैं।
शिवमूर्ति का कथासंसार
द्वारा प्रसिद्ध आलोचक रविभूषण
मंच-1 ( जनवरी-मार्च 2011)
पृष्ठ-55
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Shivmurti is an accomplished fiction writer of
the conventional dialogue art. He wants to focus his writing on those arias of
literature where media cannot become a challenge. This is the aria of
sentiments, emotions & conversations. Shivmurti is capable to give went to
them.
The fictional word of Shivmurti
By
renowned literary critic Ravi Bhushan
Manch
-1 (Jan-March 2011)
Page -56
शिवमूर्ति संवाद-कला के सिद्ध कथाकार हैं। वे साहित्य को उन क्षेत्रों पर केंद्रित करने के आकांक्षी हैं, ''जहां मीडिया चुनौती नहीं बन सकता।'' यह ''मनोवेगों, अनुभूतियों व संवादों की अभिव्यक्ति का क्षेत्र है।" शिवमूर्ति इसकी अभिव्यक्ति मेें सक्षम हैं। निष्णात।
शिवमूर्ति का कथासंसार
द्वारा प्रसिद्ध आलोचक रविभूषण
मंच-1 ( जनवरी-मार्च 2011)
पृष्ठ-56
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Not a single character of Shivmurti pertain to
upper class. Often his characters come from lover class and characters
pertaining to middle class are from this lower class represent the large
humanity of India. Duty and labor are given honor in the writings of Shivmurti.
The depiction of the conditions and situations of village’s right from
‘Kasaibara’ to Aakhiri chhalang’ is no where appears dictated. The writer
stands firmly committed with the struggling characters.
The fictional word of Shivmurti
By
renowned literary critic Ravi Bhushan
Manch
-1 (Jan-March 2011)
Page -57
शिवमूर्ति का एक पात्र भी उच्चवर्गीय नहीं है। प्राय: निम्नवर्गीय पात्र हैं। मध्यवर्गीय पात्र हैं। मध्यवर्गीय पात्र कम हैं। ये निम्नवर्गीय पात्र भारत का व्यापक जनसमुदाय हैं। शिवमूर्ति की रचनाओं में कर्म और श्रम का सम्मान है। 'कसाईबाड़ा' से 'आखिरी छलांग' तक गांवों की जिन दशाओं-स्थितियों का वर्णन है, वह कहीं से आरोपित नहीं है। जो है सहज है, स्वाभाविक है। कथाकार संघर्षशील पात्रों के साथ है।
शिवमूर्ति का कथासंसार
द्वारा प्रसिद्ध आलोचक रविभूषण
मंच-1 ( जनवरी-मार्च 2011)
पृष्ठ-57
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Fiction writer Shivmurti is not attracted by
the imaginary world, rather as a fiction writer
he possesses a keen eye of observation and an art to reveal the inner
world of rural life. Though Shivmurti
displays enough patience in style, he is a discontent writer from within. In essence
his stories create significant norms to examine, evaluate and grasp the rural
life. Shivmurti has distinguished himself as an intimate and constructive creator
of rural India.
Undoubtedly he is a committed writer, but his
commitment is not emotional and blind. It is couscous and constructive. That is
why his short stories, on one hand, enable us to identify anti people,
oppressive forces and the predicament of rural social system, on the other,
they also acquaint us with the depravities of village community such as
jealousy, envy, rivalry.
The People of Kurang in the fiction of Shivmurti
By
renowned literary critic Kamal Nayan Panday
Manch
-1 (Jan-March 2011)
Page - 59
शिवमूर्ति मनोजन्य निराकल्पित जीवन के मुग्ध कथाकार नहीं हैं। वे गंवई जीवन की आंतरिकता के बोधक और बेधक कथाकार हैं। शैली में धीरशील किंतु अंत: में क्षुब्ध कथाकार हैं। इनकी कहानियां अपने सारतत्व में गंवई जीवन को मापने, परखने और समझने का सार्थक प्रतिमान रचती हैं। शिवमूर्ति के कथाकार के बारे में एक वाक्य में कहना हो तो कहा जा सकता है कि वे गंवई जीवन के आत्मीय व रचनात्मक आलोचक हैं। निश्चय ही वे गंवई जीवन के तरफदार कथाकार हैं। लेकिन उनकी तरफदारी भावुक व अंध तरफदारी नहीं है, सचेत, सजग और रचनात्मक तरफदारी है। इसीलिए उनकी कहानियां जहां एक ओर जन-विरोधी शोषण सत्ता, उत्पीड़क शक्तियों और विडंबनाग्रस्त समाज-व्यवस्था की बोधक पहचान कराती हैं, वहीं गंवई जन को उनकी मनोविकृतियां- ईष्या, द्वेष, जलन, रिगिर, परसंताप, डाह आदि से भी साक्षात्कार करती हैं।
कुरंग के लोकरंग वाले शिवमूर्ति
द्वारा प्रसिद्ध आलोचक कमल नयन पांडेय
मंच-1 (जनवरी-मार्च 2011)
पृष्ठ-59
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The
greatest quality of the stories of Shivmurti is that the ‘unsaid’ expresses
more significantly than what is ‘said’. Characters endowed with rich
expressions of life abound in his short stories.
The People of Kurang in the fiction of Shivmurti
By
renowned literary critic Kamal Nayan Panday
Manch
-1 (Jan-March 2011)
Page- 59
शिवमूर्ति की कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि कहानियां अपने 'कहे' से ज्यादा 'अनकहे'में बहुत कुछ महत्व की बातें करती चलती हैं- एहसास के स्तर पर। सृमद्ध जीवनानुभव वाले पात्रों से शिवमूर्ति की कहानियां अटी पड़ी हैं।
कुरंग के लोकरंग वाले शिवमूर्ति
द्वारा प्रसिद्ध आलोचक कमल नयन पांडेय
मंच-1 (जनवरी-मार्च 2011)
पृष्ठ-59
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As a
fiction writer Shivmurti is gifted with a keen eye of observation which enable
him to capture the energetic life of the rural folk and recreate it
effectively. Capturing the profound experiences of the active life effectively and recreating them in the same
effortless manner, is not an easy task, indeed a difficult task. To achieve it one
has to plunge deep into common man’s life. Such a caliber and zeal is characteristic
of Shivmurti as a fiction writer.
The
People of Kurang in the fiction of
Shivmurti
By
renowned literary critic Kamal Nayan Panday
Manch
-1 (Jan-March 2011)
Page no. 59
शिवमूर्ति के कथाकार में ऐसी पारखी नजर है कि वे इसी के बलबूते सक्रिय गंवई समाज से कथा-भरे जीवन को गहते हैं और उसे सहजतया रचते हैं। सहज जीवन की गहन अनुभूतियों को सहज रूप में पकडऩा और फिर उसे बिना किसी अतिरिक्त उपक्रम के सहजतया रचना आसान काम नहीें है- बेहद मुश्किल-भरा काम है। इसके लिए लोकजीवन के गहरे डूबना-उतराना पड़ता है- 'मोती उन्हें मिलते हैं/जो डूबने वाले हैं।' शिवमूर्ति इसी जीवट, इसी हुनर और इसी हौसले के कथाकार हैं।
कुरंग के लोकरंग वाले शिवमूर्ति
द्वारा प्रसिद्ध आलोचक कमल नयन पांडेय
मंच-1 (जनवरी-मार्च 2011)
पृष्ठ-59
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The editing
caliber of Shivmurti is wonderful. The idea which he conveys in one line remains
unconveyed by others even in a paragraph. He possesses a most vibrant and pithy
language and a compact style as well. I have a complaint for his meager
writing. If he wishes he can write wonderful but like others he too has made up
his mind to write after his retirement. During the tenure of his service he had
postponed writing everyday. This tendency continues even today.
Rajendra Yadav
By renowned story writer & editor Hans
monthly literary magazine
Manch -1
(Jan-March 2011)
Page no. 238
शिवमूर्ति में गजब का सम्पादन है एक-एक पंक्ति में वे जो बात कहते हैं वही दूसरे लोग एक पैराग्राफ में भी नहीं कह पाते। उनके पास बेहद सटीक और सार्थक भाषा और चुस्त शैली है इसलिए मुझे उनके कम लिखने से बहुत शिकायत है। वे चाहें तो अद्भुत लिख सकते हैं मगर औरों की तरह उन्होंने भी रिटायर हो जाने के बाद लिखने की मानसिकता बनाई है। उन्होंने नौकरी के दौरान हर रोज अपने लेखन को स्थगित किया है। यही आदत आज भी जारी है।
राजेन्द्र यादव
वरिष्ठ कथाकार तथा साहित्यिक पत्रिका हंस के सम्पादक
मंच-1 (जनवरी-मार्च 2011)
पृष्ठ - 238
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Rural poverty
and caste- bitterness must have been and unpleasant experience in Shivmurti’s
life owing to which his affiliation with class consciousness along with his
caste- consciousness seems natural and realistic as well. This is why in his
short stories caste consciousness always appears to proceed hand – in – hand with
class consciousness. But on account of his patience and craft he never quits
his conscience. ‘Trishool’ can be taken as example of his craft and conscience
in which he could not save himself from the immediacy of his thinking and yet
remained free from being implicated.
Nature of the narrative of a village struggling
with poverty
By renowned story writer Mahesh Katare
Manch -1 (Jan-March 2011)
Page
no. 70
गांव की गरीबी और जातिदंश शिवमूर्ति के जीवन में भी आरंजक रहे होंगे तो वर्ग-चेतना के साथ वर्ण-चेतना का जुडऩा स्वभाविक व सामयिक लगता है। इसीलिए इनकी कहानियां में वर्ण-चेतना वर्ग-चेतना से सटकर चलती दिखती है। किंतु इस धैर्य व कौशल से कि विवेक की उंगली नहीं छूटती। 'त्रिशूल' उनके कौशल और विवेक का उदाहरण कहा जा सकता है जिसमें वह विचार की तात्कालिकता से बच भी नहीं पाते और फंसते भी नहीं।
बेदखली से जूझती गांव की कहानी का स्वभाव
द्वारा प्रसिद्ध आलोचक महेश कटारे
मंच-1 (जनवरी-मार्च 2011)
पृष्ठ-70
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Countless short
stories continuously haunt Shivmurti who is the most alert writer hailing from
a rural region of Avadh. But reluctantly Shivmurti always evades them. Although
very active in his non literary activities, he is very lazy in his writing
work. Lets Shivmurti be spared from scrubbing personally even then it well be a
great miracle if a scrubber could take down his story regularly on herring them
verbally from him.
“Shivmurtiana style of living”
By prominent Hindi story writer Sanjeev
Manch -1 (Jan-March 2011)
Page
no. 128
अवध के ग्रामीण अंचल के सबसे चौकन्ने इस कथाकार के पीछे ढेरों कथानक भौंकते हुए पीछा करते रहते हैं, पर शिवमूर्ति हैं कि पल्ला छुड़ाकर भागते चलते हैं। लेखनेतर मामलों में बेहद कर्मठ पर लिखने में उतने ही काहिल।
अगर शिवमूर्ति को हाथ से लिखना न पड़े और उनकी कथा सुन-सुनकर कोई लिखने वाला मिल जाए तो कमाल हो जाए।
जीने का शिवमूर्तियाना अंदाज
द्वारा वरिष्ठ हिन्दी कथाकार संजीव
मंच-1 (जनवरी-मार्च 2011)
पृष्ठ-128
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